भारत के सात स्कूली बच्चों ने दुनिया का सबसे हल्का और सबस छोटा उपग्रह (सैटेलाइट) बनाया है। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा भारतीय बच्चों के बनाए सैटेलाइट “कलामसैट” को इसी महीने 21 जून को अंतरिक्ष में भेजेगी। बच्चों ने सैटेलाइट वैज्ञानिक और भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम को समर्पित किया है। इस सैटेलाइट को तमिलनाडु के 18 वर्षीय रिफत शारूक ने बनाया है। सैटेलाइट बनाने वाली टीम में शारूक (लीड साइंटिस्ट) के अलावा तनिष्क द्विवेदी (फ्लाइट इंजीनियर), विनय एस भारद्वाज (डिजाइन इंजीनियर), यज्ञ साई (लीड टेक्नीशियन), मोहम्मद अब्दुल काशिफ (लीड इंजीनियर), गोबीनाथ (जीव विज्ञानी) भी शामिल हैं।
स्पेस किड्ज इंडिया के संस्थापक और सीईओ डॉक्टर श्रीमती केसन के देखरेख में बनाए गए 3.8 सेंटीमीटर के घनाकार (क्यूब) कलामसैट का वजन केवल 64 ग्राम है। नवंबर 2016 में नासा ने शिक्षा के क्षेत्र में जुड़ी एक संस्था के साथ मिलकर “क्यूब इन स्पेस” प्रतियोगिता का आयोजन किया। केसन ने बच्चों को इस प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के लिए प्रोत्साहित किया।
ये बच्चे नासा की प्रतियोगिता में सामिल होने से पहले ही एक किलोग्राम का एक सैटेलाइट बना चुके थे। कलामसैट बनाने वाली टीम के टीम लीडर 18 वर्षीय रिफत शारूक तमिलनाडु के रहने वाले हैं। उनके पिता मोहम्मद फारूक वैज्ञानिक हैं और मां शकीला बानो गृहिणी। वैज्ञानिक बनने की प्रेरणा शारूक को अपने पिता से ही मिली। शारूक ने समाचार वेबसाइट डीएन को बताया, “मैं उन्हें अपनी प्रयोगशाला में प्रयोग करते हुए देखकर बड़ा हुआ हूं।”
शारूक ने बताया कि नासा के मानकों पर खरा उतरने के लिए उन्होंने अपने पुराने सैटेलाइट का छोटा संस्करण बनाने का फैसला किया। बच्चों ने जनवरी 2017 में अपना सैटेलाइट नासा के विचार के लिए भेज दिया था। एक अप्रैल 2017 को नासा ने उन्हें कलामसैट के अंतरिक्ष प्रक्षेपण के लिए चुने जाने की सूचना दी। नासा द्वारा दी जानकारी के अनुसार कलामसैट 21 जून को अंतरिक्ष में भेजा जाएगा।
शारूक के अनुसार कलामसैट के अलावा 79 दूसरे उपग्रह भी अमेरिका के वैलोप द्वीप से अंतरिक्ष में भेज जाएंगे। शारूक ने बताया कि उनकी टीम इंटरनेट के माध्यम से नासा के वैज्ञानिकों के संपर्क में रहती है। अमेरिकी वैज्ञानिक भारतयी बच्चों की काफी हौसला अफजाई करते हैं।
कलामसैट 3-डी प्रिंटेड रीइनफोर्सड कॉर्बन फाइबर पॉलिमर से बना है। इस सैटेलाइट के कुछ हिस्से विदेश से भी आयात किए गए हैं। इसे एक सब-ऑर्बिटल स्पेसफ्लाइट से लॉन्च किया जाएगा। कलामसैट अंतरिक्ष में करीब 240 मिनट तक रहेगा और इससे करीब 12 मिनट तक वैज्ञानिक परीक्षण करेंगे। कलामसैट की मदद से वैज्ञानिक देखेंगे कि माइक्रो-ग्रेविटी पर्यावरण में प्रिंटेड कार्बन फाइबर किस तरह प्रदर्शन करता है।