Every year 80 million youths need a job in the country!
भारत में 15 वर्ष की आयु से ज्यादा कामकाजी आबादी हर महीने 1.3 मिलियन बढ़ रही है, भारत की रोजगार दर स्थिर रखने के लिए हर साल आठ मिलियन से अधिक नौकरियों की आवश्यकता है. यह जानकारी एक नए अध्ययन में सामने आई है.
विश्व बैंक की एक रिपोर्ट, ‘जॉबलेस ग्रोथ’ के अनुसार, महिलाएं लगातार नौकरी छोड़ रही हैं और इससे के कारण भारत के रोजगार दर में कमी आई है. आंकड़ों से पता चलता है कि वर्ष 2005 से 2015 के बीच भारत में पुरुष रोजगार दर में ‘बहुत कम’ गिरावट आई, जबकि महिला रोजगार दर में प्रति वर्ष लगभग 5 फीसदी की गिरावट हुई है.
2015 में भारत की रोजगार दर 52 फीसदी थी. यह आंकड़े नेपाल (81 फीसदी), मालदीव (66 फीसदी), भूटान (65 फीसदी) और बांग्लादेश (60 फीसदी) से नीचे थे लेकिन पाकिस्तान (51 फीसदी), श्रीलंका (49 फीसी) और अफगानिस्तान (48 फीसदी) से उपर रहे हैं.
दक्षिण एशिया में 2025 तक कामकाजी आबादी ( 15 वर्ष और उससे अधिक आयु ) 8 फीसदी और 41 फीसदी के बीच बढ़ने की उम्मीद है. रिपोर्ट में कहा गया है कि, ‘जनसांख्यिकीय लाभांश को प्राप्त करने के लिए, पर्याप्त नई नौकरियां पैदा करने की आवश्यकता है’.
2017 की अंतिम तीन महिनों में 6.3 फीसदी की वृद्धि और 2018 की पहले तीन महिनों में 7.2 फीसदी की वृद्धि के साथ दक्षिण एशिया दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के रूप में उभरा है. इस वृद्धि को भारत के आर्थिक पुनरुत्थान के लिए जिम्मेदार माना गया है, जो 2018 में जीएसटी के 7.3 फीसदी तक (पूर्वानुमान के आधार पर) के प्रदर्शन और लागू के कारण धीमा हो गया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि दक्षिण एशिया का सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 80 फीसदी भारत में पैदा होता है. हालांकि, रिपोर्ट में तर्क दिया गया है कि अन्य विकासशील देशों में उच्च रोजगार दर, विशेष रूप से महिलाओं के बीच, विकास के एकमात्र कारक नहीं है.
दक्षिण एशिया क्षेत्र के विश्व बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री मार्टिन राम कहते हैं, ‘हर महीने 2025 तक दक्षिण एशिया में 1.8 मिलियन से अधिक युवा लोग काम करने की आयु तक पहुंचेंगे और अच्छी खबर यह है कि आर्थिक विकास इस क्षेत्र में नौकरियां पैदा कर रहा है.’ ‘लेकिन श्रम बाजार में अधिक महिलाओं को आकर्षित करते हुए इन नए युवाओं को अवसर प्रदान करने के लिए आर्थिक विकास के हर बिंदु के लिए और भी नौकरियां पैदा करने की आवश्यकता होगी.’
नौकरियों के लिए जारी है लड़ाई
रिपोर्ट के मुताबिक 2017 में कम से कम 18.3 मिलियन भारतीय बेरोजगार थे, और 2019 तक बेरोजगारी 18.9 मिलियन तक बढ़ने का अनुमान है देश में रोजगार के अवसरों की कमी के साथ युवाओं के बीच नाराजगी है. सरकारी नौकरियों के लिए आवेदन करने वाले लोगों की संख्या पर विचार करें तो स्थिति गंभीर है. इस साल भारतीय रेलवे द्वारा प्रदान की गई 90,000 नौकरियों के लिए 28 मिलियन से अधिक आवेदकों की उपस्थिति होने की उम्मीद है.
