3 cricketer of auto driver giving coach coach to children
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अगर आप बेंगलुरु के शरीफ नाम के ड्राइवर के ऑटो में बैठेंगे तो आपको एक पोस्टर दिखेगा. पोस्टर में शरीफ के बच्चों की तरफ से लिखा गया है– “हमारे पिता ऑटो चलाते हैं. हम स्टूडेंट्स हैं और खेलों में 38 गोल्ड मेडल जीत चुके हैं, कृपया हमें स्पॉन्सर कीजिए.” शरीफ पिछले 26 साल से शहर में ऑटो चला रहे हैं. वे कड़ी मेहनत कर रहे हैं, ताकि अपने बच्चों के सपनों को वे साकार कर सकें. बच्चों की कोचिंग की फीस देने के लिए वे दिन निकलने से लेकर देर शाम तक काम करते हैं. शरीफ ने बताया, “मेरे बच्चे टैलेंटेड हैं. मैं लगातार ऑटो चलाता हूं, फिर भी उन्हें पढ़ाने और कोचिंग दिलाने की फीस नहीं भर पाता हूं. आप मेरी मदद कीजिए.”
वैसे शरीफ भी अपने दौर में क्रिकेटर बनना चाहते थे, लेकिन किस्मत को कुछ और मंजूर था. घर की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने की वजह से वे कोचिंग छोड़कर ऑटो चलाने के लिए मजबूर हो गए. पिछले 26 साल से ऑटो चलाने वाले शरीफ हर महीने करीब 20 हजार रुपये ही कमा पाते हैं. ये रकम बच्चों के सपनों को सच कर पाने के लिए बहुत कम है. शरीफ के तीन बच्चे हैं- दो बेटे और एक बेटी. क्रिकेट के साथ तीनों पढ़ने में भी अच्छे हैं और बेहतर नंबर लाते हैं. उन्होंने खेल प्रतियोगिताओं में बहुत से मेडल और ट्रॉफियां बटोरी हैं. बच्चों को बढ़ता देख शरीफ ने अपने दोस्त इरफान सेठ से मदद मांगी. इरफान राज्य के एक जाने-माने कोच हैं. यहां तक कि विराट कोहली, रोहित शर्मा और माइकल क्लार्क भी उनसे कोचिंग ले चुके हैं.
इरफान ने उनके बच्चों को बिना पैसे लिए कोचिंग भी दी. शरीफ कहते हैं, “इरफान कर्नाटक क्रिकेट इंस्टीट्यूट के मालिक हैं. मैं उनकी एकेडमी की फीस नहीं भर सकता था. फिर भी उन्होंने बिना फीस के बच्चों को कोचिंग दी.” शरीफ का बड़ा बेटा फैजुल्ला सेंट जोसेफ्स इंडियन हाई स्कूल में पढ़ता है. अभी वह स्टेट जोनल टीम की अंडर 16 टीम में चुना गया है. वह एक तेज गेंदबाज है. बातचीत में फैजुल्ला कहता है, “मैं तेज गेंदबाज हूं और उमेश यादव जैसा बनना चाहता हूं. अपने सपने को सच करने के लिए मैं खूब मेहनत करूंगा.” बड़े भाई की राह पर चलकर 15 साल की नगमा और 14 साल का रिजवान भी इरफान की एकेडमी में ट्रेनिंग ले रहे हैं. नगमा मीडियम पेसर और छोटा रिजवान लेग स्पीनर हैं.
नगमा ने कहा, “मैंने दौड़, शॉटपुट, और डिस्कस थ्रो में 15 गोल्ड जीते हैं. क्रिकेट में बड़े भाई के प्रदर्शन से मुझे प्रेरणा मिली. मेरी हीरो झूलन गोस्वामी हैं. मैं उन्हीं की जैसी बनना चाहती हूं.” आम तौर पर शरीफ की तरह की माली हालत वाला आदमी इस तरह से बच्चों को आगे बढ़ाने के मामले में बहुत कुछ नहीं कर पाते. हालांकि शरीफ हिम्मत हारने वाले नहीं हैं. अपनी आर्थिक हालत पर शरीफ कहते हैं, “ मेरे पिता भेल के कर्मचारी थे. उन्हें घोड़ों पर दांव लगाने का चस्का था और उसमें उन्होंने पैसे गंवा दिए. मैं पीछे नहीं हटूंगा. मुझे यकीन है मेहनत का नतीजा एक दिन मिलेगा.” बच्चों को ट्रेनिंग दिलाकर शरीफ उन्हें घर छोड़ते हैं. फिर अपने काम पर निकल जाते हैं. शरीफ हर रोज बच्चों को स्कूल और कोचिंग के लिए छोड़ने जाते हैं. इसमें उनका काफी खर्च होता है. बच्चे सिर्फ खेलों में ही नहीं, स्कूल में भी अच्छा करते हैं. उन्हें हमेशा 80% से अधिक नंबर मिलते हैं.
शरीफ मानते हैं कि इसके पीछे उनकी पत्नी की भी मेहनत है. शरीफ बताते हैं, “अब तक मेरी बीवी ने मुझसे कोई महंगी चीज नहीं मांगी. वो मेरी स्थिति समझती है. वो हमेशा मेरे साथ रहती है. वो समझती है कि मैं बच्चों के लिए क्या कर रहा हूं. वो रोजाना मुझे आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है. उसके खुश रहने से रोजाना मुझे एनर्जी मिलती है कि मैं अपने बच्चों के लिए संघर्ष कर सकूं.” शरीफ के बच्चों को कोचिंग देने वाले इराफ कहते हैं, “ फैजुल्ला और नगमा ग्रेट बॉलर हैं. उनका भविष्य बहुत शानदार है. मुझसे जितना बन पड़ेगा, मैं उनके लिए करूंगा.”