केंद्र सरकार ने पिछड़ेपन के आधार पर आरक्षण की बढ़ती मांग को देखते हुए नया आयोग बनाने का फैसला किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में कैबिनेट की बैठक में यह निर्णय लिया गया। नया आयोग वर्तमान में मौजूद राष्ट्रीय पिछड़ा आयोग की जगह लेगा। इसे संवैधानिक दर्जा भी दिया जाएगा। वर्तमान में मौजूद ओबीसी आयोग का संवैधानिक दर्जा नहीं है।ओबीसी आयोग को संवैधानिक दर्जा देने की मांग को लेकर सोमवार(20 मार्च) को ओबीसी कल्याण से जुड़ी संसदीय समिति ने प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात की थी। इसके बाद कैबिनेट ने इस मांग को मान लिया।
नए आयोग का नाम नेशनल कमीशन फॉर सोशल एंड एजुकेशनली बैकवर्ड क्लासेज (एनएसईबीसी) रखा जाएगा। इस आयोग की सिफारिश के बाद संसद पिछड़ा वर्ग में नई जातियों के नाम जोड़े जाने या हटाए जाने पर फैसला करेगी। इस आयोग के गठन के लिए संविधान संशोधन प्रस्ताव पेश किया जाएगा।
वर्तमान में ओबीसी सूची में जातियों के नाम जोड़ने या हटाने का काम सरकार के स्तर पर होता है। नया आयोग सामाजिक और शैक्षणिक आधार पर पिछड़ों को परिभाषित करेगा। देश के अलग-अलग राज्यों में कई जातियां आरक्षण की मांग कर रही है। हरियाणा में जाट आंदोलन नए आयोग का गठित किए जाने के फैसले के पीछे बड़ी वजह बताई जा रही है। कैबिनेट की बैठक में नेशनल कमीशन फॉर बैकवर्ड क्लास एक्ट 1993 को रद्द करने का फैसला किया गया है। इसके रद्द होने से वर्तमान में मौजूद ओबीसी आयोग भंग हो जाएगा। इसकी जगह संविधान संशोधन कर अनुच्छेद 338बी को जोड़ा जाएगा। नए आयोग में एक चेयरपर्सन, एक वाइस चेयरपर्सन और तीन सदस्यों को नियुक्त किया जाएगा।
जाटों ने पिछले कुछ सालों में आरक्षण की मांग को तेज किया है। पिछले दिनों उन्होंने दिल्ली कूच का ऐलान भी किया था। हालांकि बाद में केंद्र सरकार के आश्वासन के बाद उन्होंने इसे टाल दिया था। यूपीए सरकार ने जाटों को ओबीसी में शामिल कर लिया था लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे असंवैधानिक बताते हुए फैसले को पलट दिया था। कोर्ट ने कहा था कि केवल जाति के आधार पर आरक्षण नहीं दिया जा सकता। गुजरात में पाटीदार, राजस्थान में गुर्जर भी आरक्षण की मांग को लेकर लामबंद हैं। इन तीनों राज्यों में भाजपा की ही सरकार है और केंद्र में भी भाजपा का शासन है।