नेपाल में बीते दो दशकों में पहली बार हो रहे स्थानीय स्तर के चुनावों को लेकर रविवार (14 मई) को मतदान शुरू हो गया है। ये चुनाव देश में चल रही राजनीतिक उठापटक के बीच लोकतंत्र को मजबूत करने के लिहज से अहम हैं। चुनाव आयोग के कार्यालय ने कहा कि प्रांत संख्या तीन, चार और छह की 283 में से 281 स्थानीय इकाइयों में चुनावों का पहला चरण शांतिपूर्वक चल रहा है।
कार्यालय ने कहा कि दो स्थानीय इकाइयों में उम्मीदवारों को निर्विरोध चुना गया है। शेष स्थानीय इकाइयों में चुनाव हो रहा है। पहले चरण के चुनाव में कुल 49 लाख मतदाता मतदान के अधिकारी हैं। 281 स्थानीय निकायों में महापौर, उपमहापौर, वार्ड अध्यक्ष और वार्ड सदस्य के पदों के लिए लगभग 50 हजार उम्मीदवार दौड़ में हैं। प्रांत संख्या एक, दो, पांच और सात में दूसरे चरण का चुनाव 14 मई और 14 जून को होगा।
स्थानीय निकायों में 15 साल से भी अधिक समय तक निर्वाचित प्रतिनिधियों की गैरमौजूदगी के कारण देशभर के गांवों और शहरों में विकास बाधित हुआ है। इनमें राजधानी काठमांडो भी शामिल है। एक दशक तक चले माओवादी उग्रवाद के चलते 1997 के बाद स्थानीय स्तर के चुनाव आयोजित नहीं कराए जा सके। माओवादी उग्रवाद में 16 हजार से अधिक लोग मारे गए।
आदर्श स्थिति में चुनाव हर पांच साल में आयोजित किए जाने चाहिए लेकिन राजनीतिक अस्थिरता के चलते मई 1997 के बाद से ये चुनाव आयोजित नहीं हो रहे थे। प्रधानमंत्री प्रचंड ने कल मतदाताओं से अपील की कि वे वोट डालकर अपने संप्रभु मताधिकारों का इस्तेमाल करें।
प्रचंड ने एक बयान में कहा, ‘‘मैं सभी मतदाताओं से अपील करता हूं कि वे इस ऐतिहासिक स्थानीय स्तर के चुनाव में भागीदारी करें और अपने संप्रभु मताधिकारों का इस्तेमाल करें। एक लोकतंत्र में लोग चुनाव के जरिए अपने संप्रभु अधिकारों का प्रयोग कर सकते हैं।’’
प्रचंड ने कहा, ‘‘एक ओर, स्थानीय चुनाव नेपाल की शांति प्रक्रिया को एक तार्किक निष्कर्ष तक पहुंचाने में एक सेतु का काम करते रहे हैं, वहीं दूसरी ओर इन्हें एकल और केंद्रीयकृत शासन प्रणाली को खत्म करने और संघीय शासन व्यवस्था की स्थापना करने वाले मील के पत्थर के तौर पर देखा जा सकता है।’’
प्रधानमंत्री ने कहा कि ये चुनाव सिंह दरबार (केंद्रीय सरकार सचिवालय) में केंद्रित अधिकारों और संसाधनों को जनता के दरवाजे तक पहुंचाने के द्वार खोल देंगे। नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता चल रही है।
बहरहाल, बड़े मधेसी समूह (राष्ट्रीय जनता पार्टी नेपाल) ने पहले चरण के चुनवों के बहिष्कार का फैसला किया है। वहीं दो अन्य मधेसी दल (फेडरल सोशलिस्ट पार्टी) और (मधेसी पीपल्स फोरम डेमोक्रेटिक) चुनावों में हिस्सा ले रहे हैं। कुछ मधेसी केंद्रित दलों ने तब तक के लिए चुनावों का विरोध किया है, जब तक संविधान को उनके विचार समाहित करने के लिए संशोधित नहीं कर दिया जाता। उनके इन विचारों में संसद में अधिक प्रतिनिधित्व देने और प्रांतीय सीमाओं का परिसीमन किए जाने की बात शामिल है।
नेपाल सरकार ने आंदोलनरत मधेसी दलों की मांगों को पूरा करने के लिए संसद में नया संविधान संशोधन विधेयक पेश किया है। सितंबर 2015 और फरवरी 2016 के बीच लंबा आंदोलन करने वाले मधेसियों में अधिकतर लोग भारतीय मूल के हैं। इनका आंदोलन नए संविधान को लागू किए जाने के खिलाफ था। इनका मानना है कि इसने तेरई समुदाय को हाशिए पर डाल दिया है।