अच्छी नहीं फेसबुक की लत
अगर आपको बार-बार अपना फेसबुक प्रोफाइल देखने की आदत है तो यह आप पर भारी पड़ सकती है। जो लोग अपना फेसबुक प्रोफाइल ज्यादा देखते हैं, उनके उन लोगों के मुकाबले ज्यादा दुखी और अस्वस्थ रहने की आशंका होती है जो कभी-कभार इस सोशल नेटवर्किंग साइट का इस्तेमाल करते हैं। एक नए शोध में इसे लेकर चेताया गया है। अमेरिका में सैन डिएगो, कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय (यूसीएसडी) के शोधकर्ताओं ने 5,208 लोगों से साल 2013 से 2015 के बीच उनके फेसबुक इस्तेमाल का आंकड़ा इकट्ठा किया है। शोधकर्ताओं ने फेसबुक गतिविधि और शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक स्वास्थ्य, जीवन में संतुष्टि और बॉडी मास इंडेक्स के साथ वास्तविक दुनिया की सोशल नेटवर्क गतिविधि की जांच की। आंकड़ों पर शोध करने के बाद पाया कि फेसबुक का अधिक इस्तेमाल करना सामाजिक, बाकी पेज 8 पर शारीरिक और मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य से समझौता करने से जुड़ा है।
यूसीएसडी में सहायक प्रोफेसर हॉली शाक्या ने कहा कि जो लोग कभी-कभार सोशल नेटवर्किंग साइट का इस्तेमाल करते हैं वे लोग इसका ज्यादा इस्तेमाल करने वालों के मुकाबले खुश और स्वस्थ होते हैं। शोध में शामिल अमेरिका के येल विश्वविद्यालय की निकोलस क्रिसटाकिस ने कहा कि फेसबुक का इस्तेमाल करना कुशल मंगल होने से नकारात्मक रूप से जुड़ा है।शोधकर्ताओं ने कहा कि यहां तक कि लाइक्स क्लिक्ड, लिंक्स क्लिक्ड या स्टेटस अपडेट्स में एक फीसद बढ़ोतरी का संबंध स्वसूचित मानसिक स्वास्थ्य में पांच से आठ फीसद की गिरावट से है। यह शोध अमेरिकी पत्रिका एपिडेमियोलॉजी में प्रकाशित हुआ है।
उनके बीच एक पुल है वाट्सऐप
अगर आप किशोरों के वाट्सऐप इस्तेमाल करने से परेशान हैं तो आपके लिए एक राहत भरी खबर है। वाट्सऐप ग्रुप्स से किशोर अपनी भावनाओं को बेहतर तरीके से अभिव्यक्त कर सकते हैं और इससे कक्षा में बातचीत के बजाय अपने साथियों से करीबी रिश्ते बनाने में मदद मिल सकती है। एक नए शोध में यह पता चला है।दुनियाभर में युवा आपस में बातचीत करने के लिए और ग्रुप में बातचीत के लिए वाट्सऐप एप्लीकेशन का इस्तेमाल करते हैं। इनमें से कई किशोर इस आभासी दुनिया में कई घंटे बिताते हैं, खासतौर से शाम और रात को जब वे अपने कमरे में अकेले होते हैं। इस शोध की अगुआई करने वाले इजराइल में हैफा विश्वविद्यालय के एरी किजेल ने इस बात की जांच की कि युवा किस तरीके से इस आभासी दुनिया का इस्तेमाल करते हैं। इस शोध में 16-17 साल की आयु वाले आठ युवाओं के दो समूह और 14-15 बाकी पेज 8 पर साल की उम्र वाले आठ युवाओं के दो समूह शामिल किए गए। समूहों में लड़के और लड़कियों की संख्या बराबर रही।
प्रतिभागियों ने क्लास वाट्सऐप ग्रुप से लिए संदेशों का विश्लेषण किया। उन्होंने पाया कि वाट्सऐप एक ऐसी जगह है जहां वे निजी बातें कर सकते हैं जिसकी सुविधा अन्य प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध नहीं है। ज्यूइश प्रेस ने किजेल के हवाले से कहा, ‘शोध में भाग लेने वाले किशोरों ने वाट्सऐप को एक ऐसी जगह बताया जहां भाषा के लिए सम्मान है और जहां सभी एक जैसे शब्द और संकेतों का इस्तेमाल करते हैं। ग्रुप चैट उसमें शामिल लोगों के बीच भरोसे पर आधारित है और यह बात संपर्क में बने रहने की संभावना बढ़ाती है। वाट्सऐप ग्रुप एक ऐसी चीज है जो स्कूल में बनाए गए श्रेणीबद्ध विभाजन को तोड़ती है।
शोध दिखाता है कि स्कूल में कक्षाएं एक निर्धारित समूह में बंटी होती हैं, स्कूल में एक ही आयु वर्ग से दोस्ती होती है, सामाजिक आर्थिक, साझा गतिविधियों या पढ़ाई-लिखाई के आधार पर बच्चों को वर्गीकृत किया जाता है।वाट्सऐप इन विभाजनों को तोड़ता है और एक ही क्लास व एक जैसे व्यवहार का समूह बनाता है। शोध के मुताबिक युवाओं का मानना है कि आइकन और इमोजी का इस्तेमाल शारीरिक हाव-भाव से ज्यादा अच्छा है।