Sunday, December 15, 2024
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चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे से भारी कर्ज के जाल में फंस सकता है पाकिस्तान

SI News Today

चीन के सहयोग से बन रहे चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) को पाकिस्तान बेशक अहम परियोजना बता रहा हो लेकिन अर्थशास्त्रियों व विश्लेषकों का मानना है कि पाकिस्तान के पास इतने बड़े आधारभूत संरचना विकास की जरूरतों को समाहित करने की क्षमता नहीं है। इससे वह अनजाने ही बड़े कर्ज के जाल में फंस सकता है।
यह बात इंस्टीट्यूट आफ डिफेंस रिसर्च एंड एनालिसिस (आइडीएसए) की एक रिपोर्ट में सामने आई है। इसे संस्थान के विशेषज्ञ जैनब अख्तर ने तैयार किया है। अख्तर ने रिपोर्ट में कहा है कि गिलगित-बाल्टिस्तान, जो पहले उत्तरी क्षेत्र के रूप में जाने जाते थे और जम्मू-कश्मीर राज्य का हिस्सा थे, वे अब पाकिस्तान के कब्जे में हंै। यह इलाका सीपीईसी की घोषणा के बाद से सुर्खियों में है। इसमें कहा गया है कि सीपीईसी चीन की एक क्षेत्र-एक मार्ग पहल का हिस्सा है जिसे पाकिस्तान अपने लिए काफी अहम बता रहा है क्योंकि उसे इससे आर्थिक लाभ की उम्मीद है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान में सीपीईसी को लेकर आर्थिक व राजनीतिक चर्चा के बीच गिलगित-बाल्टिस्तान के लोगों की आशा व आकांक्षाओं को नजरंदाज किया जा रहा है। सीपीईसी के खिलाफ उठाई जाने वाली आवाज को मीडिया में कोई स्थान नहीं मिलता। पाकिस्तान में कोई भी यह साफतौर पर बताने की हालत में नहीं है कि सीपीईसी के व्यापक परिदृश्य में गिलगित-बाल्टिस्तान का क्या स्थान है। जहां तक विकास की बात है, गिलगित-बाल्टिस्तान पाकिस्तान के नियंत्रण वाले सबसे उपेक्षित क्षेत्रों में हैं। पाकिस्तान की सरकारों ने इस क्षेत्र को मुख्यधारा में लाने के लिए कोई प्रयास नहीं किया। भौगोलिक कारणों से इस क्षेत्र की सीमा चीन से लगती है। रिपोर्ट के अनुसार चीन ने इस क्षेत्र के सामरिक महत्त्व को देखते हुए 1950 में ही कराकोरम हाइवे के निर्माण का कार्य शुरू किया था जो 1978 में पूरा हो गया। चीन ने पूर्व की कुछ विकास परियोजनाओं के जरिए इस क्षेत्र में पैठ बनानी शुरू कर दी थी। सीपीईसी को चीन की ओर से पाकिस्तान में अब तक के सबसे बड़े निवेश के रूप में पेश किया जा रहा है। जबकि सीपीईसी को लेकर स्थानीय लोगों में असंतोष है क्योंकि पाकिस्तान सरकार ने इस परियोजना को लेकर कोई स्पष्ट खाका और नीति पेश नहीं की है। विभिन्न आकलनों और पूर्वानुमानों से साफ हो रहा है कि इस परियोजना के लिए करीब 50 अरब डालर के अनुमानित निवेश की बात कहने के बावजूद इस क्षेत्र को काफी कम लाभ होगा। ऐसी बातें भी सामने आ रही हैं कि इस परियोजना के संबंध में निवेश का बड़ा हिस्सा पंजाब प्रांत से लगे क्षेत्रों में किए जाने की योजना है।

विशेषज्ञ के अनुसार अर्थशास्त्रियों व विश्लेषकों का कहना है कि पाकिस्तान के पास इतने बड़े आधारभूत संरचना विकास की जरूरतों को समाहित करने की क्षमता ही नहीं है। वह अनजाने में बड़े कर्ज के जाल में फंस सकता है। पाकिस्तान को इस बारे में सचेत रहने की जरूरत है कि चीनी लोग कोई भी काम धर्मार्थ नहीं करते। इस कर्ज की ब्याज दर काफी ऊंची हो सकती है। पाकिस्तान को इस निवेश के एवज में कई तरह का भार करदाताओं पर डालना पड़ सकता है। ऐसे में यह देखना भी अहम है कि गिलगित-बाल्टिस्तान के लोग पाकिस्तान की ओर से दशकों से किए जा रहे सौतेले व्यवहार के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। कुछ लोग अधिक अधिकारों और प्रतिनिधित्व की मांग कर रहे हैं जबकि कुछ स्वतंत्रता की मांग भी कर रहे हैं। गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र में बेरोजगारी तेजी से बढ़ रही है। इसके कारण इस क्षेत्र से युवाओं का पलायन तेजी से हो रहा है। वे पाकिस्तान के विभिन्न क्षेत्रों और फारस की खाड़ी से लगे क्षेत्रों में पलायन कर रहे हैं।

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