Saturday, September 21, 2024
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दुनिया के ये आठ देश धीरे धीरे चीन के क़र्ज़ तले दब चुके हैं।

SI News Today

These eight countries of the world have gradually been under debt of China.

      

कहते हैं जब पडोसी हद से ज्यादा आप पर मेहरबान होने लगे तो सतर्क हो जाना चाहिए। ऐसे ही कुछ रणनीति के तहत चीन के सरकारी बैंक भी दूसरे देशों को क़र्ज़ देने में रूचि ले रहे हैं। चीनी बैंकों का यह क़दम चीनी सरकार की सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने वन बेल्ट वन रोड परियोजना के तहत कई देशों में आधारभूत ढांचा के विकास के लिए समझौते किए हैं, लेकिन इन समझौतों को एकतरफ़ा बताया जा रहा है। इनमें भारी निवेश किया गया है।

वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट के अनुसार 2016 में पहली बार चीन के चार बड़े सरकारी बैंकों में से तीन ने देश में कॉर्पोरेट लोन देने से ज़्यादा बाहरी देशों को क़र्ज़ दिए। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि चीन अपनी कंपनियों को दुनिया के उन देशों में बिज़नेस करने के लिए आगे कर रहा है जहां से एकतरफ़ा मुनाफ़ा कमाया जा सके। चीन अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए क़र्ज़ रणनीति को तेज़ी से आगे बढ़ा रहा है।

दक्षिण एशिया के तीन देश- पाकिस्तान, श्रीलंका और मालदीव पर चीन का भारी क़र्ज़ हैं। पिछले साल तो श्रीलंका को एक अरब डॉलर से ज़्यादा क़र्ज़ के कारण चीन को हम्बनटोटा पोर्ट ही सौंपना पड़ गया था। इसके साथ ही पाकिस्तान भी चीनी क़र्ज़ में उलझा हुआ है और एक बार फिर से आर्थिक संकट के बीच वो चीन की शरण में जा सकता है।

2013 में चीन की कमान शी जिनपिंग के हाथों में आने के बाद से ही उनकी महत्वाकांक्षी योजना OBOR परियोजना में और तेज़ी आई है। इसके ज़रिए चीन सेंट्रल एशिया, दक्षिणी-पूर्वी एशिया और मध्य-पूर्व में अपना दबदबा बढ़ाना चाहता है। इस परियोजना के साथ कई देश हैं, लेकिन ज़्यादातर पैसे चीन के विकास बैंक और वहां के सरकारी बैंकों से आ रहे हैं। चीन एशियाई देशों में ही नहीं बल्कि अफ़्रीकी देशों में भी आधारभूत ढांचा विकसित करने के काम में लगा है। जिबुती उन्हीं देशों में एक देश है।

पिछले साल 6 मार्च को अमरीका के तत्कालीन विदेश मंत्री रेक्स टिलर्सन ने कहा था कि- ”चीन कई देशों को अपने ऊपर निर्भर बनने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है। वो जिन अनुबंधों को हासिल कर रहा है वो पूरी तरह से अपारदर्शी हैं। नियम और शर्तों को लेकर स्पष्टता नहीं है। बेहिसाब क़र्ज़ दिए जा रहे हैं और इससे ग़लत कामों को बढ़ावा मिलेगा। उन देशों की आत्मनिर्भता तो ख़त्म होगी है साथ में संप्रभुता पर भी असर पड़ेगा। चीन में क्षमता है कि वो आधारभूत ढांचों का विकास करे, लेकिन वो इसके नाम पर क़र्ज़ के बोझ को बढ़ाने का काम कर रहा है।”

द सेंटर फोर ग्लोबल डिवेलपमेंट का कहना है कि वन बेल्ट वन रोड में भागीदार बनने वाले आठ देश चीनी क़र्ज़ के बोझ से दबे हुए हैं। ये देश हैं- जिबुती, किर्गिस्तान, लाओस, मालदीव, मंगोलिया, मोन्टेनेग्रो, पाकिस्तान और तजाकिस्तान। क़र्ज़ से उनकी प्रगति किस हद तक प्रभावित होगी ये वो देश समझ ही नहीं पा रहे हैं। क़र्ज़ चुकता न कर पाने की स्थिति में ही क़र्ज़ लेने वाले देशों को पूरा प्रोजेक्ट चीन के हवाले करना पड़ सकता है।

कई विशेषज्ञों का मानना है कि नेपाल भी चीन की मदद चाहता है, लेकिन उसके मन में एक किस्म का डर रहता है कि कहीं वो भी श्रीलंका और पाकिस्तान की तरह चीनी क़र्ज़ के बोझ तले दब न जाए। चाइना-लाओस रेलवे परियोजना को वन बेल्ट न रोड के तहत शुरू किया गया है। इस परियोजना की पूरी लागत 6 अरब डॉलर है यानी यह लाओस की जीडीपी का आधा है। कई लोगों का कहना है कि पाकिस्तान का ग्वादर पोर्ट भी इसी राह पर बढ़ रहा है। चीन पाकिस्तान में 55 अरब डॉलर अलग-अलग परियोजनाओं में ख़र्च कर रहा है। पाकिस्तान के बारे में कहा जा रहा है कि दबाव के बावजूद इस प्रोजेक्ट के अनुबंधों को सार्वजनिक नहीं किया गया है। विश्लेषकों का मानना है कि इस रक़म का बड़ा हिस्सा क़र्ज़ के तौर पर है।

