DS Hooda: Army did not seek revenge for evidence but surgical strike ...
भारतीय सेना द्वारा सीमा पार की गई सर्जिकल स्ट्राइक के वीडियो के रिलीज होने के बाद कई तरह के सवाल उठे. कभी विपक्षी पार्टियों ने इसे मोदी सरकार का छलावा कहा तो कभी पाकिस्तान ने दावा किया कि सर्जिकल स्ट्राइक जैसा कुछ हुआ ही नहीं. लेकिन इस मामले पर रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल डीएस हुड्डा ने कई बड़े खुलासे किए. उन्होंने कहा कि 29 सितम्बर 2016 को भारत ने सर्जिकल स्ट्राइक प्रतिशोध के लिए नहीं बल्कि प्रमाण के लिए की थी. हुड्डा ने कहा जम्मू-कश्मीर में भारतीय सेना के लिए साल 2016 कठिन समय था. पठानकोट एयरबेस पर हमला हुआ था और इस हमले से काफी नुकसान पहुंचा था. फरवरी में ईडीआई पंपोर में हुए एक ऑपरेशन में सेना के पांच जवान शहीद हो गए थे जिसमें स्पेशल फोर्स के दो अधिकारी भी शामिल थे. जुलाई में आतंकी बुरहान बानी के मारे जाने के बाद घाटी में अशांति फैल गई थी.
लोग बानी की मौत पर आंदोलन कर रहे थे. यह साफ था कि घाटी में हो रही घटनाओं को पाकिस्तान का समर्थन मिल रहा था. पाकिस्तान की ओर से सोशल मीडिया कैंपेन चलाया जा रहा था. इसके बाद उरी में हमला हुआ और 18 सैनिक शहीद हो गए. इस घटना के बाद सेना पर सवाल उठने लगे कि वह अपने ही कैंप की सुरक्षा नहीं कर पा रही है. हुड्डा ने बताया कि सेना के अधिकारियों की आलोचना होने लगी. ऐसे मौके पर कुछ भी न करना सेना का विकल्प नहीं था. जिसके बाद सेना ने डिप्लोमेसी और पॉलिटिक्स के सहारे बैठकर कुछ भी न करने की बात को खारिज कर दिया. सेना के अंदर बदले की भावना नहीं थी लेकिन सेना न्याय चाहती थी. एक हत्यारे को फांसी पर लटकाने से सारी हत्याएं नहीं रुकेंगी लेकिन हम प्रमाण चाहते थे, प्रतिशोध नहीं.
हुड्डा ने कहा कि सेना अपने हथियारों के दम पर पाकिस्तान के ज्यादा से ज्यादा सैनिक मार सकती थी लेकिन हमने पाक सीमा में घुसकर चुनौती देने की ठानी. क्योंकि सेना की इज्जत का सवाल था. जब हमने सर्जिकल स्ट्राइक की तो जवानों के चेहरों पर चमक वापस आ चुकी थी. पूरा देश हम पर गर्व कर रहा था और यही हमारी शक्ति का प्रमाण था. सेना ने कभी इस बात का दावा नहीं किया कि वह पाकिस्तान द्वारा दिए जा रहे आतंकी समर्थन को फौरन रोक देगी. यह एक बेवकूफाना बात है. लादेन जैसे तमाम बड़े आतंकियों के खात्मे के बाद भी अलकायदा खत्म नहीं हुआ. आतंक के खिलाफ की गई कार्रवाई बहुत लंबी लड़ाई है और हमें फौरन परिणाम की आशा नहीं करनी चाहिए.