सोमवार को ईवीएम के मुद्दे पर लामबंद नजर आईं विपक्षी पार्टियां मंगलवार को एक बार फिर एक मंच पर दिखीं। मौका था राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) अध्यक्ष शरद पवार की आत्मकथा ‘अपनी शर्तों पर’ के हिंदी संस्करण के लोकार्पण का। इन दलों के बीच भाजपा के नेतृत्व वाले राजग के विकल्प के लिए जमीन और नेतृत्व दोनों की तलाश की चिंता स्पष्ट दिखी, लेकिन जहां सोमवार की लामबंदी से माकपा और जद (एकी) गायब थे, वहीं मंगलवार के मंच से राजद, बसपा और तृणमूल कांग्रेस गायब रहे। पुस्तक का लोकार्पण करते हुए जाने माने पत्रकार कुलदीप नैयर ने कहा कि शरद पवार से बेहतर राष्ट्रपति कोई नहीं हो सकता। इस बात का एक तरह से समर्थन वहां मौजूद माकपा महासचिव सीताराम येचुरी और जद (एकी) महासचिव केसी त्यागी ने भी किया। सपा के नीरज शेखर ने इच्छा जाहिर की कि शरद पवार के नेतृत्व में काम करने का अवसर मिलेगा। कार्यक्रम शुरू होने से पहले मंच पर सपा नेता अखिलेश यादव और बसपा के सतीश चंद्र मिश्रा का नाम भी दिखा, लेकिन शायद दोनों के नहीं आने की सूचना पर नाम हटा लिए गए। कार्यक्रम का संचालन राकांपा नेता और सांसद डीपी त्रिपाठी ने किया। मंच पर पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रफुल्ल पटेल भी मौजूद थे।
विपक्षी पार्टियों का मंगलवार को एक मंच पर एक साथ आना एक कमजोर कोशिश ही कही जा सकती है, क्योंकि इससे कई प्रमुख दल गायब रहे, वहीं शरद पवार को नेतृत्व की कमान देने की बात पर कांग्रेस सुर में सुर नहीं मिला पाई। वहीं पवार बाकीने देश के सामने विकल्प के मुद्दे को लेकर जनता के विवेक पर भरोसा जताया। अपने संबोधन में सीताराम येचुरी ने कहा, ‘शरद पवार की पारी अभी खत्म नहीं हुई है, अभी अंतिम फेज बाकी है, इसे आगे ले जाने की जरूरत है। वैकल्पिक मॉडल कैसे हासिल हो विचार अलग हो सकते हैं। शरद पवार को यह जिम्मेदारी निभानी होगी। अभी जिंदगी की समीक्षा का समय नहीं आया है।’ इस बात को आगे बढ़ाते हुए केसी त्यागी ने कहा, ‘आप (शरद पवार) अपनी शर्तों के साथ हमारी इच्छाओं पर भी गौर करें, आजाद नेता का सुख भोग लिया, अब देश के शहंशाह बनकर गरीबों के आंसू पोछने की भी कोशिश कीजिए। आज वह अभिव्यक्ति खतरे में है जिसके लिए हमने जवानी के 19 महीने जेल में काटे, माना कि हमारे बीच असहमति है, लेकिन अब वह असहमति भी खतरे में है। आज तो कोई जेपी (जयप्रकाश नारायण) भी नहीं है, इस विपक्षी एकता को आप ही बढ़ा सकते हैं, आप सबके चहेते हैं, आप पर जनसंघियों का भी मन ललचाता है।’
कभी कांग्रेस के प्रमुख चेहरों में से एक रहे और सोनिया गांधी के नेतृत्व का विरोध (विदेशी मूल के आधार पर) कर कांग्रेस से अगल हुए शरद पवार को कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद ने मुल्क के बेहतरीन वजीर, बादशाह और शहंशाह करार दिया, लेकिन पवार के नेतृत्व के मुद्दे पर कुछ नहीं बोले। बजाय उन्होंने कहा, ‘अभी आप (शरद पवार) की बहुत लंबी उम्र है, 20 साल और सांसद रहना है कम से कम और देश के लिए काम करना है अपनी शर्तों पर। महात्मा गांधी कभी प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति नहीं बने लेकिन वह राष्ट्रपिता कहलाते हैं क्योंकि उन्होंने अपनी शर्तों पर काम किया।’देश के मौजूदा हालात की तुलना आपातकाल से करते हुए मराठा छत्रप पवार ने कहा, ‘उस समय भी कोई वैकल्पिक प्रक्रिया सक्रिय नहीं थी, बावजूद उसके 1977 में बदलाव आया, क्योंकि आम जनता नियंत्रण पसंद नहीं करती। आज भी ऐसी स्थिति है, कोई एक दल देश को विकल्प देने की स्थिति में नहीं है। लेकिन जनता पर भरोसा है, क्योंकि राजनीतिक दलों से ज्यादा वह मजबूती से खड़ी होती है।’
कितनी कारगर कोशिश?
विपक्षी दल सोमवार को ईवीएम के मुद्दे पर एक साथ नजर आए थे लेकिन उस मौके पर माकपा और जद (एकी) गायब थे, वहीं मंगलवार के मंच से राजद, बसपा और तृणमूल नदारद दिखे।