Mau district supply officer ignoring the distribution of food grains on fake ration card.
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उत्तर प्रदेश के मऊ जनपद में एक बार फिर से भ्रष्टाचार ने खाद्य एवम रसद विभाग में अपना जाल बुनना शुरू कर दिया है। आपको बता दें पिछले कई वर्षों से मऊ जनपद खाद्यान्न माफियाओं व भ्रष्ट अधिकारियों के भ्रष्टाचार के आग में जलता रहा है। वर्तमान में भी जिले में तैनात खाद्य एवम रसद विभाग के लगभग अधिकारी व कर्मचारी पूर्व में विभागीय जाँच में दोषी पाए जा चुके हैं व जिले में हर महीने करोड़ों रुपये के खाद्यान्न को फर्जी कार्ड व यूनिट के जरिये माफियाओं द्वारा हड़प लिया जाता है।
आपको जानकर यह हैरानी होगी कि बीते 15 फरवरी 2020 को जिले में तैनात पूर्ति निरीक्षक श्री आंनद कुमार यादव ने जाँच करते हुए यह पाया कि जिले में लगभग 25%- 30% यूनिट पात्र गृहस्थी राशनकार्डों में व 25%-30% अंत्योदय राशन कार्ड फर्जी लग रहे हैं। इस विषय मे पूर्तिनिरिक्षक आनंद कुमार यादव ने मऊ जिलाधिकारी व जिलापूर्ति अधिकारी को भी पत्र लिख कर इस भ्रष्टाचार से अवगत कराया था, जिसके तुरंत बाद जिलाधिकारी मऊ द्वारा 7 सदस्यों की टीम गठित कर जाँच के आदेश दिए तो गए लेकिन तदोपरांत ही सारे मामले को रहस्यमयी ढंग से ठंडे बस्ते में डाल दिया गया व पूर्तिनिरिक्षक आंनद कुमार यादव ने भी जाँच से अपना हाथ पीछे खींच कर अपनी भूमिका संदिग्ध कर ली है।
हमारे सूत्र द्वारा हमे यह बताया गया कि नाम न बताने की शर्त पर जिले में तैनात एक लिपिक धीरज कुमार अग्रवाल जो कि पूर्व में भी भ्रष्टाचार में लिप्त हैं व लोकायुक्त की जांच में भी आरोपी हैं सारा खेल उनके देख रेख में ही होता आया है जिसके लिए उनको जिलापूर्ति अधिकारी का पूरा सहयोग मिलता रहा है व जिले में तैनात वर्तमान जिलापूर्ति अधिकारी हिमांशु द्विवेदी भी धीरज अग्रवाल के क्रियाकलापों व पूर्व में किये गए भ्रष्टाचार पर पर्दा डालने का कार्य कर रहे हैं व जिले में हो रहे व्यापक खाद्यान्न घोटाले को आसानी से होने दे रहे हैं।
योगी राज में इस लोकडाउन कि परिस्थितियों में जहाँ सरकार हर तरफ देश में दाने दाने को सहेज कर गरीबों तक पहुँचा रहीं वहीं दूसरी तरफ धीरज कुमार अग्रवाल जैसे लिपिक बड़े अधिकारियों की सह पर जिले में करोड़ों के खाद्यान्न को माफियाओं के हाथों बेच कर सरकार की मंशा के विपरीत देश को खोखला कर रहे हैं अब देखना यह कि धीरज कुमार अग्रवाल जैसे भ्रष्टाचारी लोकायुक्त की लंबित जाँच में आरोपी होने के बावजूद भी कब तक सरकार की नीगाहों में आते हैं।