भगवान गणेश को विदा करने के बाद नवरात्रों का उत्सव मनाने का समय आता है। नवरात्र को दुर्गा पूजा के नाम से भी जाना जाता है। इसकी शुरुआत महालया से होती है, दुर्गा पूजा के पहले दिन को महालया कहा जाता है। बंगालियों के लिए दुर्गा पूजा की तैयारियां एक महीने पहले शुरू हो जाती है। हिंदू पंचांग के अनुसार देवी पक्ष का अर्थ होता है जिसमें चंद्रमा अश्विन माह में प्रवेश करता है। महालया का ये त्योहार नवरात्र या दुर्गा पूजा से एक पहले दिन को होता है। ये दिन नवरात्र और दुर्गा पूजा की शुरुआत का दिन माना जाता है। इसमें मां दुर्गा की पूजा की जाती है और उनसे प्रार्थना की जाती है की वो धरती पर आए और अपने भक्तों को आशीर्वाद दें। ये दिन श्राद्ध या पितृ पक्ष का आखिरी दिन भी माना जाता है। महालया अमावस्या पितृ पक्ष के आखिरी दिन पर आती है।
महालया का अर्थ क्या है?
महालया त्योहार ज्यादातर बंगालियों द्वारा मनाया जाता है। महालया नवरात्र या दुर्गा पूजा की शुरुआत मानी जाती है। इसमें मां दुर्गा को उनके भक्तों की महिसासुर से रक्षा करने के लिए बुलाया जाता है। ये अमावस्या की काली रात को मनाया जाता है और भक्त मां से धरती पर आने की प्रार्थना करते हैं। इसके बाद मां के आने का बहुत बड़ा उत्सव मनाया जाता है। छठी के दिन पंडालों में बड़ा आयोजन किया जाता है। इसके अलावा महालया को श्राद्ध पक्ष और पितृ पक्ष का अंतिम दिन भी माना जाता है।
महालया कैसे मनाया जाता है?
इस दिन सभी लोग अपने पितरों को याद करते हैं और उन्हें भोजन अर्पित करते हैं। ये भोजन, कपड़े और मिठाई वो ब्राह्मण को खिलाते हैं। इस दिन लोग सुबह जल्दी उठते हैं और अपना दिन देवी महामाया की मूर्त के आगे पूजा करते हैं। खाना और कपड़े पूजा मंडप में दान किए जाते हैं। पितरों के लिए भोजन चांदी या तांबे के बर्तन में बनाया जाता है। इसके बाद ये भोजन केले के पत्ते और सूखी पत्तियों से बने कटोरे में खिलाया जाता है। ज्यादातर खीर, चावल, दाल, गौर, और सीताफल ही भोजन में अर्पित किया जाता है।