कानपुर: कृत्रिम बारिश से प्रदूषण खत्म करने के लिए आइआइटी तैयार है। सिविल इंजीनियरिंग विभाग में प्रो. सच्चिदानंद त्रिपाठी पिछले 11 साल से कृत्रिम बादल पर शोध कर रहे हैं। नेशनल रिमोट साइंसिंग सेंटर के एयरक्राफ्ट से उन्होंने इस पर काफी कार्य किया है। 70 से 80 घंटे रिसर्च करके प्रो. त्रिपाठी ने यह पाया कि पर्यावरण की स्थिति, बादलों के बनने की स्थिति व एयरोसोल की स्थिति समझकर कृत्रिम बारिश कराई जा सकती है। लखनऊ में प्रदूषण दूर करने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आइआइटी की मदद से कृत्रिम बारिश कराने की बात कही है।
क्लाउड-सीडिंग करने के लिए विमान की मदद ली जाती है। विमान में सिल्वर आयोडाइड के दो बर्नर या जनरेटर लगे होते हैं, जिनमें सिल्वर आयोडाइड का घोल उच्च दाब पर भरा होता है। जिस क्षेत्र में यह प्रयोग करना है उसमें विमान हवा की उल्टी दिशा में चलाया जाता है। सही बादल से सामना होते ही बर्नर चालू कर दिए जाते हैं। उड़ान का फैसला मौसम के आंकड़ों के आधार पर किया जाता है। प्रो. त्रिपाठी ने बताया कि 2008 में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग की ओर से उत्तर भारत में क्लाउड-सीडिंग पर परीक्षण किया गया था। वह इस प्रोजेक्ट में प्रिंसिपल इंवेस्टीगेटर के रूप में शामिल थे। 2009 में उन्होंने एयरक्राफ्ट के साथ बादलों का अध्ययन किया, यह प्रयोग भी सफल रहा।
प्रो. त्रिपाठी ने बताया कि बादलों को अगर छुएं तो उसमें पानी व बर्फ के अंश होते हैं। कृत्रिम बारिश के लिए हम यही बनाते हैं। क्लाउड-सीडिंग के लिए बादल में पर्याप्त मात्रा में अति-शीतल तरल पानी मौजूद होना चाहिए। बादल पर्याप्त गहरे होने के साथ उनका तापमान निश्चित परास के अंदर हो। बादल से बरसने वाले बर्फ कण अन्य बादल कणों से मिलकर बड़े हो जाते हैं। ये बर्फ के कण जब बरसते हुए नीचे आते हैं तो तापमान के अनुसार पानी की बूंदों के रुप में या बर्फ के रुप में गिरते हैं। प्रो. सच्चिदानंद त्रिपाठी ने बताया कि प्रदेश सरकार के लिए आइआइटी काम करने को तैयार है। अगर उनके पास ऐसा कोई प्रस्ताव आता है तो उस पर काम किया जाएगा।