वैसे किस्सा तो इसमें आज के कई साल पहले का लगता है, जब छोटे शहरों में लड़की और लड़के के बीच प्रेम का पनपना मुश्किल था और समाज का हाल ये था कि लड़की के माता पिता को पता चल जाए कि कोई लड़का उनकी बेटी के आस पास घूम रहा है, तो उसको उससे राखी बंधवा देते थे। यानी प्यार की संभावनाएं खत्म कर दी जाती थीं। लेकिन आज का लखनऊ कोई छोटा मोटा शहर तो है नहीं कि वहां इसी तरह का सामाजिक माहौल हो। इसलिए निर्देशक अजय पन्नालाल ने जो माहौल चुना है उसमें भरोसा नहीं होता। फिर भी ‘बहन होगी तेरी’ एक काम चलाऊ हास्य फिल्म है।
फिल्म गट्टू (राज कुमार राव) और बिन्नी (श्रुति हासन) के इर्दगिर्द घूमती है। दोनों पड़ोसी हैं और प्यार करते हैं। लेकिन समाज के सामने अपने इश्क का ऐलान नहीं कर सकते। इसलिए ये राय बन जाती है कि दोनों भाई-बहन की तरह हंै। हालात ऐसे पैदा होते हैं कि गट्टू का पिता जब एक दिन बिन्नी को दूध बेचनेवाले भूरा (हैरी टैंगरी) के साथ देखता है तो अफवाह फैला देता है कि दोनों के बीच लफड़ा है। इधर बिन्नी का भाई अपनी बहन की शादी किसी और के साथ तय कर देता है। उधर भूरा के रिश्तेदारों को लगता है कि बिन्नी को उनके घर बहू बन कर आना चाहिए। लेकिन सबको संदेह है कि बिन्नी कहीं गुल ना खिला दे। इसलिए उस पर निगरानी के लिए लगाया जाता है गट्टू को, जो सही मायने में उसका आशिक है। अब असली आशिक और माशूक क्या करेंगे और सबको धता बताकर क्या एक दूजे को हो सकेंगे? यही है इस फिल्म का पेच।
स्वाभाविक है कि फिल्म में हंसी के मौके हैं। हालांकि फिल्म में जैसी चुस्ती होनी चाहिए वैसी नहीं है। यही इसका कमजोर पहलू है। राज कुमार राव बिल्कुल उस कस्बाई युवक की तरह लगे हैं, जो पास पड़ोस के दबाव में उस लड़की को बहन बोल देता है जिससे प्यार करता है। हालांकि वह चालाकी भी उसमें है कि हालात से सुलटा जाए। गुलशन ग्रोवर और रंजीत, जिन्होंने भूरा के रिश्तेदारों की भूमिका निभाई है, भी हंसाते हैं। श्रुति हासन को थोड़ा अपने संवादों पर अधिक काम करना होगा।