Friday, October 18, 2024
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परचून की दुकान चलाने वाले वैद्य थे रामनाथ कोव‍िंद के प‍िता

SI News Today

गुरुवार (20 जुलाई) को सुबह 11 बजे राष्ट्रपति चुनाव में पड़े मतों की गिनती शुरू हो गई। राष्ट्रपति चुनाव में बीजेपी के रामनाथ कोविंद और कांग्रेस की मीरा कुमार के बीच है। सोमवार (17 जुलाई) को हुए मतदान में 99.41 प्रतिशत मतदान हुआ था। राष्ट्रपति चुनाव में कुल 775 सांसदों और 4120 विधायकों को वोट देना था। मौजूदा गणित के अनुसार रामनाथ कोविंद की जीत तय मानी जा रही है। तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तो नतीजे आने से पहले ही परोक्ष रूप से हार मानते हुए कह दिया है कि भले ही मीरा कुमार हार जाएं इससे विपक्ष ने जिस तरह अपनी एका दिखाई है वो काबिले तारीफ है। राष्ट्रपति चुनाव की मतगणना आठ राउंड में पूरी होगी। हर राउंड के बाद नतीजे बताए जाएंगे। पहले राउंड का नतीजा दोपहर एक बजे के करीब आएगा। बीजेपी के राम और कांग्रेस की मीरा में से चुनाव में कौन जीतेगा ये तो वक्त बताएगा लेकिन उससे पहले आइए हम आपको बताते हैं जीत के प्रबल दावेदार रामनाथ कोविंद की पृष्ठभूमि के बारे में।

रामनाथ कोविंद का जन्म एक अक्टूबर 1945 को कानपुर देहात के पाराउख गांव में हुआ था। कोविंद के पिता पिता मैकूलाल वैद्य भी थे और गांव में किराने और कपड़े की दुकान भी चलाते थे। कोविंद के परिवार में बाकी लोग सामान्य जीवन ही बिताते हैं। उनके भाई प्यारेलाल बताते हैं, “हम एक सामान्य मध्यमवर्गीय जीवन जीते थे। कोई संकट नहीं था। सभी पांच भाइयों और दो बहनों को शिक्षा मिली। एक भाई मध्य प्रदेश में अकाउंट अफसर के पद से रिटायर हुए हैं। एक और भाई सरकारी स्कूल में टीचर हैं। रामनाथ वकील बन गए। बाकी अपना कारोबार करते हैं।”

रामनाथ कोविंद की शुरुआती शिक्षा-दीक्षा स्थानीय स्कूलों में हुई। उन्होंने कानपुर विश्वविद्यालय से स्नातक और विधि स्नातक की पढ़ाई की। कानून की पढ़ाई करने के बाद वो भारतीय प्रशासनिक सेवा की परीक्षा की तैयारी के लिए दिल्ली आ गए। लोक सेवा आयोग में चयन न होने के बाद वो दिल्ली में ही वकालत करने लगे। कोविंद हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के वकील बने गए। 1977 में केंद्र में जब मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी तो कोविंद प्रधानमंत्री के निजी सचिव बने। जनता सरकार अपना कार्यकाल पूरा करने से पहले ही गरि गई। कोविंद उसके बाद 1980 से 1983 तक कोविंद केंद्र सरकार के सुप्रीम कोर्ट में स्टैंडिंग काउंसिल रहे। दिल्ली प्रवास के दौरान ही कोविंद का राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़ाव हुआ। 1991 में वो बीजेपी की राजनीति में सक्रिय रूप से जुड़े और पार्टी के टिकट पर घाटमपुर लोक सभा सीट से चुनाव लड़ा लेकिन हार गए

कोविंद को बीजेपी अल्पसंख्यक प्रकोष्ण में अहम जिम्मेदारियां मिलती रहीं। वो बीजेपी राष्ट्रीय अनुसूचित जाति-जनजाति मोर्चा के अध्यक्ष, महामंत्री और प्रवक्ता पद पर रहे। 1996 में बीजेपी ने उन्हें पहली बार राज्य सभा भेजा। वो लगातार दो बार पार्टी के राज्य सभा सांसद रहे। साल 2006 में उनका राज्य सभा का कार्यकाल पूरा हुआ उसके बाद वो पार्टी में विभिन्न पदों पर रहे। 2014 में जब केंद्र में बीजेपी गठबंधन सरकार आई तो अगले ही साल 2015 में उन्हें बिहार का राज्यपाल बना दिया गया। वो इस पद करीब एक साल तक ही रहे थे कि जून 2016 में उन्हें बीजेपी और एनडीए का राष्ट्रपति उम्मीदवार घोषित कर दिया गया।

एक साधारण दलित परिवार में जन्मे कोविंद के प्रधानमंत्री कार्यालय से राजभवन तक के दो दशकों से लम्बे सफर में एक बात साफ है कि वो अपने परिवार को बढ़ावा देने में यकीन नहीं रखते। उनके भतीजे दीपक ने इंडियन एक्सप्रेस से बताया था, “हमने राम नाथ चाचा से कई बार कहा कि हमें बेहतर नौकरी दिला दो लेकिन उन्होंने मना कर दिया। उन्होंने कहा कि जैसे मैंने स्वयं सफलता पाई, वैसे तुम लोग भी मेहनत करो।” दीपक सरकारी स्कूल में टीचर हैं। चुनावी समीकरणों के हिसाब से कोविंद की जीत तय मानी जा रही है। अगर वो जीतते हैं तो केआर नारायणन के बाद देश के दूसरे दलित राष्ट्रपति होंगे।

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