अमित मासूरकर के निर्देशन में बनी न्यूटन को ईरानि की फिल्म सीक्रेट बैलेट की कॉपी बताया जा रहा था। इन खबरों को डायरेक्टर ने सिरे से खारिज कर दिया है। इन खबरों की वजह से ऑसक्र के लिए भारत की तरफ से विदेशी भाषा की श्रेणी में भेजी गई आधिकारिक फिल्म पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। लोग इसकी काफी आलोचना कर रहे हैं। यह फिल्म एक चुनाव अधिकारी की कहानी बयां करता है जिसे छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित इलाके में चुनाव कराने की जिम्मेदारी सौंपी जाती हैं।
हुई बातचीत में अमित मासूरकर ने कहा- यह सबसे ज्यादा अच्छा होगा अगर लोग निर्णय लेने और आर्टिकल लिखने से पहले दोनों फिल्मों को देख लेंगे। हमने सीक्रेट बैलेट के बारे में सुना तक नहीं था जब हम स्क्रिप्ट लिख रहे थे। न्यूटन जड़ों से जुड़ी हुई है। अगर यह किसी फिल्म की कॉपी होती तो क्या आपको लगता है कि बर्लिन और ट्रिबेका इसे प्रोग्राम करते? दूसरी फिल्म ने कई अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार जीते हैं। न्यूटन किसी फिल्म की कॉपी नहीं है। यहां तक कि यह किसी से प्रेरित भी नहीं है।
इन दोनों फिल्मों की कहानियों के मुद्दे एक जैसे हैं। दोनों फिल्मों की कहानियों में पिछड़े इलाके में चुनाव होने के दौरान आने वाली परेशानियों को लेकर फिल्म बनाई गई है। इन दोनों कहानियों के मुख्य कलाकारों को एक सरकारी कर्मचारी के रूप में दिखाया जाता है, जो कठिन परिस्थितियों में चुनौती स्वीकार करते हुए चुनाव की प्रक्रिया में बाधा नहीं आने देता। वहीं दोनों फिल्मों में सरकारी कर्मचारी के साथ एक सिक्योरिटी अधिकारी भी दिखाया जाता है। यह किरदार दोनों ही फिल्मों में सरकारी कर्मचारी को कदम-कदम पर चुनाव न करवाने की बात करता है।
नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के बारे में एक धारणा है कि यहां होने वाले चुनाव को सुरक्षा एजंसियां यानी सेना या सीआरपीएफ अपने तरीके से नियंत्रित करती हैं। निर्देशक अमित मसूरकर की यह फिल्म इसी मुद्दे को दिखाती है। इसमें राजकुमार राव ने न्यूटन नाम के एक ऐसे सरकारी कर्मचारी की भूमिका निभाई है, जो छत्तीसगढ़ के एक नक्सल प्रभावित क्षेत्र में चुनाव अधिकारी बन कर जाता है