What is the status of your municipal corporation?
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नगर निगम- एक शब्द नहीं एक जिम्मेदारी है इस सरकारी संस्था के कन्धों पर। लेकिन क्या देश की सारी जिम्मेदारी और कानून सिर्फ मासूम जनता पर ही लागू होते हैं? आज ऐसा क्यों लिखना पड़ रहा है, क्यूंकि मैं रोजाना जिस रास्ते से आता जाता हूँ उस रास्ते के सारे मेनहोल खुले रहते हैं। रोज कचड़ा फंसा रहता है। सड़क तो है 15 फुट की मगर अब यह मात्र 7 फुट की ही रह गयी है। रोजाना कोई न कोई सफाई , कोई कोई काम चलता रहता है। ऐसा काम ही क्यों किया जाय कि रोज ढक्कन खोलना पड़े या रोज एक ही काम करना पड़े? मेरी गाड़ी फंस गयी और गंभीर चोट लगने से बचा। ऐसी न जाने कितनी दुर्घटनाएं होती होंगी प्रदेश के हर शहर और शहर के हर हिस्से में? क्या ये संस्था पैसा वसूली के लिए बनी है? अगर ऐसा है तो बंद कर दो ये दुकान, क्यूंकि अगर ऐसा होता रहा तो क्या आपकी अपनी मुसीबत में कोई साथ देगा, आप लोग खुद इतना समझदार हैं।
बात कहीं की भी हो हाउस टैक्स, वाटर टैक्स, रोड टैक्स, ये टैक्स, वो टैक्स देने के लिए ही हैं क्या हमसब? टैक्स किसलिए दिए जाते है ताकि हम अपनी जान हथेली पर लेकर घूमे? आपकी क्या जिम्मेदारी है? जहाँ तक मुझे याद है एक बार लखनऊ के सारे सभासदों और निगम के अधिकारीयों को सिंगापुर का टूर कराया गया था ताकि वो सीख सके कि वहां का शहरी मैनेजमेंट कैसे होता है? मगर सीखने क्या गए थे और कर क्या रहे थे ये सारे अखबारों और न्यूज़ चैनल्स ने सबको दिखाया था।
और सब छोड़िये अपने खुद के कर्मचारी को ये तक तो पता नहीं कि सड़क पर बिना परमिशन के खुदाई करना दंडनीय है, तो वो और क्या करेगा- घूस लेकर नौकरी पाने वाले पहले अपना रिकवरी ढूंढ़ते हैं फिर समय बचा तो ही काम करते हैं। कम से कम जितनी sallary मिलती है उतना ही काम कर लें तो शहर का भला हो जायेगा। निगम के अधिकारी कब अपनी सीट पर मिलते हैं ये किसी को नहीं पता वो ऑनलाइन शिकायत का निस्तारण कैसे कराते हैं ये भी किसी को नहीं पता। बस जब भी कोई निगम की वेबसाइट पर शिकायत डालिये तो कुछ दिन बाद मोबाइल पर मेसेज आ जायेगा कि आपकी शिकायत का निस्तारण किया जा चूका है, अगर आप असंतुष्ट हैं तो भी चाहकर आप अपना फीडबैक नहीं दे सकते, क्यों? क्यूंकि वो ऑप्शन ही नहीं है। न वेबसाइट अपडेट है, न किसी जिम्मेदार अधिकारी का मोबाइल नंबर, न ट्विटर, न फेसबुक पेज, न तो किसी के पास पूरी सूचना। सरकार डिजिटल इंडिया की बात करती है, वो इनके लिए सब बेमानी है, क्यूंकि कोई मतलब ही नहीं है। निगम के पास कोई ट्रेनर हैं जो काम से लेकर बात करने का ढंग सीखा सके? निगम निकाय खाली चुनावी अड्डे हैं स्थानीय नेताओं का जमावड़ा लगा रहता है जहा वर्चस्व की लड़ाई लड़ी जाती है जानते के हित की नहीं।
क्या ऐसे ही बनेगी स्मार्ट सिटी, गुस्सा आता है एक आम नागरिक होने के नाते और ये दोनों तरफ समझना होगा कि अगर सरकार कुछ कर रही है तो सरकारी कर्मचारियों के साथ साथ आम पब्लिक को भी जोड़ना होगा, तब जाकर लक्ष्य मिलेगा, ऐसे नहीं। सख्ती से कार्यवाही कीजिये ताकि किसी काम को करने के बाद काम से काम एक साल तो वो दुबारा न करना पड़े, इतनी कृपा कर दीजिये कि अपना डिजिटल इंडिया और आपका स्मार्ट सिटी शर्मसार न हो।