मोहम्मद रफी यानी आवाज की दुनिया के बेताज बादशाह का आज 93वां जन्मदिन है। इस खास अवसर पर गूगल ने डूडल बनाकर उनको याद किया है। उनकी एक तस्वीर साझा की गई है। इसमें वह गाना रिकॉर्ड कराते हुए जनर आ रहे हैं। रफी छह बार सर्वश्रेष्ठ गायक के रूप में फिल्मफेयर पुरस्कार से नवाजे जा चुके हैं। उनका जन्म 24 दिसंबर, 1924 को अमृतसर के पास कोटला सुल्तान सिंह में हुआ था।
आइए जानें उनसे जुड़ी कुछ खास यादें-
एक बार मोहम्मद रफी देर शाम तक फिल्म निर्माता-निर्देश जे ओम प्रकाश की फिल्म के एक गाने की रिकॉर्डिंग के लिए देर शाम तक रुके हुए थे। तब गाने की चार लाइनें बाकी थीं। बात हुई की अगले दिन इसे पूरा कर लिया जाएगा। इसपर रफी सीड़ियों से उतरे और गाड़ी में जाकर बैठ गए। लेकिन वह फिर वापस आए और निर्माता-निर्देशक से बोले कि गाने की चार लाइनें ही तो बाकी हैं। इन्हें आज ही पूरा कर लेते हैं। ये गाना था फिल्म ‘आसपास’ का। म्यूजिक था एलपी का और बोल आनंद बख्शी के। इसके बाद वह घर चले गए। दिन था 30 जुलाई, 1980। सुरीली आवाज के इस बादशाह को उसी रात दिल का दौरा पड़ा और हिंदी फिल्म संगीत का अनमोल रत्न इस दुनिया को छोड़कर चला गया। अन्नू कपूर ने अपने रेडियो शो सुहाना सफर में ये किस्सा सुनाया है।
ऐसे मिली ‘गाने’ की प्रेरणा-
रफी छह भाईयों में सबसे छोटे थे। जिन्हें गाने की प्रेरणा एक फकीर से मिली। दरअसल उनके मोहल्ले से एक फकीर गाना गाते हुए गुजरता था। गाना था, पागाह वालियों नाम जपो, मौला नाम जपो’ ये 1924 का बंटवारे से पहले का भारत था। तब फकीर की आवाज सुन रफी उसके पीछे-पीछे चलने लगते थे। समय बीता और उसके कुछ दिन बाद रफी पिता के साथ लाहौर चले आए, वहां उनके पिता ने एक नाई की दुकान खोल ली। जगह बदलने के बाद भी रफी का गाने की प्रति समर्पण कम नहीं हुआ।
ऐसे पहुंचे मुंबई (तब बंबई)-
मोहम्मद रफी को बंबई तक पहुंचाने में उनके बड़े भाई के दोस्त अब्दुल हमीद का बड़ा हाथ बताया जाता है। उन्होंने ही रफी की काबिलियत को पहचाना और उनके परिवार को समझाया कि वह रफी को बंबई जाने दें।
ऐसे मिला पहली बार स्टेज पर ‘परफॉम’ करने का मौका-
आवाज के इस जादूगर को पहली बार स्टेज पर परफॉम करने का मौका भी पड़े नाटकीय ढंग से मिला था। दरअसल तब के मशहूर गायक केएल सहगल के शो में अचानक लाइट चली गई। इसपर लोग शोर मचाने लगे। विचार किया जाने लगा कि लोगों को शांत कैसे कराया जाए। तब रफी के बड़े भाई प्रोग्राम ऑर्गनाइजर के पास गए कि उनके छोटे भाई को गाने दिया जाए। वह जनता को शांत करा लेगा। इससे उसे गाने का मौका भी मिल जाएगा। रफी के बड़े भाई की बात से आर्गनाइजर सहमत हो गए। बताया जाता है कि जब छोटे बच्चे मोहम्मद रफी ने गाना शुरू किया तो लोग तालियां बजाने से खुद को नहीं रोक पाए।