झारखंड हाईकोर्ट ने सीबीआई को भगवान श्रीराम से जुड़े एक मंदिर की जमीन अवैध रूप से बेचे जाने की जांच करने का आदेश दिया है। जस्टिस पी के मोहंती और जस्टिस आनंद सेन की खंडपीठ ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया है। ईटीवी के मुताबिक, आरोप है कि रांची के श्रीराम जानकी तपोवन मंदिर ट्रस्ट की नियमावली में गलत तरीके से बदलाव कर उसकी करीब 10 एकड़ जमीन को या तो हस्तांतरित कर दिया गया या बेच दिया गया है। सूत्र बताते हैं कि जिस जमीन को बेचा गया है उसकी बाजार कीमत अरबों रुपये है। यह जमीन रांची के रातू रोड, निवारणपुर और मोरहाबादी मैदान समेत कई जगहों पर थी। फिलहाल उन जमीनों पर बहुमंजिली इमारत बना ली गई है।
मामला आजादी से पहले से जुड़ा है। दरअसल, आजादी से पहले रांची के अलग-अलग इलाकों में भक्तों ने मंदिर को 16 एकड़ जमीन बतौर उपहार और दान में दी थी लेकिन झारखंड राज्य बनने के बाद मंदिर ट्रस्ट के बायलॉज में फेरबदल कर उसके बड़े हिस्से को बेच दिया गया। इसके खिलाफ अतिश कुमार सिंह ने हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी। कोर्ट ने उस याचिका पर सुनवाई करते हुए बुधवार (7 जून) को सीबीआई जांच का आदेश दिया है। इस याचिका में मंदिर की जमीन की बिक्री और हस्तांतरण को रद्द करने की मांग की गई है।
याचिकाकर्ता के वकील राजेंद्र कृष्णा ने ईटीवी को बताया कि श्रीराम जानकी तपोवन मंदिर की जमीन की देखभाल के लिए तीन बार ट्रस्ट बनाया गया है। सबसे पहले साल 1948 में उसके बाद साल 1971 में और आखिरी बार साल 2005 में ट्रस्ट के बायलॉज में बदलाव किया गया है। वकील ने बताया कि 1948 के ट्रस्ट डीड में यह प्रावधान किया गया है कि मंदिर की जमीन बेची नहीं जा सकती है। 1971 के ट्रस्ट डीड में संशोधन करते हुए उसे और मजबूत बनाया गया है। इसमें संशोधन किया गया कि मंदिर की जमीन न तो बेची जा सकती है और न ही उसका हस्तांतरण किया जा सकता है।
तीसरी बार मंदिर ट्रस्ट के डीड में संशोधन साल 2005 में हुआ। इस संशोधन के जरिए यह प्रावधान किया गया कि मंदिर की जमीन को कनवर्जन करके बेचा जा सकता है। इसी डीड के मुताबिक मंदिर के पास केवल 6.43 एकड़ जमीन ही शेष रह गई थी। यानी करीब 10 एकड़ जमीन अवैध तरीके से या तो बेच दी गई या उसका कनवर्जन कर हस्तांतरित कर दी गई। अब सीबीआई इस बात की जांच करेगी कि भागवान श्री राम के जमीनखोर कौन-कौन लोग हैं।