Republic Day 2018: भारतीय हर साल 26 जनवरी 1950 को गणतंत्र दिवस मनाते हैं। संविधान को लागू करवाने में योगदान देने वाले और देश को लिए प्राण न्योछावर करने वाले महान पूर्वजों को याद कर श्रद्धांजलि देते हैं। लेकिन इसे हर बार मनाने की वजह जानते हैं आप? इसके पीछे हमारा गौरवशाली इतिहास तो है ही, लेकिन हम इसलिए ऐसा करते हैं ताकि हमारी नई पीढ़ी को पता चल सके कि विभिन्नताओं से भरे इतने बड़े देश एक धागे में हमारे राष्ट्रीय पर्व ही पिरोते हैं, और जिनसे हमारे अस्तिस्व और संस्कृति की पहचान जुड़ी है, उन्हें पारंपरिक तौर पर मनाते रहने से ही देश की खातिर कुछ भी कर गुजरने की जनभावना जाग्रत होती है, जिससे देश और मजबूत होता है। तो चलिए आपको बताते हैं भारत के गणतंत्र दिवस के इतिहास से जुड़े रोचक इतिहास के बारे में।
9 दिसंबर 1946 को संसद के संविधान सभागार में संविधान सभा उन दस्तावेजों को लेकर इकट्ठा हुई, जिनसे स्वतंत्र भारत सरकार की रीढ़ तय होनी थी। ढेरों उमीदों के साथ 292 सदस्यों में से 207 सदस्यों ने संसद के पहले सत्र में बहस शुरू की जो कि संविधान के समापन तक यानी तीन महीने तक चली।
इससे पहले ब्रिटिश सरकार भारतीय नेताओं के लगातार आंदोलनों और हुकूमत के खिलाफ उठती जनभावनाओं से यह समझ चुकी थी कि भारत छोड़कर जाना ही होगा। आखिरकार ब्रिटिश सरकार ने शांति से सत्ता सौंपने में ही भलाई समझी और 1946 में एक कैबिनेट मिशन को भारतीय नेताओं से बात करने के लिए भेजा। दिशा निर्देशों के आधार पर प्रांतीय विधानसभा चुनाव कराए गए, जिससे 292 सदस्य चुने गए। इन सदस्यों को संविधान सभा का प्रतिनिधि बनना था। जो लोग चुने गए थे, उनमें सरदार वल्लभभाई पटेल, मौलाना अबुल कलाम आजाद, सरोजनी नायडू और पंडित जवाहर लाल नेहरू भी शामिल थे। इन लोगों के हाथ में बहुत बड़ा काम था। नेताओं ने संकल्प लिए, जिनके अंतर्गत क्षेत्रीय अखंडता, सामाजिक आर्थिक समानता, न्याय के कानून और अल्पसंख्यकों अधिकारों का ख्याल रखना था।
संविधान सभा के उद्देश्यों को निर्धारित करते हुए पंडित जवाहर लाल नेहरू ने कहा था- ”पहला काम यह है कि भारत को नए संविधान के जरिये स्वतंत्र कराना है ताकि भूख से मरते लोगों को खाना मिल सके और जिनके पास तन ढकने के लिए कपड़े नहीं हैं, उन्हें कपड़े मिल सकें। हर भारतीय को अपनी क्षमता के अनुसार खुद को विकसित करने का पूर्ण अवसर प्रदान करना है, यह निश्चित रूप से एक महान काम है।”
अगले 3 वर्षों में संविधान सभा के 165 दिनों 11 सत्र हुए। 9 दिसंबर 1949 को संविधान का ड्राफ्ट मंजूर हो गया। करीब एक महीने बाद 26 जनवरी 1950 को नए राष्ट्र को एक आधुनिक गणतंत्र बनाते हुए भारत का संविधान आधिकारिक रूप से लागू हो गया। संविधान के आधिकारिक प्रवर्तन के लिए चुनी जाने वाली तारीख भारतीय राष्ट्रवादियों की भावनाओं से जुड़ी थी। 31 दिसंबर 1931 को नेहरू ने लाहौर में पूर्ण स्वराज की मांग करते हुए जब तिरंगा लहराया था तो स्वतंत्रता की तारीख 26 जनवरी 1930 तय की गई थी। इसलिए जब संविधान लागू हुआ तो उसे ‘पूर्ण स्वराज दिवस’ माना गया।
1947 में भारत को स्वतंत्रता मिल गई थी, लेकिन 15 अगस्त की तारीख अंग्रेजों ने तय की थी। ऐसा कहा जाता है कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद जापानी सेना ने संगठित सेनाओं में खुद को मिला दिया था, उसी दिन से मेल खाने के कारण स्वतंत्रता दिवस की तारीख 15 अगस्त रखी गई थी। इतिहासकार रामचंद्र गुहा कहते हैं- “स्वतंत्रता आखिरकार एक ऐसे दिन आई थी जिसमें राष्ट्रवादी भावनाओं के बजाय शाही गर्व की गूंज होती है।”
जब संविधान लागू हुआ तो इसके निर्माताओं के द्वारा ऐसा सोचा गया था कि इसे ऐसे दिन मनाया जाएगा जो राष्ट्रीय गौरव से जुड़ा हो और इसके लिए सबसे अच्छी पसंद ‘पूर्ण स्वराज दिवस’ था जो कि 26 जनवरी होता है। भारत का संविधान दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान कहा जाता है।