8 नवंबर, 2016 को रात 8 बजे जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 500 व 1,000 रुपए के नोटों को बंद करने का ऐलान किया। इसके बाद अगले चार-पांच महीने इस फैसले से पैदा हुई स्थिति को संभालने में लग गए। फैसले के बाद, पक्ष और विपक्ष में कई तर्क दिए गए, कई गणमान्य हस्तियों, उद्योगपतियों, पत्रकारों ने अपनी राय जाहिर की। फैसले के आलोचकों ने इसे ‘आपदा’ बताया तो समर्थकों को इसमें नरेंद्र मोदी का ‘मास्टरस्ट्रोक’ दिखा। फैसला लिए 8 महीने हो चुके हैं मगर धरातल पर हालात अभी भी पूरी तरह बहाल नहीं हो सके हैं। विभिन्न संस्थानों, रिसर्च फर्मों और खुद रिजर्व बैंक ने नोटबंदी की वजह से अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव की बात मानी है। नोटबंदी के फैसले का पुरजोर समर्थन करने वाले दक्षिणपंथी मैगजीन ‘स्वराज्य’ के संपादक आर जगन्नाथन ने यह माना है कि उन्होंने इस बारे में गलत अनुमान लगाया। जगन्नाथन ने मैगजीन में लिखे एक लेख में कहा है कि ‘यह मिया कल्पा (गलती मानने) का समय है।’
जगन्नाथन अपनी राय में बदलाव की वजह बताते हुए लिखा है कि ‘अब, खासकर कर्ज माफी के लिए किसान आंदोलन के बाद, मुझे लगता है कि नोटबंदी के बहीखाते में लाभ के मुकाबले हानि का कॉलम ज्यादा भरा है। यह (नोटबंदी) फेल हो गया।” वह लिखते हैं, ”मोदी के 500 व 1,000 रुपए के नोटों को अवैध घोषित करने के 7 महीने बाद, हालात ये हैं कि खर्च, फायदों पर भारी पड़ रहा है। और किसान कर्ज माफी का नोटबंदी से सीधा जुड़ाव है।”
जगन्नाथन के अनुसार, किसानों के बढ़ते विरोध और नोटबंदी में संबंध है। वह लिखते हैं, ”अब यह स्पष्ट तौर पर कहा जा सकता है कि नोटबंदी वह आखिरी कदम था जिसने किसानों की कमर तोड़ दी, और किसानों के विरोधों की श्रृंखला तथा कर्ज माफी की राजनैतिक मांग उठनी शुरू हुई।” जगन्नाथन के मुताबिक, ”नोटबंदी से इतना नुकसान होगा जितना पहले कभी नहीं हुआ। लगातार पड़े दो सूखों ने भी नोटबंदी जितना आघात नहीं पहुंचाया था। पिछले तीन सालों में मोदी सरकार द्वारा दिखाया गया अच्छा काम राज्य सरकार के समाजवादी के बुलबुले से धुल जाएगा।”
जगन्नाथन ने नरेंद्र मोदी के बारे में लिखा है, ”काले धन की कमर तोड़ने के लिए कड़े फैसले लेने वाले बोल्ड नेता जैसा बनने की सोचना अच्छा है, मगर यह ठीक बात नहीं कि इसे आधे-अधूरे तरीके से किया जाए और उस काम में भारतीय अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ दी जाए।