राष्ट्रीय स्वयं सेवक (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने गुरुवार (25 जनवरी) को कहा कि राजनेताओं को जाति की राजनीति का सहारा लेने के लिए मजबूर किया जाता है क्योंकि जाति के आधार पर भारत में वोट डाले जाते हैं। भागवत मुंबई में बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज के एक कांफ्रेंस में ‘व्यापार में राष्ट्रवाद और नैतिक आचरण’ के मुद्दे पर बोल रहे थे। भागवत ने कहा- ”समाज में जितनी नैतिक आचरण की आदत है, उतनी राजनीति में दिखाई देती है। उदाहरण के लिए जात-पात की राजनीति मुझे नहीं करना, ऐसा मैं सोचकर भी जाता हू्ं लेकिन समाज तो जात-पात पर वोट देता है, तो मुझे करना ही पड़ता है। मुझे वहां टिकना है, तभी मैं परिवर्तन लाऊंगा। तो समाज परिवर्तन से राजनीतिक व्यवस्था में परिवर्तन होता है, उल्टा नहीं होता।”
रोजगारों के अवसर पैदा करने पर बल देते हुए भागवत ने कहा- ”भारत उत्पादन का विकेंद्रीकरण करे और लोगों को प्रशिक्षण दें, उन्हें शिक्षित करे। ऑटोमेशन और तकनीक किसी कारोबार को चलाने में अहम भूमिका निभाते हैं, ऐसे में कंपनी मालिकों को देश और कर्मचारियों के हितों को ध्यान में रखते हुए नैतिकता के साथ अपना कारोबार चलाना चाहिए।”
उन्होंने कहा- ”कोई व्यापार ऐसा नहीं हो जो केवल मालिक को मुनाफा पहुंचाए, उससे अन्य लोगों और देश को भी मुनाफा होना चाहिए, उससे रोजगार के अवसर पैदा होने चाहिए। मैं तकनीक और कारोबारियों के खिलाफ नहीं हूं, जिन्हें ऑटोमेशन और मशीनीकरण से कारोबार चलाना पड़ता है। लेकिन उन्हें उन कर्मचारियों के कल्याण के लिए सावधान रहना चाहिए जो कंपनी के साथ जुड़े होते हैं और उसे चलाते हैं।”
व्यापार में सरकार की भूमिका पर भागवत ने कहा कि अगर लोग नियंत्रण में रहकर अपनी स्वतंत्रता का प्रयोग करते हैं तो नियमों के जरिये सरकार का नियंत्रण धीरे-धीरे नीचे लाया जा सकता है। उन्होंने कहा- ”वह सरकार अच्छी है जो कम नियंत्रण रखती है। हमें उसी दिशा में आगे बढ़ना चाहिए, परंपरागत रूप से भारत सबसे व्यक्तिपरक देश रहा है, जहां हर किसी को उसके मुताबिक काम करने की आजादी है और देश के लोगों को उनके कार्यों की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। वे जो भी करना चाहते हैं, अगर वे राष्ट्रीय हित को ध्यान में रखकर करें तो सरकारी नियंत्रण या नियमों के लिए कोई जरूरत नहीं होगी।”
भागवत ने यह भी कहा कि हर भारतीय को धार्मिक स्वतंत्रता है, इसलिए धर्म का पालन करना और चुनना एक निजी पसंद है, परिणाम स्वरूप हर भारतीय के पास एक ही नैतिकता है। उन्होंने कहा- “विलासिता और प्रतिष्ठा” अस्थायी हैं और हर किसी को उनके प्रभाव को समझना चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर कल के दिन सरकार उनकी सुरक्षा हटाने का फैसला लेती है तो वह इसके लिए अनुरोध नहीं करेंगे और न ही लाल बीकन कार की मांग करेंगे। यह सब प्रतिष्ठा है, जो आती और जाती है। विलासिता भी आती और जाती है। किसी को भी इनसे प्रभावित हुए बगैर इनका सामना करना चाहिए।”