इंसानियत के दुश्मन
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने आतंकवादियों को शैतान बताया है। दरअसल, आतंकवादी शैतान से भी बुरे और नीच हैं। शैतान तो कंकड़-पत्थर और न जाने क्या-क्या खाकर भी मारने वालों को बददुआ नहीं देता, जबकि ये आतंकवादी मासूम बच्चों, महिलाओं और बेकसूर इंसानों को भी नहीं बख्शते। इनकी तुलना तो केवल नरपिशाचों-राक्षसों से की जा सकती है! करेला नीम तब चढ़ता है जब उसमें मजहब जुड़ जाता है और अपनी मजहबी आस्था सत्य तो दूसरे की मिथ्या समझी जाती है। असहिष्णुता की पराकाष्ठा तब होती है जब अपने से भिन्न विचार कथित धर्मयुद्ध का कारण बनते हैं और धर्म को ईश्वर से बड़ा समझा जाता है।
’राधेश्याम ताम्रकार, ठीकरी
तेजस के साथ
पिछले दिनों मुंबई से गोवा के लिए तेज रफ्तार ट्रेन ‘तेजस’ शुरू की गई। विविध अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस इस ट्रेन के पहले सफर ने यह साफ जतला दिया कि अब भी भारत में ऐसे लोग भरे पड़े हैं जो निम्न सोच वाले, स्वार्थी और चोर कहे जा सकते हैं। इस ट्रेन के सफर के बाद पता चला कि कुछ सीटों से हाई क्वालिटी के हेडफोन गायब हैं, कुछ स्क्रीन में खरोंचें हैं, बायो टायलेट जाम हो गए हैं। निश्चित ही इस तरह की घटनाएं हमारे सभ्य समाज पर धब्बा हैं।
हम विकसित देश बनने की आकांक्षा रखते हैं पर जब तक अपनी सोच नहीं बदलेंगे, कितनी भी उन्नति कर लें, चीजें नहीं बदलेंगी। भारत के किसी भी शहर में सड़क पर आप बड़ी संख्या में लोगों को बगैर हेलमेट या सीट बेल्ट लगाए देख सकते हैं। सड़कों, सरकारी कार्यालयों में पान की पीक, सार्वजनिक शौचालयों की गंदगी, रास्तों को कूड़ाघर बना देना भारत में आम बात है।
दरअसल, इस तरह की चीजों को कानून का सहारा लेकर ठीक नहीं किया जा सकता है। इसके लिए जरूरी है अपनी सोच में बदलाव लाया जाए। इसे शिक्षा से भी नहीं जोड़ा जा सकता है। आखिरकार तेजस में सफर करने वाले लोग अशिक्षित नहीं थे। फिर इस तरह की तुच्छता का प्रदर्शन हमें सोचने पर विवश कर देता है कि क्या शिक्षा लोगों को सभ्य नहीं बनाती? शायद इस तरह की घटनाओं से निपटने के लिए हमारी शिक्षा में नैतिकता का समावेश करना आज की बड़ी जरूरत बन गया है।
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