वॉलीबाल के खिलाड़ी रहे नसीमुद्दीन सिद्दीकी अपने इष्ट मित्रों से अक्सर एक बाद शेयर करते रहते थे। हालांकि उनकी बातों में बास्केट बाल और वॉलीबाल का मिलाजुला खिलाड़ी नजर आता था। वह कहते देखो मैं खिलाड़ी रहा हूं। असली खिलाड़ी वही होता है जो सभी खिलाड़ियों के बीच से बाल निकाल कर आगे ले जाए। राजनीति में रहते उन्होंने ऐसा ही किया और उन्हें सतत सफलता मिलती रही। आज 27 साल बाद हालात बदले और हर दांव उलटा पड़ा। वह बाल और आगे नहीं ले जा सके। बसपा ने उन्हें उनके बेटे समेत पार्टी से निकाल दिया। उल्लेखनीय है कि 20 अप्रैल 1990 में बसपा संस्थापक कांशीराम ने बांदा जनसभा में रेलवे ठेकेदार नसीमुद्दीन सिद्दीकी को दल में शामिल करने का एलान किया। कुछ दिनों में वह मायावती के विश्वासपात्र हो गए। फिर एक के बाद एक खिलाड़ी की तरह आगे बढ़ते रहे। राजनीति की बाल करीब करीब उनके नियंत्रण में रही।
27 साल बाद
अब 10 मई 2017 को 27 साल बाद मायावती ने उन्हें व उनके पुत्र अफजल को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। बांदा के स्योढ़ा गांव में जन्मे नसीमुद्दीन सिद्दीकी वॉलीबाल के अच्छे खिलाड़ी थे। पहचान बनी तो बांदा नगर पालिका परिषद में ठेकेदारी करने लगे। कांग्रेस की राजनीति में दिलचस्पी दिखानी शुरू की। 1988 के नगर पालिका चुनाव में कांग्रेस का समर्थन हासिल करने का प्रयास किया, मगर कामयाबी नहीं मिली। नगर पालिका अध्यक्ष के चुनाव में वह हार गए।
डीएस-4 से नजदीकी
नसीमुद्दीन ने डीएस-4 से नजदीकी बढ़ाई। बुंदेलखंड में कांशीराम के दाहिने हाथ कहे जाने वाले व बसपा में प्रभावशाली दद्दू प्रसाद से मिलकर बसपा के लिए कार्य शुरू किया। 20 अप्रैल, 1990 को द्ददू प्रसाद ने बांदा में बसपा की रैली आयोजित की, जिसमें हिस्सा लेने पहुंचे कांशीराम ने डॉ.फहीम, बृजलाल कुशवाहा के साथ नसीमुद्दीन को बसपा में शामिल करने का एलान किया। 1991 के विधानसभा चुनाव में कांशीराम ने नसीमुद्दीन को बांदा सदर से प्रत्याशी बनाया। इस चुनाव में उन्होंने भाजपा के दिग्गज नेता व पूर्व सांसद राम रतन शर्मा को पराजित कर सीट जीत ली मगर 1993 में भाजपा प्रत्याशी राजकुमार शिवहरे से वह 958 वोटों से चुनाव हार गए। बावजूद इसके मायावती का करीबी होने से उन्हें संगठन में बड़े ओहदे मिलना शुरू हो गए।
कैबिनेट मंत्री का दर्जा
1995 में मायावती मुख्यमंत्री बनी तो उन्होंने नसीमुद्दीन सिद्दीकी को मंडी परिषद का अध्यक्ष नियुक्त करते हुए कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया। 1997 में वह पहली बार विधान परिषद में दाखिल हुए। 21 मार्च, 1997 को वे पहली बार मंत्री बने। बाद में वह मायावती की सरकार में प्रभावशाली मंत्री बनते रहे। वह एक बार विधान परिषद में नेता सदन और एक बार नेता प्रतिपक्ष भी रहे। 13 मई, 2007 से 7 मार्च, 2012 तक मायावती की पूर्णकालिक सरकार में वह 12 से अधिक महकमों के मंत्री रहे। इस दौरान प्राधिकारी क्षेत्र के विधान परिषद चुनाव में बसपा ने उनकी पत्नी हुस्ना सिद्दीकी को प्रत्याशी बनाया और वह विजयी रहीं। 2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा ने उनके पुत्र अफजल सिद्दीकी को फतेहपुर संसदीय क्षेत्र से प्रत्याशी बनाया। मगर वह चुनाव हार गए। नसीमुद्दीन मौजूदा समय में विधान परिषद के सदस्य हैं और उनका कार्यकाल 2021 तक है।
विवादों से नाता
बसपा में रहते हुए नसीमुद्दीन का विवादों से भी नाता बना रहा। जिन द्ददू प्रसाद ने उन्हें बसपा में प्रवेश दिलाया था, उन्हीं को पार्टी से बाहर कराने के आरोप नसीमुद्दीन पर लगे। पूर्व मंंत्री बाबू सिंह कुशवाहा को बसपा से निकलवाने की पृष्ठभूमि तैयार करने का इल्जाम भी उन पर ही लगा। बांदा के जिलाध्यक्ष रह चुके बाबू सिंह कुशवाहा को प्रदेश की राजनीति में खुद नसीमुद्दीन ही लाए थे। पार्टी से जब जिस नेता को निकाला गया है, उसने नसीमुद्दीन को भी आरोपों की जद में रखा। भाजपा नेता दयाशंकर सिंह की टिप्पणी का जवाब अभद्र भाषा में देने का इल्जाम भी नसीमुद्दीन पर लगा। दयाशंकर की पत्नी स्वाती सिंह ने उनके विरुद्ध पॉक्सो एक्ट के तहत केस दर्ज कराया और इसे महिला व बच्चों के उत्पीडऩ से जोड़ा।
बुंदेलखंड में बसपा का बड़ा चेहरा
नसीमुद्दीन सिद्दीकी बुंदेलखंड से बसपा के सबसे बड़े चेहरे रहे। इससे पहले बाबू सिंह कुशवाहा व दद्दू प्रसाद भी पार्टी से बाहर हो चुके हैं। यह बात अलग है कि हाल ही में दद्दू प्रसाद की वापसी हो चुकी है। बुंदेलखंड बसपा का मजबूत गढ़ रहा है। पार्टी के कई बड़े नेता बुंदेलखंड से ही जुड़े रहे हैं लेकिन, हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा की आंधी में पार्टी को अपेक्षित परिणाम नहीं मिले। यहां की सभी सीटें भाजपा के खाते में गईं। चुनाव परिणाम के लगभग दो माह बाद बसपा ने अपने सबसे कद्दावर नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी व उनके पुत्र अफजल को बाहर का रास्ता दिखाया है। इसकी खबर सुनते ही उनके समर्थक सन्न रह गए क्योंकि सिद्दीकी बुंदेलखंड से पार्टी के सबसे बड़े चेहरे के रूप में जाने जाते रहे हैं। देखा जाए तो मंत्री रहते उनके प्रयासों से बांदा को विकास की एक नई गति मिली जिसमें मेडिकल कॉलेज, कृषि विश्वविद्यालय, बाईपास, केन तटबंध जैसे कई बड़े प्रोजेक्ट शामिल हैं। वैसे तो बुंदेलखंड में बसपा के कई बड़े नाम हैं लेकिन, पार्टी में बांदा की खास पकड़ रही।