Sunday, September 8, 2024
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आरएसएस के मुखपत्र और मासिक पत्रिका राष्ट्र धर्म रद्द

SI News Today

केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्रालय ने आरएसएस के मुखपत्र और मासिक पत्रिका राष्ट्र धर्म को रद्द कर दिया है। राष्ट्र धर्म को 1947 में बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने शुरू किया था। यह लखनऊ से प्रकाशित होता है। सूचना प्रसारण मंत्रालय ने पत्रिका की डायरेक्टरेट ऑफ एडवरटाइजिंग एंड विजुअल पब्लिसिटी (डीएवीपी) की मान्यता रद्द कर दी है। यानी केंद्र सरकार ने पत्रिका को अब अपने विज्ञापनों की पात्रता सूची से बाहर कर दिया है। मंत्रालय की ओर से 6 अप्रैल को जारी पत्र के मुताबिक देश के कुल 804 पत्र-पत्रिकाओं की डीएवीपी मान्यता रद्द की गई है। इनमें उत्तर प्रदेश के 165 समाचार पत्र और पत्रिकाएं शामिल हैं। मान्यता रद्द करने की कार्रवाई इसलिए की गई है, क्योंकि अक्टूबर 2016 से फरवरी 2017 तक इनके मासिक अंक की प्रतियां पीआईबी (प्रेस सूचना कार्यालय) और डीएवीपी के दफ्तरों में नहीं जमा हुई हैं।

मंत्रालय की वेबसाइट पर मौजूद एडवाइजरी में कहा गया है कि प्रिंट मीडिया एडवरटिजमेंट पॉलिसी 2016 की धारा 13 में “नियमितता” के बारे में बताया गया है, जिसमें यह अनिवार्य है कि सभी सूचीबद्ध अखबारों को अपनी मासिक प्रतियां उस महीने की 15 तारीख से पहले जमा करनी होती है। जिसके द्वारा यह प्रतियां नहीं जमा की जाएंगी, उस अखबार का विज्ञापन रोक दिया जाएगा। डीएवीपी द्वारा हर महीने इस संबंध में एडवाइजरी जारी की गई है, इसके बावजूद भी प्रकाशकों द्वारा राष्ट्र धर्म का मासिक अंक कार्यालय में जमा नहीं की गई है। इसके कारण इन्हें रद्द किया जाता है।

राष्ट्र धर्म प्रकाशन के मैनेजर पवन पुत्र बाद ने कहा कि हमें अभी तक रद्द होने की जानकारी नहीं मिली है। अगर ऐसा हुआ है तो यह गलत है। यह पत्रिका 1947 से लगातार प्रकाशित हो रहा है। इंदिरा गांधी द्वारा आपातकाल लागू किए जाने पर भी इसका प्रकाशन बंद नहीं किया गया था। पत्रिका पिछले 6 महीने से छप रही है, लेकिन इसकी प्रतियां मंत्रालय क्यों नहीं पहुंच रही हैं, इस बारे में जानकारी नहीं है। हम इस बारे में पता लगाएंगे। उनका दावा है कि विज्ञापन रद्द करने का फैसला सिर्फ सूचना प्रसारण मंत्रालय का है। बाकी मंत्रालयों और राज्य सरकारों द्वारा मिलने वाले विज्ञापन जारी रहेंगे। पत्रिका आगे भी चलती रहेगी। उन्होंने आगे कहा कि महत्वपूर्ण यह है कि राष्ट्र धर्म विज्ञापनों के लिए नहीं छपता है। इसका प्रकाशन राष्ट्रीयता के प्रचार-प्रसार के लिए होता है। राष्ट्र धर्म की मांग लंदन, कनाडा, वेस्टइंडीज समेत 12 देशों में है।

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