Friday, November 22, 2024
featuredदेशस्पेशल स्टोरी

12 साल के उस नन्हे जाबाज का उपकार, नहीं भूलेगा हिंदुस्तान

SI News Today

India will never forget, the sacrifices of that Youngest boy

        

बाजी राउत स्‍वतंत्रता संग्राम के ऐसे सेनानी थे जिन्होंने 12 साल की उम्र में अपने सीने पर अंग्रेजों की गोलियां खाई थीं. इतिहास में इन्हें सबसे कम उम्र का शहीद कहा गया है . बाजी राउत का जन्‍म 1926 में ओडिशा के ढेंकनाल में हुआ था. बाजी की शहादत ने पूरे ओडिशा में आजादी के दीवानों में जोश और गुस्सा पैदा किया, जो चिंगारी बनकर स्‍वतंत्रता संग्राम की ज्‍वाला बन गई. बाजी के पिता हरि राउत एक नाविक थे. कम उम्र में पिता का देहांत होने के कारण मां ने आस-पड़ोस में खेती से जुड़े छोटे-मोटे काम करके उनका पालन पोषण किया. उस समय शंकर प्रताप सिंहदेव ढेंकनाल के राजा थे जो गरीब जनता को सताकर, उनका शोषण कर कमाई करने के लिए जाने जाते थे.

वहीं ओडिशा में राजाओं और अंग्रेजों के ख‍िलाफ जनता का गुस्सा बढ़ रहा था. राजा और अंग्रेजों की बढ़ती तानाशाही के कारण जनता एक हो चुकी थी. जिसका अहसास होने पर आसपास के राजाओं और अंग्रेजों ने राजा शंकर प्रताप सिंहदेव के लिए मदद भेजी. अंग्रेजों ने करीब 250 पुलिस की टुकड़ी, जो बंदूक और दूसरे असलहों से लैस भेजी थी. 10 अक्टूबर 1938 को अंग्रेजी पुलिस गांव के कुछ लोगों को गिरफ्तार कर भुवनेश्वर थाना ले गई. उनकी रिहाई के लिए गांव के लोग प्रदर्शन करने लगे। पुलिस ने गोलियां चलाईं, जिसमें दो लोगों की मौत हो गई. इस घटना ने पूरे गांव को झकझोर दिया. आमजन का गुस्‍सा इस कदर बढ़ गया कि ख‍िलाफत देख अंग्रेजों की टुकड़ी ने गांव छोड़ने की योजना बना ली.

पुलिस ने ब्राह्मणी नदी के नीलकंठ घाट से होते हुए ढेंकनाल की ओर भागने की कोशिश की. . बाजी राउत वहां वानर सेना की तरह से रात का पहरा दे रहे थे. पास में ही नाव थी तो इसलिए अंग्रेजी पुलिस ने बाजी से कहा कि वह नाव से उन्‍हें उस पार पहुंचा दे. लेकिन बाजी ने कोई जवाब नहीं दिया . लेकिन फिर जब पुलिस ने दोबारा पूछा तो 12 साल के साहसी बाजी ने साफ़ इनकार कर दिया. और शोर मचाना शुरू कर दिया तब गुस्‍से में एक अंग्रेजी पुलिस ने बाजी के सिर पर बंदूक की बट से वार किया.

इतने में दूसरे पुलिस वाले ने उन पर बंदूक से एक और वार किया , तीसरे ने बाजी राउत को गोली मार दी. बाजी की आवाज सुनकर मौके पर गांव के लोग पहुंचे तो उन्हें अंग्रेजों ने भागने की कोशिश की. इस दौरान अंग्रेजों ने गांववालों पर अंधाधुंध गोलियां चलाईं, जिसमे कई लोग मारे गए. लेकिन 10 अक्टूबर 1938 को बाजी का दिया गया बलिदान इतिहास में अमर हो गया. इस आंदोलन में लोगों में अंग्रेजों के खिलाफ गुस्सा भरा और हक की लड़ाई को तेज किया.

SI News Today

Leave a Reply