Wednesday, September 18, 2024
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ICAI: बैंक कर्जों को मंजूरी देने के लिए हो एक केंद्रीय एजेंसी…

SI News Today
ICAI: A central agency to sanction bank loans ...
@theicai 

बैंकों के फंसे कर्ज की गहराती समस्या के बीच लागत लेखाकारों की शीर्ष संस्था ‘इंस्टीट्यूट ऑफ कॉस्ट अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया (आईसीएआई)’ ने बैंकों से दिए जाने वाले बड़े कर्ज प्रस्तावों की जांच-परख के लिए एक केंद्रीय एजेंसी बनाने का सुझाव दिया है. इसका कहना है कि इस एजेंसी में लागत अकाउंटेंट्स के साथ-साथ विभिन्न क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञों को भी शामिल किया जाना चाहिए ताकि कर्ज फंसने के मामलों में कमी लाई जा सके.‘इंस्टीट्यूट ऑफ कॉस्ट अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया’ के राष्ट्रीय अध्यक्ष संजय गुप्ता ने कहा कि बैंकों से जो भी बड़े कर्ज दिए जाते हैं उन सभी की जांच परख करने के लिए वित्त मंत्रालय द्वारा एक केंद्रीय एजेंसी का गठन किया जाना चाहिए. ऐसे प्रस्तावों का लागत मूल्यांकन करने के साथ साथ परियोजना की दक्षता, वहनीयता को लेकर भी ऑडिट यानी उनकी लेखा परीक्षा होनी चाहिए.

उल्लेखनीय है कि इन दिनों सार्वजनिक क्षेत्र के अनेक बैंक फंसे कर्ज यानी एनपीए की समस्या का सामना कर रहे हैं. यह समस्या विशेषतौर से इस्पात, बिजली, दूरसंचार तथा कुछ अन्य क्षेत्रों में ज्यादा है. कड़ी प्रतिस्पर्धा से बाजार मूल्य घटने अथवा मांग कमजोर पड़ने से इन क्षेत्रों की कंपनियां वित्तीय संकट में फंस गई. गुप्ता का कहना है कि आमतौर पर हजारों करोड़ रुपए के बड़े कर्ज बैंकों के समूह द्वारा दिए जाते हैं. बड़े बैंकों के पास शोध एवं विकास के बेहतर साधन होते हैं वह कर्ज प्रस्ताव का बेहतर आकलन कर सकते हैं लेकिन कई छोटे बैंक है जिनके पास कर्ज प्रस्तावों का मूल्यांकन और लेखा ऑडिट करने की अच्छी सुविधाएं नहीं हैं, ऐसे में कर्ज प्रस्तावों पर विचार करने वाली केंद्रीय एजेंसी बेहतर भूमिका निभा सकती है.

गुप्ता ने कहा कि आमतौर पर कंपनियां और उनके प्रवर्तक अपने उत्पाद की लागत को लेकर गोपनीयता का हवाला देते हैं. उन्होंने कहा, ‘किसी भी परियोजना में जब पूरा पैसा बैंकों का लगता है जो कि जनता का पैसा है तो फिर कंपनियों की तरफ से मूल्यांकन को लेकर गोपनीयता क्यों बरती जानी चाहिए. इसमें हर मामले में पूरी पारदर्शिता होनी चाहिए.’ उन्होंने कहा कि किसी भी परियोजना अथवा उद्वम की सफलता में बेहतर मूल्यांकन की बड़ी भूमिका होती है. इंस्टीट्यूट ऑफ कॉस्ट अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया इन्ही मुद्दों पर जोर देता है और उसका गुणवत्ता और दक्षता पर ज्यादा ध्यान रहता है. दूसरी तरफ वित्तीय लेखाकार केवल वित्तीय आंकड़ों पर ही ज्यादा ध्यान देते हैं.

गुप्ता का कहना है कि कई बार कंपनियों का कारोबार उनकी गुणवत्ता अथवा मात्रात्मकता के मुताबिक नहीं बढ़ रहा होता है बल्कि बाजार में उत्पाद के दाम बढ़ जाने की वजह से उनका कारोबार बढ़ जाता है. इस मामले में उन्होंने पेट्रोलियम कंपनियों का उदाहरण दिया. देश में लागत अकाउंटेंट पेशेवरों के कौशल विकास व नियमन के लिए संसद में पारित कानून से इस संस्था की स्थापना की गई. पहले इसका नाम इंस्टीट्यूट ऑफ कॉस्ट एंड वर्क्स अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया (आईसीडब्ल्यूएआई) था.

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