BJP and Congress party leaders face-to-face rhetoric: Kisan movement
किसान आंदोलन को लेकर जहां एक और प्रशासन की चिंता बढ़ती जा रही है, वहीं नेताओ के आरोपों वाले बयान भी शुरू हो गए हैं. भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टी के नेता किसानों को लेकर एक दूसरे की पार्टियों पर आरोप लगा रहे हैं. दूसरी तरफ किसान आंदोलन के ऐलान के बाद मध्यप्रदेश सरकार पूरी तरह से अलर्ट हो चुकी है.
भाजपा के राज्य किसान आयोग अध्यक्ष ईश्वरलाल पाटीदार ने किसान आंदोलन को लेकर कहा कि किसान आंदोलन चाहता ही नहीं है. कांग्रेस के लोग सत्ता के लालच ने यह सब करवा रहे हैं. पिछले साल भी हिंसक आंदोलन में कांग्रेस ही शामिल थी. सरकार ने किसानों के हित में बहुत कुछ किया है इसलिए किसान नाराज नहीं हैं.
इधर एआईसीसी (आल इंडिया कांग्रेस कमेटी) से नियुक्त रतलाम जिला प्रभारी धीरूभाई पटेल ने भाजपा पर आरोप लगाते हुए कहा कि भाजपा के नेता एसी दफ्तरों में बैठकर किसानों की नीतियां बनाते हैं. उन्हें किसानों के साथ खेत में जाकर किसानों के हित में काम करना चाहिए. किसान भाजपा के वादों से अपने आप को ठगा महसूस कर रहा है और मध्य प्रदेश में लोगो ने तय किया है कि सरकार को उखाड़ फेंकना है.
आंदोलित किसानों की मांग
55 साल की उम्र से ज्यादा के किसानों को 7वें वेतन आयोग के मुताबिक पेंशन (करीब 18 हजार रुपये प्रति माह) देने की मांग को लेकर मध्य प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, दिल्ली और महाराष्ट्र समेत कई राज्यों में किसान संगठनों के एक धड़े ने गांव बंद का ऐलान किया है. इसी के साथ संपूर्ण कर्ज़माफी, किसानों को लागत का डेढ़ गुना समर्थन मूल्य, फल और सब्जियों का न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करने की मांग की जा रही है.
ये हिस्से रहेंगे प्रभावित
महाकौशल में जबलपुर, नरसिंहपुर, छिंदवाड़ा, बालाघाट का कुछ हिस्सा आंदोलन से प्रभावित रहेगा. ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में भी श्योपुर और मुरैना को पुलिस मुख्यालय की रिपोर्ट में किसान आंदोलन की दृष्टि से संवेदनशील माना गया है.