वचन क्यों जाए
त्रिवेंद्र सिंह रावत की छवि बेदाग और सख्त प्रशासक की रही है। जब मंत्री थे तभी बना ली थी अपनी धाक। अब तो खैर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नसीहतों का डर भी ठहरा। लेकिन केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी से अपेक्षित सहयोग नहीं मिल रहा। मामला उत्तराखंड के हरीश रावत सरकार के दौर के राष्ट्रीय राजमार्ग घोटाले से जुड़ा है। त्रिवेंद्र चाहते हैं कि इस घोटाले की जांच सीबीआइ करे। लेकिन नितिन गडकरी ने उन्हें चिट्ठी लिख कर उनके मंसूबे पर पानी फेर दिया था। तो भी त्रिवेंद्र ने हार नहीं मानी। दिल्ली पहुंच कर गडकरी को स्थिति समझाई। यह भी कि अगर सीबीआइ जांच न हुई तो भाजपा और सूबे की सरकार दोनों की ही हो जाएगी बदनामी। मुलाकात के बाद पत्रकारों से दो टूक कहा कि इस घोटाले के दोषी किसी भी हालत में बच नहीं पाएंगे। दरअसल पेंच कुछ और फंस गया है। कांग्रेस सरकार के वक्त हुए इस घोटाले में फंसे एक नेता अब भाजपा में हैं। जिन्होंने पार्टी आलाकमान पर दबाव बनाया है कि गड़े मुर्दे उखाड़ने से कुछ हासिल नहीं होगा। ये महाशय फिलहाल त्रिवेंद्र की सरकार में मंत्री हैं। पार्टी और सरकार के बीच ऊहापोह को देख कांग्रेस मैदान में कूद पड़ी है। वह भाजपा को ही खड़ा कर रही है अब कठघरे में। इसी को तो कहते हैं कि उलटा चोर कोतवाल को डांटे।
कुनबे की कलह
बकरे की मां आखिर कब तक खैर मनाएगी। राजस्थान भाजपा की हालत बकरे जैसी ही चल रही है पिछले काफी समय से। अंदरूनी कलह से चिंतित पार्टी आलाकमान को अब कुछ करना ही पड़ेगा। अगले साल होने हैं सूबे में विधानसभा चुनाव। लिहाजा संगठन को भी दुरुस्त करना पडेÞगा और सरकार की चाल ढाल को भी नजरअंदाज नहीं रखा जा सकता अब। संगठन की हालत तो ऐसी माशा अल्लाह बन गई है कि पदाधिकारियों का कोई अता पता नहीं होने से कार्यकर्ता असमंजस की स्थिति में है। संगठन पर भी सत्ता हावी है। विधायकों की तो तूती बोल रही है, पर पार्टी पदाधिकारी अपने ही राज में खुद को उपेक्षित पा रहे हैं। भाजपा में तो कार्यकर्ताओं के आलाकमान व सरकार के बीच सेतु की भूमिका संगठन महामंत्री ही अदा करता है। यह पद खाली रहने से आलाकमान तक भी सही तस्वीर नहीं पहुंच पा रही है। सबसे वरिष्ठ विधायक घनश्याम तिवाड़ी ने सरकार बनने के बाद विचारधारा की अनदेखी और भ्रष्टाचार के विरोध में आवाज जरूर उठाई। पर उन्हें इसका इनाम तीन साल बाद अनुशासनहीनता के नोटिस के रूप में दिया गया है। हालांकि जवाब में तिवाड़ी ने हकीकत को उजागर कर दिया है। उधर विधायक किरोड़ी लाल मीणा की पार्टी में वापसी की संभावना ने पार्टी के मीणा नेताओं को बेचैन कर दिया है। तिवाड़ी की तरह मीणा भी तो मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के कट्टर आलोचक माने जाते हैं। उनकी वापसी के पीछे योग गुरु रामदेव व आलाकमान का आपसी संपर्क माना जा रहा है। वसुंधरा खेमे को लगता है कि एक आलोचक तिवाड़ी बाहर होंगे तो दूसरे आलोचक मीणा आ जाएंगे। गुटबाजी जिला स्तर तक पहुंच चुकी है। हर जिल में मंत्री और विधायक के साथ पार्टी पदाधिकारियों की अनबन है। मंत्रियों के विरोध में कार्यकर्ताओं को जयपुर में भटकते देख सकते हैं। उदयपुर में गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया और राज समंद में शिक्षा मंत्री किरण माहेश्वरी के समर्थकों व विरोधियों की रस्साकशी किससे छिपी है। यही माजरा चुरू में राजेंद्र्र राठौड, टौंक में प्रभुलाल सैनी और सांसद सुखबीर सिंह जौनपुरिया के बीच तनातनी ने बनाया है। गुटबाजी से करौली, धौलपुर, सवाईमाधोपुर, जालौर, पाली, सीकर और झुंझनु जैसे जिलों में भी संगठन त्रस्त है। हालांकि विधायकों और पार्टी पदाधिकारियों की अपनी व्यथा ठहरी। नौकरशाही के हावी होने का उनका रोना सनातन ठहरा। सरकार की छवि अगर बिगड़ी है तो योगदान संगठन की भीतरी कलह का भी तो कम नहीं।
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