राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, भारत रत्न के लिए नोबेल विजेता और तिब्बत के धर्मगुरु दलाई लामा के पक्ष में अभियान शुरु करने की बात को खारिज किया है। आरएसएस की ओर से सोमवार को कहा गया है कि उन्होंने दलाई लामा के लिए ऐसे किसी भी अभियान की शुरुआत नहीं है। संघ के प्रवक्ता राजीव तुली ने एएनआई से बातचीत में कहा, “हमने तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा को भारत रत्न दिए जाने की मांग वाला कोई भी आधिकारिक अभियान नहीं चलाया है। भारत रत्न किसे दिया जाए इसका फैसला सरकार का है। इससे पहले खबरे आई थीं कि संघ ने दलाई लामा को भारत रत्न दिए जाने की मांग के समर्थन में अभियान शुरू किया है।
5 अप्रैल को दलाई लामा चीन के कड़े विरोध के बावजूद अरुणाचल प्रदेश के तवांग मठ पहुंचे थे। मठ में बौद्ध भिक्षुओं तथा श्रद्धालुओं ने उनका बेहद गर्मजोशी के साथ स्वागत किया। पश्चिमी कामेंग जिले के आरएसएस नेता ल्हुंदुप चोसांग ने दलाई लामा को भारत रत्न दिए जाने की मांग वाला अभियान 6 अप्रैल को शुरू किया था। उन्होंने कहा, ”हमने अब तक 5000 हस्ताक्षर इकट्ठा किए हैं। 25,000 हस्ताक्षर हो जाने के बाद हम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से गुहार लगाएंगे।” चोसांग ने कहा कि हालांकि भारत रत्न, नोबेल शांति पुरस्कार से अलग है मगर इस कदम से अंतर्राष्ट्रीय मंच पर सही संदेश जाएगा। उन्होंने कहा, ”इसके अलावा दलाई लामा भारत रत्न के योग्य हैं क्योंकि उन्होंने कहा है कि वह भारत के पुत्र हैं और इस महान देश के सबसे लंबे समय पर मेहमान रहकर सम्मानित महसूस करते हैं।” इस अभियान से अलग दलाई लामा को भारत रत्न दिए जाने को लेकर ऑनलाइन कैंपेन भी चल रहा है।
शांति के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित दलाई लामा तवांग मठ में ठहरे हैं। यह मठ भारत का सबसे बड़ा और दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा बौद्ध मठ है। प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू तिब्बती धर्मगुरु के साथ थे। दलाई लामा के दौरे के मद्देनजर पूरे तवांग को भारत तथा तिब्बत के झंडों तथा फूलों के अलावा, रंगीन प्रार्थना झंडों से सजाया गया। सड़कों को रंगा गया और नालों की सफाई की गई।
चीन व भारत की सीमा को विभाजित करने वाले मैकमोहन लाइन (वास्तविक नियंत्रण रेखा) से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित तवांग में सुरक्षाबलों को चौकस रखा गया है। दलाई लामा तवांग से अरुणाचल प्रदेश का एक सप्ताह लंबा धार्मिक दौरा चार अप्रैल को ही शुरू करने वाले थे। लेकिन, खराब मौसम के कारण उन्हें सड़क मार्ग का सहारा लेना पड़ा, क्योंकि उनका हेलीकॉप्टर असम के डिब्रूगढ़ से उड़ान नहीं भर सका।