भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) और केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के बीच दरार खुलकर सामने आ गयी है। बुधवार (सात जून) को आरबीआई के गवर्नर उर्जित पटेल के नेतृत्व वाली मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने रिजर्व बैंक के रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट की दरें यथावत रखीं जबकि मोदी सरकार चाहती थी कि ये दरें कम की जाएं। टेलीग्राफ की रिपोर्ट के अनुसार रिजर्व बैंक ने ब्याज दरों पर फैसला लेने से पहले वित्त मंत्रालय के अधिकारियों के साथ बैठक का अनुरोध ठुकरा दिया था।
वित्त मंत्रालय के अनुरोध के ठुकराने के बारे में मीडिया के पूछे जाने पर उर्जित पटेल ने कहा, “बैठक नहीं हुई, एमपीसी के सभी सदस्यों ने वित्त मंत्रालय के अनुरोध के अनुरोध को ठुकरा दिया।” पिछले साल अप्रैल में मुद्रास्फीति की दर 5.47 प्रतिशत थी जबकि इस साल 2.99 प्रतिशत रही। इसीलिए अरुण जेटली को उम्मीद थी कि रिजर्व बैंक मौजूदा 6.35 प्रतिशत के रेपो रेट को कम करेगा। रिजर्व बैंक द्वारा ब्याज दरों की घोषणा से पहले वित्त मंत्री अरुण जेटली ने एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में कहा था कि ब्याज दरें घटाने के लिए ये मुफीद वक्त है क्योंकि मुद्रास्फीति नियंत्रण में है और मॉनसून के भी समय पर आने की उम्मीद है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार नरेंद्र मोदी सरकार रिजर्व बैंक के प्रदर्शन से खुश नहीं है।
बुधवार को हुई एमपीसी की बैठक के बाद देश के मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रामण्यम ने भी पत्र लिखकर रेपो रेट कम न किए जाने की वजहें बताईं। ऐसा शायद पहली बार ही हुआ है कि मुख्य आर्थिक सलाहकार ने लिखित रूप से सफाई दी हो। उर्जित पटेल ने पिछले साल रघुराम राजन की जगह ली थी। रिपोर्ट के अनुसार आरबीआई के तत्कालीन गवर्नर रघुराम राजन की भी नरेंद्र मोदी सरकार से नहीं पटी थी। तब मीडिया रिपोर्ट में दावा किया गया था कि राजन एक साल और और आरबीआई के गवर्नर रहना चाहते थे लेकिन मोदी सरकार से मतभेद के चलते उन्हें सेवा विस्तार नहीं दिया गया। रघुराम राजन ने मोदी सरकार के नोटबंदी के फैसले से भी सहमत नहीं थे।
रिपोर्ट के अनुसार मोदी सरकार की रिजर्व बैंक से नाराजगी तब शुरू हुई जब फरवरी-मार्च में हुए पांच राज्यों के विधान सभा चुनाव के समय रिजर्व बैंक ने भारतीय निर्वाचन आयोग का उम्मीदवारों को ज्यादा नकदी निकालने की छूट देने का अनुरोध ठुकरा दिया था। चुनाव आयोग चाहता था कि उम्मीदवारों को नकद निकासी की तय सीमा 24 हजार प्रति सप्ताह की जगह दो लाख रुपये प्रति सप्ताह कर दी जाए। नोटबंदी के कारण नकदी की दिक्कतों के चलते रिजर्व बैंक ने इस मांग को ना कर दिया।
नरेंद्र मोदी सरकार ने रिजर्व बैंक के 82 साल के इतिहास को बदलते हुए देश के महत्वपूर्ण आर्थिक फैसलों पर निर्यण लेने के लिए एमपीसी का गठन किया था। उससे पहले ये फैसले रिजर्व बैंक ही लेता था। एमपीसी में कुछ छह सदस्य होते हैं जिनमें से तीन रिजर्व बैंक के और तीन केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त बाहरी विशेषज्ञ सदस्य होते हैं। एमपीसी में रिजर्व बैंक के गवर्नर पटेल, डिप्टी गवर्नर मौद्रिक नीति विरल आचार्य, कार्यकारी निदेशक माइकल पात्रा सदस्य हैं। वहीं मोदी सरकार ने पिछले साल चेतन घाटे (आईएसआई कोलकाता में प्रोफेसर), पमी दुआ (दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स की निदेशक) और रवींद्र ढोलकिया (आईआईएम अहमदाबाद में प्रोफेसर) को एमपीसी का सदस्य नियुक्त किया था। बुधवार को एमपीसी ने रेप रेट कम न करना का फैसला सर्वसम्मति से नहीं लिया। रवींद्र ढोलकिया ने एमपीसी के फैसले के खिलाफ असहमति पत्र लिखा।
एमपीसी ने बुधवार को हुई बैठक में रेपो दर को 6.25 प्रतिशत तथा रिवर्स रेपो को 6 प्रतिशत पर बरकरार रखा। रेपो रेट वह दर है जिस पर रिजर्व बैंक दूसरे बैंकों को कर्ज देता, जबकि रिवर्स रेपो वो दर होती है जिस पर आरबीआई दूसरे बैंकों द्वारा अपने पास जमा किए गए अतिरिक्त नकदी पर ब्याज देता है। रिजर्व बैंक ने भले ही रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट न घटाए हों उसने सांविधिक तरलता अनुपात (एसएलआर) को 0.5 प्रतिशत घटा कर 20 प्रतिशत कर दिया जिससे घर के लिए कर्ज (होम लोन) लेना आसान हो जाएगा। एसएलआर वो राशि है जो बैंकों को सरकारी प्रतिभूतियों में लगानी होती है। रिजर्व बैंक के इस कदम से बैंकों के पास कर्ज देने के लिये अधिक नकदी बचेगी। रिजर्व बैंक ने चालू वित्त वर्ष के लिये आर्थिक वृद्धि की अनुमान दर को भी 7.4 प्रतिशत से घटाकर 7.3 प्रतिशत कर दिया।