फिर वर्ष 2010 में कंगना रनौक, ऋतिक रोशन और बारबरा मोरी को लेकर ‘काइट’ बनाई। वर्ष 2012 में ‘बर्फी’ ने ऐसा रंग बिखेरा कि उनकी दुनिया अचानक अंतरराष्ट्रीय फलक पर छा गई। यह फिल्म भारत में तो वाणिज्यिक तौर पर कामयाब रही ही-बुसान, ताईपेई और मोरक्को फिल्म समारोहों में भी चुनी गई और देखी-सराही गई। ‘जग्गा जासूस’ भी बनाई और इस फिल्म की शूटिंग दक्षिण अफ्रीका के केपटाउन में की। इस फिल्म को लेकर कुछ विवाद भी रहे, पर चीजें ठीकठीक हो गईं।
जयनारायण प्रसाद
फिल्मकार अनुराग बसु से मिलना बहुत आसान भी है और कठिन भी। कठिन इसलिए कि वे बहुत व्यस्त रहते हैं और आसान इसलिए कि उनकी फिल्मों को बारीकी और गहराई से देखने-समझने वालों की तलाश उन्हें हमेशा रहती है। छत्तीसगढ़ के भिलाई में जन्मे और वहीं पले-बढ़े अनुराग का खानदानी और खूनी रिश्ता महानगर कोलकाता से भी है। कोलकाता के व्यस्ततम गरिया इलाके में भी उनकी जिंदगी गुजरी है। पुणे के फिल्म एंड टीवी संस्थान यानी एफटीटीआई में सिनेमा की पढ़ाई के मकसद से मुंबई पहुंचे अनुराग ने मुंबई विश्वविद्यालय से फिजिक्स आॅनर्स में बीएससी तो किया, लेकिन सिनेमा का कोर्स नहीं कर सके।
ओबेराय ग्रैंड कोलकाता में भेंट में उन्होंने बताया कि मुंबई में पढ़ाई के दौरान ही निर्देशक रमन कुमार के वे सहायक बन गए। उस समय रमन कुमार हिंदी धारावाहिक ‘तारा’ बना रहे थे।
कुछ दिन काम करने के बाद वहां से मुक्ति मिली तो उन्होंने अपनी एक टीवी कंपनी बना ली और लगातार कई हिंदी धारावाहिकों का निर्माण-निर्देशन किया। उन्होंने कहा- छत्तीसगढ़ का एक लड़का मुंबई आकर संघर्ष करे और अपना मकसद पूरा करे, यह उन्हें आज भी चकित करता है। वर्ष 2003 के आसपास उ्नन्होंने फिल्मों में प्रवेश किया। एकता कपूर की फिल्म निर्माण कंपनी के जरिए ‘कुछ तो है’ फिल्म बनाई। ‘कुछ तो है’ में तुषार कपूर, ईशा देओल और अनिता हंसानानदानी थी। बदकिस्मती से यह फिल्म बीच में ही उन्होंने छोड़ दी और फिर एक दूसरी प्रोडक्शन कंपनी से जुड़ गए। इसी दौरान उन्होंने ‘साया’ फिल्म बनाई, लेकिन यह नाकाम रही।
वर्ष 2004 में उनकी किस्मत बदलती दिखी। उन्होंने ‘मर्डर’ फिल्म बनाई। यह बॉक्स आॅफिस पर छा गई। तभी ल्यूकेमिया कैंसर का पता चला। यह तो भगवान और चाहनेवालों का शुक्रगुजार हूं कि जिंदगी बच गई। फिर ‘लाइफ इन ए मेट्रो’ बनाई। यह संगीतकार प्रीतम के साथ उनकी पहली फिल्म थी। उसके बाद ‘तुम-सा नहीं देखा’ बनाई। अनुराग बताते हैं कि जिंदगी जोखिम भरी जरूर है, पर ईमानदारी से मेहनत करें तो यह दगा नहीं देती। जिंदगी अपनी रफ्तार से चलती है। हां, मेहनत एक दिन रंग जरूर लाती है।