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भाजपा-प्रधान अमित शाह तीन दिन लखनऊ में प्रवास किये प्रवास-समाप्ति यानि कि दिल्ली वापसी से पहले सिर्फ औपचारिता पूर्ती के लिए प्रदेश-कार्यालय में “पतकार-फटकार सम्मेलन” मीडिया के वास्ते किया गया, “पतकार-फटकार सम्मेलन” के शुरू में शाह ने मीडिया-जनों को आस्वश्त किया था मेरे पास पर्याप्त समय है और आखिरी तक पत्रकारों के सवाल का जवाब दे कर ही जाऊंगा लेकिन यह क्या मनमाफिक सवाल ना होने पर उत्तर देने की बजाय उखड़े-उखड़े शाह घास काटते दिखे और “पतकार-फटकार सम्मेलन” के संचालकों को खुले-आम डपटा डेढ़ दो दर्जन पत्रकारों के सवालों के गोलमोल जवाब तो दिए लेकिन अहंकारी शाह उन पत्रकारों से साफ़ बचते रहे जो छिले-छिलाये और नोकदार सवाल करने के लिए पहचान रखते हैं संचालकों ने गोलबंद हो कड़क मिजाजवालों के सवालों के प्रहार से शाह को बचाये रखा,
“पतकार-फटकार सम्मेलन” में शाह के उत्तर की बानगी देखें उनसे राज्य और राजधानी में कानून-व्यवस्था के पटरी से उतरने के साथ ही लूट और जघन्य अपराधों की बाढ़ आने और तंत्र के निक्क्मे-रुख का उल्लेख कर योगी-सरकार के कामकाज पर टिप्पणी चाही तो शाह ने बगल में बैठे मुख्यमंत्री योगी को निहारते हुए कहा कानून-व्यवस्था की कसौटी पर परखने के लिए कुछ महीने और मिलें वाह-वाह शाह जी मतलब प्रदेशवासियों को आपराधिक घटनाओं से अभी और रूबरू रहने को मजबूर रहना होगा, मेरे जैसे ढाई-दशक से अधिक मीडिया-अनुभव के चलते समझ का लब्बोलुभाव यह है “भगवा-भाजपा सरकार” में योगी के द्वारा उत्तर-प्रदेश राज्य की कमान संभालना ऐसे ही है जैसे अखिलेश और मायावती के आत्ममुग्ध कार्यकाल को जनता ने बखूभी झेला है…