Tuesday, December 3, 2024
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भारत के इतिहास में पहली बार एक मां ने किया ऐसा कन्यादान कि जमाना याद रखेगा

SI News Today

For the first time in a history of India, a mother has remembered for her unique Kanyadan.

  

बच्चा अगर किसी कपल की जिंदगी में आ जाता है तो वो भावनात्मक स्तर पर और भी अधिक जुड़ जाते हैं। पर जब मेडिकल कॉम्प्लीकेशन्स की वजह से उन्हें बच्चा पैदा करने में परेशानी का सामना करना पड़ता है तो वे भावनात्मक स्तर पर टूट भी जाते हैं। इंर्फिटलिटी यानी बांझपन की दिक्कत से न सिर्फ दंपतियों को सामाजिक प्रताडना का भय रहता है, बल्कि कई बार दोनों के आपसी निजी रिश्तों में भी खटास आने का डर रहता है।

वही अगर ये बात हमारे भारत देश की होती है तो  मातृत्व को एक मुद्दा माना जाता है, जो महिला गर्भवती नही हो पाती उसकी अपने परिवार के सदस्यों द्वारा निंदा की जाती है। और अक्सर उसे घर से बाहर निकाल दिया जाता है। सामाजिक कलंक से बचने और पारिवारिक अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए, एक पुरुष के माध्यम से, एक बच्चे को जन्म देने के लिए एक महिला किसी भी बड़े खतरे से गुजरने के लिए तैयार हो जाती है क्योंकि हमारे समाज में एक स्त्री को तभी सम्पूर्ण माना जाता है जब वो माँ बनती है। पर कई महिलाओं के साथ ऐसा भी होता है की वो कभी माँ नहीं बन पाती| जिसकी वजह से उनका अपना बच्चा नही हो पाता और मां शब्द तक सुनने के लिए उनके कान तरस जाते हैं और वो इस सुख से वंचित रह जाती हैं।

बता दे कि आज मेडिकल साइंस ने एक तरीका खोज निकाला है जिसकी सहायता से महिलाओँ को मां बनाया जा सकता है और वो तरीका ये है कि गर्भाशय ट्रांसप्लांट का। दरअसल हमारे मेडिकल साइंस ने जो नया तरीका ढूँढा है, वो किसी भी महिला को माँ बनने का सुख दिलाने के लिए है गर्भदान और हमारे भारत देश में पहली बार एक माँ ने अपनी बेटी को गर्भ दान कर उसे माँ बनने का सुख प्रदान किया है। भारत ने इस प्रकार की पहली सर्जरी की शुरूआत पुणे में गैलेक्सी केयर लैपरोस्कोपी इंस्टीट्यूट के 12 विशेषज्ञ डॉक्टरों की एक टीम के माध्यम से, महाराष्ट्र के सोलापुर जिले की 22 वर्षीय महिला पर पहला सफल गर्भाशय प्रत्यारोपण करके किया। इस महिला को उसकी 40 वर्षीय माँ ने अपना गर्भाशय दान किया था। इस लेखन के समय तक, इन दोनों महिलाओं का स्वास्थ्य ठीक हो रहा था। डॉक्टरों ने कहा कि अब महिला को मासिक स्राव भी होगा और गर्भ भी धारण कर सकेगी।

दुनिया का पहला गर्भाशय प्रत्यारोपण स्वीडन में 2013 में 36 वर्षीय महिला में किया गया था। उसका जन्म भी बिना गर्भाशय के हुआ था। उसे एक 60 वर्षीय दोस्त ने गर्भाशय दान किया था। जिसके बाद महिला ने गर्भ धारण किया था और बेटे को जन्म दिया था। यह अभी तक दुनियाभर में लगभग दो दर्जन गर्भाशय प्रत्यारोपण किए जा चुके हैं और अब इस सूची में भारत भी सम्मिलित हो गया है।

वहीं विश्व भर में लगभग 1.5 मिलियन से अधिक महिलाऐं गर्भाशय के बांझपन से ग्रसित हैं, कई स्थिति में महिला गर्भाशय के बिना पैदा हुई या किसी बीमारी या दोष के कारण गर्भाशय को समाप्त कर दिया गया था। ऐसा माना जाता है कि 500 में से 1 महिला इससे पीड़ित है, यह गर्भ धारण करने में सक्षम नहीं है। ऐसी महिलाओं के पास दो विकल्प होते हैं एक तो बच्चे को गोद लें और दूसरा ये कि फिर किराये का गर्भ का इंतजाम करे। पर अब जो ये तीसरा विकल्प सामने आ रहा है ये महिलाओं के लिए काफी लाभदायक सिद्ध होने वाला है।

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