उत्तराखंड की केदारघाटी में आई विनाशकारी आपदा के घाव चार साल बाद भी नहीं भरे हैं। 16 जून 2013 में केदारघाटी दैवीय आपदा के कारण पूरी तरह तबाह हो गई थी। कई माताओं की गोद सूनी हो गई थी तो कई का सिंदूर उजड़ गया था और कई बच्चों के ऊपर से मां-बाप का साया ही उठ गया था। यह आपदा ऐसे जख्म दे गई थी जिन्हें जीवनभर नहीं भरा जा सकता है। केदारघाटी का गौरी कुंड, रामबाड़ा, घिनुर, बडासू, भणिग्राम, लमगौंडी, देवली जैसे दर्जनों गांव चार साल पहले आई दैवीय आपदा की कहानी आज भी बयां कर रहे हैं। बडासू गांव के दो दर्जन बच्चों को केदारनाथ हादसा लील गया था।
केदारनाथ आपदा के चार साल बाद भी प्रभावित गांवों में कोई खास सुधार नहीं आया है। तब बहे कई पुल तथा सडकें आज भी नहीं बनी हैं। कई गांवों में आवागमन के लिए गांववालों ने लकड़ी के फट्टों से कामचलाऊ पुुल बना रखे हैं। मंदाकिनी नदी ने तब रामबाड़ा समेत कई गांवों का अस्तित्व ही मिटा दिया था। मंदाकिनी नदी पर दो दर्जन से ज्यादा गांवों में संपर्क के लिए कई जगहों पर झूला पुल बने हुए थे। ये अब तक नहीं बन पाए हैं।
सोनप्रयाग का तो नक्शा ही बदल गया
केदारनाथ आपदा में गौरी कुंड का बहुत बड़ा हिस्सा तबाह हो गया था। सोनप्रयाग का तो नक्शा ही बदल गया था। यहां आपदा के दो साल बाद राज्य सरकार ने मंदाकिनी नदी के किनारे तकरीबन 95 लाख रुपए की लागत से लगभग 32 मीटर की सुरक्षा दीवार बनाई थी। जो बारिश के कारण ढह गई। मंदाकिनी नदी में चंद्रापुरी और विजयनगर कस्बों को जोड़ने के लिए दो झूला पुल बनने थे, जो आज तक नहीं बन पाए हैं। इन पुलों के न बनने से करीबन 150 गांवों का संपर्क इन दोनों कस्बों से अभी तक कटा हुआ है।
सरकारी आदेश ठेंगे पर
आपदा के बाद राज्य सरकार ने उत्तराखंड में नदी के तट से 200 मीटर की दूरी तक हर तरह का निर्माण कार्य रोक दिया था, परंतु इसके बावजूद कई गांवों में कुछ जगहों पर नदी के किनारे बेरोक टोक निर्माण जारी है। केदारनाथ आपदा के बाद इस क्षेत्र में 1964 किलोमीटर लंबी 113 सड़कों में केवल 104 पर ही काम शुरू हुआ है। पाया है। घाटी में 2500 लोगों को आवास बनाने के लिए पांच लाख रुपए चार किस्तों में दिए जाने के शासनादेश हुए थे। परंतु अभी तक 412 लोगों को ही पहली किस्त मिली है।
निर्माण का जिम्मा पर्वतारोहण संस्थान को
केदारनाथ हादसे के बाद नौ महीने बाद इस क्षेत्र में निर्माण कार्यों का जिम्मा मार्च 2014 में उत्तरकाशी के नेहरू पर्वतारोहण संस्थान ने संभाला था। तीन साल से संस्थान इस क्षेत्र के पुननर््िार्माण के काम में लगी है। संस्थान के प्रमुख कर्नल अजय कोठियाल के नेतृत्व में यह अभियान चल रहा है। इस क्षेत्र के लोग नेहरू पर्वतारोहण संस्थान पर ज्यादा भरोसा करते हैं।
455 गांव अभी भी संवेदनशील
चिपको आंदोलनकारी रमेश पहाड़ी का कहना है कि 2013 में केदारनाथ आपदा के बाद करीब 455 से ज्यादा गांव अत्यंत संवेदनशील बने हुए हैं। इन्हें सुरक्षा के लिहाज से रहने लायक नहीं माना गया है। इन गांवों का पुनर्वास तथा विस्थापन होना है। परंतु इस दिशा में कोई कार्य नहीं हुआ है। इसके लिए राज्य सरकार को करीब 9000 करोड रुपए की जरूरत है। परंतु अभी तक केंद्र सरकार से इन गांवों के पुनर्वास के लिए आर्थिक सहायता नहीं मिल पाई है जबकि राज्य सरकार के पास इन गावों के विस्थापन के लिए आर्थिक संसाधनों का टोटा है।
केदारनाथ आपदा के बाद जो संवेदनशील गांव चिन्हित किए गए थे, उनका पुनर्स्थापन करने की योजना राज्य सरकार बना रही है। भविष्य में आपदा से निपटने के लिए राज्य के आपदा प्रबंधन विभाग और एनडीआरएफ तथा अन्य विभागों को मुस्तैद किया गया है।