इस फिल्म का नाम ‘हिचकी’ तो सिर्फ एक सहूलियत के लिए है क्योंकि जिस बीमारी के आधार पर इस फिल्म का नाम रखा गया है, उसका कोई सहज हिंदी अनुवाद उपलब्ध नहीं है। अंग्रेजी में उस बीमारी का नाम है ‘टुरेट सिंड्राम’। यह हिचकी की तरह है लेकिन वही नहीं है। ‘टुरेट सिंड्रॉम’ की वजह से मानसिक तनाव के वक्त गले से कई तरह की आवाजें आती हैं, हिचकी जैसी भी और खांसी जैसी भी। कुछ और तरह की भी। ‘हिचकी’ की नायिका नेहा माथुर (रानी मुखर्जी) को यही बीमारी है। हालांकि वह पढ़ने में तेज रही है और एमएससी और बीएड है। स्कूल में अध्यापिका बनना चाहती है। लेकिन जिस स्कूल में अध्यापिका के साक्षात्कार के लिए जाती है, वहां उसे इसी बीमारी की वजह से अस्वीकृत कर दिया जाता है।ऐसे में नैना क्या करे? क्या हार मान ले और पिता के कहने पर किसी बैंक में काम करना स्वीकार कर ले? नैना बेचैन है।
ऐसी कश्मकश में ‘सेंट नोटकर स्कूल’ से उसे निमंत्रण मिलता है कि वह वहां पढ़ाए। नैना की खुशी का पारावार नहीं रहता है। हालांकि वह इस बात से अनजान है कि इस निमंत्रण में एक पेंच है और इसका पता उसे स्कूल की नौकरी के पहले दिन चलता है। पेंच यह है कि जिस क्लास को उसे पढ़ाना है वह उन बच्चों की है जो समाज के वंचित वर्ग से आते हैं और ‘शिक्षा का अधिकार’ कानून के तहत उनको वहां दाखिला मिला है। ये बच्चे ऊधमी हैं। बेहद गरीब हैं और पढ़ाई में इनका मन नहीं लगता है। ये स्कूल के दूसरे बच्चों के साथ घुलमिल भी नहीं पाते। नैना के साथ तो ये असहयोग आंदोलन जैसा शुरू कर देते हैं। लेकिन उसकी असली परेशानी यही नहीं है।
बड़ी चुनौती है स्कूल के एक दूसरे अध्यापक (नीरज कबी) से जो इन बच्चों को नगरपालिका का कचरा मानते हैं। इसमें संदेह नहीं कि ‘हिचकी’ एक प्रेरणादायी फिल्म है और उस तरह की है जैसे ‘तारे जमीं पर’ और ‘हिंदी मीडियम’। एक तरफ ये एक विशिष्ट तरह की अस्वस्थता से ग्रस्त व्यक्ति यानी नैना के गहरे आत्मविश्वास और आत्मसंघर्ष की कहानी है, तो दूसरी तरफ निजी स्कूलों के भीतर निहित एक खास तरह की वर्गव्यवस्था की। निजी स्कूलों में दो तरह के वर्ग बन गए हैं -अमीर और गरीब। ‘शिक्षा का अधिकार’ कानून की वजह से पब्लिक कहे जानेवाले स्कूलों को गरीब बच्चों को दाखिला देना कानूनी रूप से जरूरी है लेकिन स्कूल की पूरी व्यवस्था उनको नापसंद करती है। नैना को दो तरफ लड़ाई लड़नी है। अपनी बीमारी की वजह से लोगों के उपहास का पात्र बनने से और दूसरे उन बच्चों के खिलाफ स्कूल की मानसिकता से। वह जीतेगी या हारेगी? उसके और बच्चों के खिलाफ स्कूल में षड़यंत्र चल रहा है। षड़यंत्र सफल होगा या असफल?
फिल्म पूरी तरह से रानी मुखर्जी की है जिन्होंने ‘मर्दानी’ के बाद एक और औरत केंद्रित भूमिका सफलता के साथ निबाही है। ‘ब्लैक’ में भी रानी ने ऐसा किरदार निभाया था जो देख नहीं सकती। ‘हिचकी’ में उन्होंने ऐसा चरित्र निभाया है जो एक तरफ सामाजिक उपहास के कारण हमेशा एक मनोवैज्ञानिक तनाव में जीता है लेकिन इस तनाव से उबर पाने की जिद भी उसमें लगातार बरकरार है। ‘हिचकी’ हॉलीवुड की फिल्म ‘फ्रंट आॅफ द क्लास’ से प्रेरित है। यह फिल्म ब्रैड कोहेन नाम के अध्यापक की किताब के आधार पर बनी है। कोहेन खुद इस बीमारी से पीड़ित रहे और अपने अनुभवों के आधार पर उन्होंने लिजा विसोक्की के साथ मिलकर एक किताब लिखी जिसका नाम है ‘फ्रंट आॅफ द क्लास : हाउ टूरेट सिंड्रोम मेड मी द टीचर आई नेवर हैड’। हॉलीवुड की फिल्म इसी किताब का फिल्मी रूप थी। इसका हिंदी संस्करण ‘हिचकी’ भी एक जिंदगी को सकारात्मकता के साथ जीना सिखानेवाली फिल्म है।