भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ना तो चीनियों के प्रति सॉफ्ट थे और न ही वह उनपर विश्वास करते थे। चीन से आधिकारिक बातचीत के लिए नेहरू अपने विश्वासपात्रों पर भरोसा करते थे, इन्हें गोपनीयता की शपथ दिलाई गई थी और ये विश्वासपात्र नेहरू से अकेले में बात करते थे। ये दावा राजनयिक और कटूनीतिज्ञ जी पार्थसारथी पर आधारित एक किताब में किया गया है। डिप्लोमेसी के क्षेत्र में लंबा अनुभव रखने वाले जी पार्थसारथी पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सलाहकार थे। इन्होंने जवाहरलाल नेहरू और राजीव गांधी के साथ भी काम किया था। कटूनीतिक गलियारों में जीपी (GP) नाम से प्रसिद्ध जी पार्थसारथी को नेहरू ने भारत-चीन युद्ध से पहले 1958 में राजदूत नियुक्त कर चीन भेजा था।
किताब के एक हिस्से में जी पार्थसारथी के बेटे अशोक पार्थसारथी, जो कि खुद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के विज्ञान और तकनीकी सलाहकार थे, ने जीपी के नोट्स का हवाला देते हुए नेहरू द्वारा कही गई बातों को कुछ इस तरह बताया है, ” हां जीपी फॉरेन ऑफिस ने तुम्हें क्या बताया है? हिन्दी-चीनी भाई-भाई? क्या तुम इस पर विश्वास नहीं करते हो, मैं इन चीनियों पर जरा सा भी विश्वास नहीं करता हूं। रिपोर्ट के मुताबिक नेहरू ने इन्हीं शब्दों से जीपी के साथ अपनी मीटिंग शुरू की।
दोनों के बीच आगे कुछ इस तरह बातें हुईं, नेहरू बोले, “ये लोग घमंडी, विश्वास नहीं करने योग्य, कुटिल और आधिपात्य जताने वाले शख्स हैं, तुम्हें हमेशा सतर्क रहना चाहिए, अहम मुद्दों पर तुम्हें सिर्फ मुझे ही टेलिग्राफ भेजने चाहिए, तुम इस बात को भी सुनिश्चित करो कि मेरे द्वारा तुम्हें दिये गये इन पॉलिसी गाइडलाइंस की जानकारी कृष्णा मेनन को ना हो, ऐसा इसलिए क्योंकि कृष्णा को लगता है कि कोई भी सोशलिस्ट देश (चीन) एक गुट निरपेक्ष देश (भारत) पर कभी हमला नहीं करेगा, हालांकि कृष्णा तुम्हारा और मेरा, तीनों का दुनिया के बारे में एक ही नजरिया है-साम्यवादी (left of centre) गुट निरपेक्ष और सोवियत यूनियन एवं दूसरे सोशलिस्ट देशों के साथ गहरे संबंध।” यह मार्च 18 की बात है, इसके एक दिन बाद ही जी पार्थसारथी पीकिंग के लिए रवाना होने वाले थे।
ये नोट्स अशोक पार्थसारथी के पास थे और इन्हें पहली बार इस किताब (GP:1915-1995) के जरिये सार्वजनिक किया जा रहा है। यह किताब इसी महीने रिलीज होने वाली है। इस किताब की प्रस्तावना पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने लिखी है।