एक रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान में ग्वादर और चीन के समझौते को लेकर ये कहा जा सकता है कि पाकिस्तान चीन का आर्थिक उपनिवेश बन रहा है। ग्वादर में पैसे के निवेश की साझेदारी और उस पर नियंत्रण को लेकर 40 सालों का समझौता है। चीन का इसके राजस्व पर 91 फ़ीसदी अधिकार होगा और ग्वादर अथॉरिटी पोर्ट को महज 9 फ़ीसदी मिलेगा। यथार्थत: अप्रत्यक्ष रूप से पाकिस्तान के पास 40 सालों तक ग्वादर पर नियंत्रण नहीं रहेगा।

1. पाकिस्तान- चीनी क़र्ज़ का सबसे ज़्यादा ख़तरा पाकिस्तान पर है. चीन का पाकिस्तान में वर्तमान परियोजना 62 अरब डॉलर का है और चीन का इसमें 80 फ़ीसदी हिस्सा है. चीन ने पाकिस्तान को उच्च ब्याज़ दर पर क़र्ज़ दिया है.
जिबुती- IMF ने कहा है कि जिबुती जिस तरह से क़र्ज़ ले रहा है वो उसके लिए ही ख़तरनाक है. महज दो सालों में ही लोगों पर बाहरी क़र्ज़ उसकी जीडीपी का 50 फ़ीसदी से 80 फ़ीसदी हो गया. इस मामले में दुनिया के कम आय वाले देशों में जिबुती पहला देश बन गया है.
मालदीव- मालदीव के सभी बड़े प्रोजेक्टों चीन व्यापक रूप से शामिल है. चीन मालदीव में 830 करोड़ डॉलर की लागत से एक एयरपोर्ट और एक पुल 400 करोड़ डॉलर की लागत से बना रहा है. विश्व बैंक और IMF का कहना है कि मालदीव बुरी तरह से चीनी क़र्ज़ में फंसता दिख रहा है.

2. लाओस- दक्षिण-पूर्वी एशिया में लाओस ग़रीब मुल्कों में से एक है. लाओस में चीन वन बेल्ट वन रोड के तहत रेलवे परियोजना पर काम कर रहा है. इसकी लागत 6.7 अरब डॉलर है जो कि लाओस की जीडीपी का आधा है. IMF ने लाओस को भी चेतावनी दी है कि वो जिस रास्ते पर है उसमें अंतरराष्ट्रीय क़़र्ज़ हासिल करने की योग्यता खो देगा.

3. मंगोलिया- मंगोलिया के विकास में चीन के एग्ज़िम बैंक 2017 की शुरुआत में एक अरब अमरीकी डॉलर का फंड देने के लिए तैयार हुआ था. अगर ऐसा होता है तो मंगोलिया के लिए इस क़र्ज़ से बाहर निकलना आसान नहीं होगा.

4. मोन्टेनेग्रो- विश्व बैंक का अनुमान है कि 2018 में यहां के लोगों पर क़र्ज़ उसकी जीडीपी का 83 फ़ीसदी पहुंच गया. मोन्टेनेग्रो के पोर्ट विकास और ट्रांसपोर्ट नेटवर्क को बढ़ाने के लिए 2014 में चीन के एग्ज़िम बैंक से एक समझौता हुआ था, जिसमें पहले चरण की लागत एक अरब डॉलर में 85 फ़ीसदी रक़म चीन देगा.

5. तजाकिस्तान- तजाकिस्तान की गिनती एशिया के सबसे ग़रीब देशों में होती है. IMF चेतावनी दे चुका है कि वो क़र्ज़ के बोझ तले दबा हुआ है. इस देश पर सबसे ज़्यादा क़र्ज चीन का है.

6. किर्गिस्तान- किर्गिस्तान की विकास परियोजनाओं में चीन का एकतरफ़ा निवेश है. किर्गिस्तान पर कुल विदेशी क़र्ज़ में चीन का 40 फ़ीसदी हिस्सा है.

7. जिबुती- जिबुती में अमरीका का सैन्य ठिकाना है। चीन की एक कंपनी को जिबुती ने एक अहम पोर्ट दिया है जिससे अमरीका नाख़ुश है।

8. मालदीव- मालदीव में भी चीन कई परियोजनाओं का विकास कर रहा है। मालदीव में जिन प्रोजक्टों पर भारत काम कर रहा था उसे भी चीन को सौंप दिया गया है। मालदीव ने भारतीय कंपनी जीएमआर से 511 अरब डॉलर की लागत से विकसित होने वाले अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे की डील को रद्द कर दिया था। चाइना कंस्ट्रक्शन बैंक की तरफ़ दिए जाने वाले विदेशी क़र्ज़ों में 31 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है, जबकि इसकी तुलना में देश में यह वृद्धि दर 1.5 फ़ीसदी ही है।

अभी हाल ही में कि द टेलीग्राफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत और चीन ने बैंक ऑफ चाइना को मुंबई में एक शाखा खोलने की अनुमति देने पर सहमति व्यक्त की है। जबकि SBI चीन में परिचालन शुरू करने वाला पहला बैंक था जहां इसकी दो शाखाएं हैं। बैंक ऑफ इंडिया, बैंक ऑफ बड़ौदा, केनरा बैंक, ICICI बैंक और Axis बैंक कि एक एक शाखा वहाँ मौजूद है। 2020 तक दोनों देशों के बीच बैंकिंग व्यापार 100 अरब डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है। लेकिन भारत को चीन की इस रणनीति का ख्याल जरूर रखना पड़ेगा कि जैसे इन देशों को एक तरह से उसने अपना आर्थिक उपनिवेश बना रखा है वैसी किसी साज़िश का शिकार भारत भी न हो जाय!

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