पुष्पेंद्र प्रताप सिंह -कल पूरे भारत अपितु विश्व के कई देशों में विजयदशमी का पर्व मनाया गया। बचपन से सुनता आ रहा हूँ कि बुराई पर अच्छाई की जीत हुई है। लेकिन ऐसा केवल सुनता आ रहा हूँ देखने को कम ही मिलता है। एक प्रकांड विद्वान 10 सिर वाले अपनी बहन के आत्मसम्मान के लिए भगवान विष्णु अवतार श्री राम से लड़ जाने वाले योद्धा। दूसरे की पत्नी का अपहरण कर लेने के बावजूद भी अपनी मर्यादा को न भूलने वाले एक लंकापति को बुराई का प्रतीक मान कर सदियों से उसको जला कर खुश होते जन समुदायों के चेहरों पर लालिमा देख कर विचार करता हूँ , कि क्या बुराई का, प्रतीक मात्र ही जलेगा। असली बुराई का क्या जो मेरे आपके और इनके मन में बसी है। आज अगर रावण इस भारत की धरती पर आ जाये तो हो सकता है जिस जुल्म की सज़ा जन्मो जन्मांतर से वो पा रहा है,भारतीय दंड सहिंता में शायद ही 10 साल से ज्यादा कि सज़ा उसको मिले। और हाँ अगर उसका मुकदमा जेठमलानी या कपिल सिब्बल जैसे वकीलों को मिल जाये तो हो सकता है कि रावण भी उल्टा लक्ष्मण जी पर क्रॉस एफ.आई.आर दर्ज करके उन पर 307 और भी कई गंभीर धाराओं में मुकदमा पंजीकृत करवा कर उनको जेल भेजवा दे, या मामला सुलह कर ले। एक बात आज तक समझ नही आई कि अगर सुपनखा अपने प्रेम का इज़हार कर रही थी तो उसकी नाक काटने की क्या जरूरत थी। और इतने बड़े अपराध के लिए मर्यादा पुरुषोत्तम ने लक्ष्मण जी को एक बार डांट भी नही लगाई। खैर मर्यादित व्यक्तियों को अक्सर मैने चुप ही देखा है। और मर्यादित पुरषोत्तम रामों की यही चुप्पी तो आज समाज मे रावण से भी कई गुना बड़े रावणो को जन्म देने में एक बड़ी वजह भी है। अगर रावण और आज के व्यक्ति में तुलनात्मक अध्ययन किया जाए तो आज के समाज के लिए रावण एक पूर्ण सफल व्यक्ति के रूप में अपने को स्थापित करेगा। क्योंकि उसके पास 10 सर हैं जिसका मतलब उसके पास 10 अवगुण हैं जैसे काम,क्रोध,लोभ,मोह,अहंकार,ईर्ष्या, द्वेष,आलस्य,छल,हठ। और भाई मेरे अब आज के समय मे ये कोई अवगुण नहीं है। इनमे से कई आदत है और कई इस युद्धक्षेत्र रूपी समाज मे सफलता का मूल मंत्र है जो रावण के पास था। अगर इन गुणों के आदमी को आज राक्षस कहा गया और उसका पुतला फूंका गया तो मुझको लगा की आज पूरे भारत मे पाखंडी बलात्कारी हत्यारे राम रहीम का पुतला तो जलाया ही जायेगा। लेकिन कहाँ भाई कौन वोटबैंक में सेंध लगवाए। अब रावण तो श्रीलंका का था उसका तो भारत मे वोट बैंक ही नहीं है नहीं तो रावण भी आज न जला होता। खैर जो भी हो रावण हो या राम रहीम जो भी गलती करेगा वो फल पायेगा बस दुख यह है कि रावण की गलती को हम हज़ारों सालों से याद करके उसको जलाते चले आ रहे हैं। लेकिन आज के रावणो के कुकर्मों को नज़रअंदाज़ कर उनके लिए सड़कों पर आ जाते हैं। आज भी जब रावण इस दुनिया को देखता होगा तो मन मे एक बात सोच कर मुस्कुराता होगा और पूछता होगा कि- “एक युद्ध मे मुझको मार कर कैसी दुनिया प्रभु राम आपने बनाई है।। मैं तो रहता हूँ आज भी मन रूपी लालची महलों में और आपके हिस्से आज भी एक तिरपाल और मात्र एक चटाई है।।
और क्या कहूँ प्रभु , मैने तो आज के रामों के मन मे भी अपनी ही छवि पायी है।
तज दिया सीता को तुमने इस समाज के खातिर फिर भी जीत तो मेरे ही हिस्से में आयी है।।
ये तो हो गया कविता पाठ लेकिन रावण की बात बिल्कुल सही है। मर्यादित पथ पर चलना बड़ा कठिन काम है लेकिन बुराई का रास्ता बड़ा लुभावना। आज के इस दौर में लोगों के मन मे बसी बुराईओं को देख कर रावण तो निर्दोष ही लगता है। हमारी बुराईयों के आगे रावण तो बौना हो गया है। अब मन के अंदर दशहरा कब होगा ये तो राम जाने।।.
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