उच्चतम न्यायालय के कोलेजियम ने उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के तौर पर नियुक्ति के लिए 37 उम्मीदवारों के नाम की अपनी सिफारिश दोहराई है। कोलेजियम के इस कदम से सरकार और न्यायपालिका के बीच फिर से टकराव पैदा हो सकता है। यह घटना ऐसे समय में सामने आई है जब कोलेजियम ने दूसरी बार सरकार के इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया कि प्रक्रिया ज्ञापन (एमओपी) में ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ के प्रावधान को जोड़ा जाए। इस प्रावधान को अगर जोड़ दिया जाता है तो सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा और जनहित को आधार बनाकर कोलेजियम की सिफारिश को नकार सकती है।
एमओपी ऐसा दस्तावेज है जिसमें उच्चतम न्यायालय और 24 उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया लिखी है। पिछले साल के मध्य में भारत के तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति टी.एस ठाकुर ने उच्च न्यायालयों में न्यायाधीश के तौर पर नियुक्त करने के लिए 77 लोगों के नाम की सिफारिश की थी। जब सरकार ने पाया कि उम्मीदवारों से जुड़ी रिपोर्ट सकारात्मक नहीं है तो उसने 43 नामों को फिर से विचार के लिए लौटा दिया था।
बीते 18 नवंबर को उच्चतम न्यायालय ने सरकार को बताया था कि उसने उन 43 नामों की सिफारिश दोहराई है, जिनके नाम सरकार ने फिर से विचार के लिए वापस भेज दिए थे।
न्यायमूर्ति ठाकुर और न्यायमूर्ति ए.आर दवे की पीठ ने कहा था, ‘‘हमने उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के तौर पर नियुक्ति के लिए उन 43 नामों को दोहराया है जिन्हें सरकार ने खारिज कर दिया था और फिर से विचार के लिए वापस भेज दिया था।’’
बहरहाल, 23 नवंबर को कानून राज्य मंत्री पी.पी चौधरी ने एक लिखित जवाब में लोकसभा को बताया था कि कोलेजियम ने सिर्फ 37 उम्मीदवारों की अपनी सिफारिश दोहराई थी।