31st session made Gandhi ji as Mahatma from barrister
#MahatmaGandhi #Peace #India #session #Lucknow #Bihar
#indianfarmer #agricultural #kisan
26 दिसंबर 1916 राजधानी लखनऊ में हुए काग्रेस के 31वें अधिवेशन में गाँधी जी को महात्मा गाँधी बनने की नीव पड़ी थी. 26 से 30 दिसंबर के बीच हुआ यह अधिवेशन अंबिका चरण मजूमदार की अध्यक्षता में हुआ था. जिसमें चम्पारण के लोगों की बापू से पहली बार मुलाकात हुई थी.इसके बाद बापू किसानों को उनका अधिकार दिलाने चम्पारण गए थे. इसी दौरान उन्होंने देश के दीनहीन लोगों को देखा जिनके पास पहनने के लिए कपड़े तक नहीं थे.जिसे देख बापू ने अपनी बैरिस्टर की पोशाक त्यागकर, धोती पहनने का संकल्प ले लिया और यही से उनके बैरिस्टर से महात्मा बनने की नींव पड़ी।
इस बात का पुष्टि खुद बापू ने ‘नील के दाग’ में किया है, जिसमें उन्होंने बताया कि जब वह लखनऊ काग्रेस (वर्ष 1916) में गए थे, तो वहा एक किसान जिसका नाम राजकुमार शुक्ल था। वह बार-बार एक ही चीज़ कह रहा था कि, वकील बाबू आपको सब हाल बताएंगे और वह मुझे बार-बार चम्पारण आने का निमंत्रण देता जा रहा था। वहा उसके वकील बाबू से मतलब था, चम्पारण के वकील ब्रजकिशोर बाबू से।
जिसके बाद राजकुमार और ब्रजकिशोर दोनों मेरे तम्बू में आए और चम्पारण के किसानों का दर्द बताते हुए मझ एक बार वहा आने का न्योता दिया। इतना ही नहीं जब मैं लखनऊ से कानपुर और फिर वहां से आश्रम तक के सफर में राजकुमार मौजूद थे. फिर मैंने उनसे कहा कि मुझे कलकत्ता जाना है, और आप वहा आकर मुझे चम्पारण ले चलना।
वही कलकत्ता में मेरे भूपेन बाबू के यहां पहुंचने से पहले ही राजकुमार शुक्ला वहां डेरा डाले बैठे था। जिसके बाद मैं और राजकुमार शुक्ला सन1917 में कलकत्ता से चम्पारण की ओर रवाना हो गए। वही मैंने चम्पारण जाकर देखा कि कैसे किसान अपनी ही जमीन के 3/20 भाग में नील की खेती उसके असल मालिकों के लिए करने के कानून से बंधे हुए थे। वहां किसानों के खिलाफ मुकदमे चल रहे थे।
वहां के लोगों की ऐसी दुर्दशा देख उन्हें बहुत दुःख हुआ , जिसकी वजह से उन्होंने ने अपनी पुरानी वेशभूषा को त्यागकर किसानों की तरह सफेद धोती धारण ली. जिसके बाद उन्होंने चम्पारण में ही रहकर उन गरीब बेसहारा किसानो के खातिर एक लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी.
वही इस घटना के बाद वह देशवासियों के लिए बैरिस्टर गांधी से महात्मा बन गए.