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वर्णिका कुंडू ने अपनी आपबीती फेसबुक पर लिखी जिसके मुताबिक चंडीगढ़ की सड़कों पर उसका पीछा किया गया और ये घटना ‘पीछा’ तक ही सीमित रहकर अपहरण या बलात्कार सिर्फ़ इसलिए नहीं बनी क्योंकि वो कार भगाती रही और पुलिस समय रहते पहुँच गयी। लड़के एसयूवी कार में थे और लगातार उसका रास्ता रोकने की कोशिश करते रहे। वो लड़की इधर से उधर गाड़ी भगा रही थी, पुलिस को कॉल कर रही थी, उसके हाथ कांपने लगे थे। आखिर में उनमें से एक लड़का वर्णिका तक पहुंचा और कार की गेट खोलने की कोशिश करने लगा। वर्णिका लगातार हॉर्न बजा रही थी ताकि लोगों की उसपर नज़र पड़े और पुलिस को उसे ढूंढने में परेशानी न हो। अंतिम क्षणों में पुलिस पहुँच गयी और वो बच गयी।
ये घटना उस चंडीगढ़ की है जिसका नाम भारतवर्ष में महिलाओं के लिए सबसे सुरक्षित क्षेत्रों में शुमार है और ये महानतम कृत्य करने वाले महानुभाव भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष के सुपुत्र हैं। उस वारदात का जवाब देते हुए दूसरे होनहार बेटों ने वर्णिका की तस्वीरें साझा की हैं जिनमें वो पब में है और दोस्तों के साथ शराब पी रही है। लड़के ग़लत हैं या नहीं इससे कोई मतलब नहीं। मुद्दा ये है कि लड़की शराब पीती है, पब में जाती है और अगर वो ऐसा करती है तो वो ग़लत ही है। शराब पीने वाली लड़कियां ख़राब ही होती हैं, लड़के तो सर्वगुणसम्पन्न होते हैं। वोडका, व्हिस्की और वाइन की बोतलें उनका चरित्र दूषित कर देती हैं।
दूसरी बात ये कि वर्णिका रात के सवा बारह बजे घर से बाहर निकली ही क्यों? ये कोई वक़्त है घूमने का? और ऐसे सवाल उस स्वर में पूछे जाते हैं जैसे अगर लड़की रात में बाहर निकली है तो उसका रेप हो जाना वाज़िब है। “रात को निकलोगी तो रेप तो होगा ही” उस स्वर में कहा जाता है जैसे रात में घर ही सुरक्षा कवच या लक्ष्मण रेखा हो और ग़लती की तो भुगतना लाज़िमी है। जैसे लड़कियों के जीवन का एकमात्र लक्ष्य शारीरिक सुख देना हो और वो रेप कर दिए जाने के लिए ही बनी हों, बचा सकें तो बचा लें। ये संबंध पूरक होने का नहीं, शिकारी और शिकार का हो जाता है।
उन कुल के चिरागों के हौसले इतने बुलंद थे कि वो उस क्षेत्र में लड़की को लगातार परेशान करते रहे जहाँ हर रेड लाइट पर कैमरा लगा है और पुलिस स्टेशन उनकी खाला के घर से भी नज़दीक है। पर प्रतिक्रियाएं ये हैं कि लड़की निकलती नहीं तो ऐसा होता ही नहीं। अमूमन घरों में रात में बेटियों को ये कहकर नहीं निकलने दिया जाता कि – अब मत जाओ, सड़क पर आवारे-लफंगे लड़के घूम रहे होंगे, सेफ नहीं है। और उन्हीं घरों के बेटे आराम से निकल लेते हैं सड़कों को अनसेफ बनाने।
वर्णिका ग़लत है क्योंकि वो शराब पीती है, रात में निकलती है, अपने साथ हुए ग़लत के बाद महिलाओं को हिम्मती होने की सलाह देती है। वर्णिका ग़लत है क्योंकि उसने समाज के आकाओं से आधी रात को बाहर घूमने की इजाज़त नहीं मांगी। वर्णिका ग़लत है क्योंकि वो एक औरत है। जब ब्रह्माण्ड का आख़िरी प्रश्नचिन्ह बचा होगा तो उसे भी किसी औरत के नाम के आगे लगा दिया जायेगा। एक बार फिर कहना चाहती हूँ कि ये सड़कें जो रात को सड़कें नहीं रहतीं, इनपर दिन ढलते ही ख़तरे का साइनबोर्ड लगवा दें।