असम के सरकारी दफ्तरों के कर्मचारी शनिवार को पारंपरिक कपड़े (ट्रेडिशनल ड्रेस) में ऑफिस पहुंचे। सरकारी कर्मचारी धोती-कुर्ता, मेखेला-छाडर, डाकाना-फशरा जैसे परिधान पहनकर आए। यह बदलाव उस फैसले के बाद आया है, जिसमें राज्य सरकार के अधिकारियों ने कर्मचारियों को हर महीने के पहले और तीसरे शनिवार को दफ्तर में पारंपरिक कपड़े पहनकर आने का सुझाव दिया था। प्रशासनिक मामलों के प्रधान सचिव पीके तिवारी ने कहा कि सरकार ने ड्रेस कोड को लेकर किसी तरह का आदेश जारी नहीं किया है। यह सिर्फ एक सुझाव था।
ड्रेस को लेकर प्रधान सचिव (पर्सनल) पीके बोरठाकुर द्वारा 26 अप्रैल को लेटर लिखा गया था। जिसे लेकर कई स्थानीय टीवी चैनलों पर टॉक शो और पैनल डिस्कशन आयोजित किया गया। सदोउ असोम कर्मचारी परिषद (SAKP) के अध्यक्ष बसब कलिता ने संडे एक्सप्रेस से कहा कि यह बात चर्चा का विषय बन गई थी। जिसके बाद इसे प्रेरित करने और मामले पर चर्चा के लिए हम मुख्य सविच से मिले। हमने सरकार और अपने सहयोगियों को सलाह दी कि उचित कपड़ों में कार्यालय में आना सबसे अच्छा काम है। ताकि ऑफिस का शिष्टाचार (decorum) बना रहे। जिसके बाद हमने गौर किया है राज्य सचिवालय में कई सरकारी कर्मचारी पारंपरिक ड्रेस पहनकर शामिल हुए।
बोरठाकुर ने अपने पत्र में लिखा कि देखने में आया है कि दफ्तर के औपचारिक कामकाज के दौरान अफसरों व कर्मचारियों के लिए कोई ड्रेस कोड नहीं है। उनमें पारंपरिक पहनावे को बढ़ावा देना जरूरी है। इसलिए कर्मचारियों को महीने के पहले व तीसरे शनिवार को स्वैच्छिक तरीके से पारंपरिक पहनावे में दफ्तर आने को कहा जा सकता है।
इसे लेकर कांग्रेस ने सरकार पर निशाना साधा। कांग्रेस नेता अब्दुल खालेक ने कहा कि राज्य में कई अहम और ज्वलंत मुद्दे हैं, जिसका समाधान करने की जरुरत है। बीजेपी सरकार को जनता से किए गए वादों को पूरा करने की कोशिश करनी चाहिए, जिन वादों को बीजेपी और उनकी सहयोगी पार्टियों ने साल 2016 के विधानसभा चुनाव में लोगों से किया था।