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विवेक मिश्रा – हजरत मोहम्मद ने फरमाया है कि ख्याल रखिए कि आपकी छत आपके पड़ोसी की छत से ऊंची न हो। समाज में बराबरी कायम रहे इसलिए उन्होंने ऐसा फरमाया। हमारी ऊंची छत किसी दूसरे के छत को नीचा करती है। हमारे भीतर गुमान और अहंकार भरती है। बहुत खूबसूरत बात है, अमल में आए तो इंसान बहुत ऊंचा उठ जाएगा।
बचपन में हम ऐसे ही ऊंचाई पर रहना पसंद करते थे। पहले हम आम थे। घर-आंगन में भी आम-अमरुद के पेड़ थे। खूब फल लगते थे। आस-पड़ोस सब खुशहाल थे। फलदार पेड़ उन्हें खूब भाता था। बौर, बतिया, गद्दर न जाने कैसे-कैसे नाम। अचानक मिट्टी-पानी बदल गया। आम-अमरुद फरना बंद हो गए। फल वाले पेड़ , फल के साथ ही अच्छे लगते हैं। सूने हो जाएं तो उनकी शोभा चली जाती है। फिर भी आपका बच्चा कमाए नहीं तो उसे मार थोड़ी देंगे।
अब आस-पड़ोस को सूना पेड़ अखरने लगा। सब परेशान हो गए। कमासुत बच्चा आस-पड़ोस को भी अच्छा लगता है। यह पेड़ क्या देता है? आंगन में सूखे पत्तों की गंदगी? आंगन की सफाई करना कितना बड़ा काम हो जाता है, तरह-तरह की बातें होनी लगी। बेचारे आम के पेड़ को लेकर। हमारे लिए तो बिना फल वाला घना आम का पेड़ भी अजीज था। हमारे घर के बाहर से जिन्हें यह सिर्फ आम का पेड़ दिखता था वह हमारे घर के लिए बहुत खास था।
हमारा परदा था। आज वह परदा फट गया। पेड़ कट कर गिर चुका है। सब बवाल की जड़ खत्म हुई। अब सब खुला-खुला है। सिर्फ ऑक्सीजन ही तो देता था यह आम का पेड़। कोई खास तो था नहीं। कभी-कभार पूजा-पाठ में आम की पत्तियां ही तो इस्तेमाल होती थीं। फिर आस-पास पेड़ दीखाई दे तो अब हमें कहां अच्छा लगता है। घर की शोभा चली जाती है। जिसके घर में पेड़ लगा है उसकी नहीं। जिसके घर के सामने पड़ जाए उसकी । इसीलिए तो आम का पेड़ काटने वाले को एक बोतल फ्री पिलाने के लिए समाज तैयार है। जैसा काम करवाना है वैसी ही पेशकश। पेड़ काटने का ईनाम शराब की बोतल ही होनी चाहिए। कोई नशे में धुत आदमी ही ऐसा कर सकता है। पेड़ काटने वाला जरूर नशे में ही होगा और ऐसा चाहने वाला भी।
कुछ तो शर्म करो विवेक एक दीवार नहीं उठा रहे, पेड़ से कब तक काम चलेगा। सही बात है, मुझे शर्म करनी चाहिए क्योंकि मेरे घर का पेड़ कटा है। आपको अट्टाहास करना चाहिए क्योंकि आपके घर के सामने का एक पेड़ कटा है। वही पेड़ जो ढ़ेर सारी सूखी पत्तियां आंगन में गिरा कर गंदगी कर देता है।
अब शोभा सिर्फ गमले में है। हरियाली सिर्फ एलीट पौधों में हैं। हमारे एक मित्र सही कहते हैं कि हम बरगद को भी बोनसाई बनाकर गमले में लगा रहे हैं। यह हमारी सोच है। अनुपम जी भी सही कहते थे पहले विचारों का ही अकाल आता है। आज मेरे घर से पेड़ कट गया। कल दूसरे घर से कटेगा। परसो और घरों में। धीरे-धीरे पूरे मोहल्ले में। आखिर हमें पेड़ों की क्या जरूरत है। पेड़ की बात आज के जमाने में कोई बेहद गरीब आदमी ही करेगा। हां भाई हम तो गरीब ही हैं। विचारों से नहीं। हमें अहंकार, पैसा, ताकत, घमंड, सत्ता और अपनी छवि कमाने की जरुरत नहीं है। बस दुख है यह जो हुआ उससे।
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