मुंबई में 1,137 पुलिस कॉन्स्टेबल भर्तियों के लिए 200,000 से अधिक उम्मीदवार ने अप्लाई किया था, जिनमें से कई जरूरी योग्यता से उपर थे. 423 के पास इंजीनियरिंग में डिग्री थीं, 167 बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन में मास्टर थे और 543 पोस्ट-ग्रैजुएट थे, जबकि पद के लिए आवश्यक मूल योग्यता 12 वीं कक्षा पास थी. एक रिपोर के मुताबिक, 2017-18 में हर महीने 590,000 नौकरियां (या सालाना 7 मिलियन )उत्पन्न होने की संभावना थीं. प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने दावा किया था कि नौकरियों की कमी के बारे में झूठ फैलाया जा रहा है.
2017-18 की दूसरी तिमाही में 100,000 से अधिक नौकरियां
श्रम और रोजगार के लिए राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) संतोष कुमार गंगवार के लोकसभा में दिए एक जवाब के मुताबिक 2017 की जुलाई-सितंबर तिमाही में लगभग 136,000 नौकरियां शामिल की गईं, जो पिछले (अप्रैल-जून) तिमाही में संख्या (64,000 नौकरियां) के दोगुने से भी अधिक थी.
अप्रैल-जून तिमाही में जनवरी-मार्च 2017 तिमाही (185,000 नौकरियों) में नौकरियों की वृद्धि में 65 फीसदी की गिरावट देखी गई थी. क्यूईएस आठ प्रमुख क्षेत्रों में रोजगार को मापता है – ये क्षेत्र हैं मैनुफैक्चरिंग , निर्माण, व्यापार, परिवहन, शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास / रेस्तरां और सूचना प्रौद्योगिकी / व्यापार प्रक्रिया आउटसोर्सिंग.
आठ क्षेत्रों में 10 या अधिक श्रमिकों की कुल रोजगार इकाइयों में से 81 फीसदी का योगदान है. रिपोर्ट में 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 11,000 इकाइयां शामिल हैं. मैनुफैक्चरिंग सेक्टर ने जुलाई और सितंबर 2017 के बीच सबसे अधिक (65 फीसदी) नौकरियों के अवसर उपलब्ध कराए हैं. इसके बाद शिक्षा (15 फीसदी) का स्थान रहा है. निर्माण एकमात्र ऐसा क्षेत्र था जिसने नौकरी का नुकसान देखा है.
नोटबंदी की अवधि के दौरान नौकरियों में वृद्धि
अक्टूबर-दिसंबर 2016 की तिमाही यानी नोटबंदी के समय में कम से कम 122,000 नौकरियां उपलब्ध कराई गईं थी, यानी अपनी पिछली तिमाही की तुलना में तीन गुना (281 फीसदी) की वृद्धि दर्ज की, जिसमें 32,000 नौकरियां शामिल थीं.
इसके अलावा, जनवरी-मार्च 2017 तिमाही में 185,000 नौकरियां शामिल की गईं, जिसने नोटबंदी प्रभाव को बरकरार रखा और अर्थव्यवस्था को धीमा कर दिया, अक्टूबर-दिसंबर 2016 तिमाही में लगभग 52 फीसदी की वृद्धि हुई.
विश्व बैंक के अग्रणी अर्थशास्त्री ईजाज घनी ने 20 अप्रैल, 2018 को ‘द मिंट’ में लिखा, ‘मानव पूंजी अब भारत की संपत्ति का सबसे तेज़ी से बढ़ता हुआ घटक है’. स्वास्थ्य देखभाल, गुणवत्ता शिक्षा, नौकरियों और कौशल के माध्यम से लोगों में निवेश मानव पूंजी का निर्माण करने में मदद करता है, जो आर्थिक विकास का समर्थन करने, गरीबी समाप्त करने और अधिक समावेशी समाज बनाने के लिए महत्वपूर्ण है.’