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चुनाव आयोग ने कहा है कि राजनीतिक दल आरटीआई कानून के दायरे से बाहर हैं. आयोग का यह आदेश केंद्रीय सूचना आयोग के निर्देश के विपरीत है जिसने छह राष्ट्रीय दलों को पारदर्शिता कानून के तहत लाने का निर्देश दिया है.
एक आरटीआई आवेदक की याचिका पर चुनाव आयोग ने यह बयान दिया है जिसने छह राष्ट्रीय दलों द्वारा जुटाए गए चंदे की जानकारी मांगी गई थी. इन छह दलों को सीआईसी जून 2013 में पारदर्शिता कानून के दायरे में लाया था.
केंद्रीय जनसूचना अधिकारी के बयान का जिक्र करते हुए अपीली आदेश में कहा गया है, ‘आवश्यक सूचना आयोग के पास मौजूद नहीं है. यह राजनीतिक दलों से जुड़ा हुआ है और वे आरटीआई के दायरे से बाहर हैं. वे इलेक्टोरल बांड के माध्यम से जुटाए गए चंदे या धन की सूचना वित्त वर्ष 2017-18 के कंट्रीब्यूशन रिपोर्ट में ईसीआई को सौंप सकते हैं जिसके लिए निर्धारित तारीख 30 सितंबर 2018 है.’
पुणे के विहार ध्रुव ने आरटीआई के माध्यम से छह राष्ट्रीय दलों- बीजेपी, कांग्रेस, बीएसपी, एनसीपी, सीपीआई और सीपीएम के अलावा समाजवादी पार्टी द्वारा इलेक्टोरल बांड्स के माध्यम से जुटाए गए चंदे की जानकारी मांगी थी. चुनाव आयोग में प्रथम अपीलीय अधिकारी के.एफ. विलफ्रेड ने आदेश में लिखा कि वह सीपीआईओ के विचारों से सहमत हैं.
जिन सात राजनीतिक दलों के बारे में सूचना मांगी गई है उनमें से छह- बीजेपी, कांग्रेस, बीएसपी, एनसीपी, सीपीआई और सीपीएम को आयोग की पूर्ण पीठ ने तीन जून 2013 को आरटीआई कानून के दायरे में लाया था.
आदेश को ऊपरी अदालतों में चुनौती नहीं दी गई लेकिन राजनीतिक दलों ने आरटीआई आवेदनों को मानने से इंकार कर दिया है. कई कार्यकर्ताओं ने सीआईसी के आदेश का पालन नहीं करने के लिए उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है जहां मामला लंबित है.