पूरे भारत में लोग नवरात्रि के नौ दिनों को बेहद ही उत्साह के साथ मनाते हैं. चैत्र नवरात्र का आज (21 मार्च) चौथा दिन है. इस दिन मां दुर्गा के कुष्मांडा रूप की पूजा अर्चना की जाती है. मां कुष्मांडा को अष्टभुजा भी कह जाता है. पुराणों में बताया गया है कि जब सृष्टि में चारों तरफ अंधकार था, तब आदिशक्ति मां दुर्गा के कुष्मांडा स्वरूप ने ही ब्रह्मांड की रचना की. इसी कारण देवी का चौथा स्वरूप कुष्मांडा देवी के नाम से जाना गया.
क्या है कुष्मांडा का अर्थ
कु का अर्थ है ‘कुछ’, ऊष्मा का अर्थ है ‘ताप’, और अंडा का अर्थ यहां है ब्रह्मांड या सृष्टि. जिसके ऊष्मा के अंश से यह सृष्टि उत्पन्न हुई वे देवी कुष्मांडा हैं. पुराणों में बताया गया है कि जब चारों तरफ सिर्फ और सिर्फ अंधकार हुआ करता था, समय की उत्पत्ति भी नहीं हुई थी, तब मां ने सृष्टि के सृजन का संकल्प लिया.
कैसा है मां का स्वरूप
मां कुष्मांडा की आठ भुजाएं हैं. सात भुजाओं में वे धनुष, बाण, कमल, अमृत, चक्र, गदा और कमण्डल धारण किए रखती हैं और आठवें भुजा में वे माला रखती हैं, जो की अष्ट सिद्धियां और नौ निधियां देतीं हैं.
कैसे करें मां कुष्मांडा की पूजा
नवरात्रि के चौथे दिन मां कुष्मांडा की पूजा सच्चे मन से करना चाहिए. मन को अनहत चक्र में स्थापित करने के लिए मां का आशीर्वाद लेना चाहिए. मां कुष्मांडा अत्यल्प सेवा और भक्ति से ही प्रसन्न होकर आशीर्वाद देती हैं. विद्वान बताते हैं कि सच्चे मन से पूजा करने वाले को सुगमता से परम पद प्राप्त होता है.
मां कुष्मांडा का उपासना मंत्र
‘सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च। दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥’
या
‘या देवी सर्वभूतेषु मां कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।’
या
‘ऊं ऐं ह्रीं क्लीं कुष्मांडायै नम:।।’
रोग-शोक को हरती है मां कुष्मांडा
मां कुष्मांडा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक मिट जाते हैं. इनकी भक्ति से आयु, यश, बल और आरोग्य की वृद्धि होती है. देवी कुष्मांडा अपने भक्तों को बल और आरोग्य प्रदान करती हैं. इनकी पूजा में खीर, मालपूआ और मिष्टान का भोग लगाना चाहिए.