Kishanganga dam project will start! Know report ..
330 मेगावॉट का किशनगंगा हायड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट, उत्तरी कश्मीर के बांदीपुरा जिले की किशनगंगा नदी पर बनकर तैयार है. 19 मई को श्रीनगर दौरे के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसका उद्घाटन करेंगे. कश्मीर के गुरेज़ से बांदीपुरा के बीच फैला यह बांध उस किशनगंगा हायड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट (KHEP) का हिस्सा है जिसकी लागत 5750 करोड़ रुपये हैं.
9 साल में तैयार हुआ किशनगंगा हायड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट को NHPC द्वारा संचालित किया जाता है और यह अपने आप में इसलिए भी ख़ास है क्योंकि वह पहली ऐसी स्कीम है जिसमें पानी का संग्रह कम या लगभग न के बराबर होगा यानि नदी में पानी के बहाव के आधार पर काम करेगा. यह बांध गुरेज़ घाटी में झेलम की सहायक नदी किशनगंगा के पानी को बांदीपुरा तक एक 23.65 किलोमीटर लंबी सुरंग से लेकर जाएगा. यह सुरंग कई बड़े पहाड़ों के बीच से होकर गुज़रती है.
2007 में यूपीए 1 के दौरान यह काम शुरू हुआ था जो कि 2011 में पाकिस्तान की अर्जी पर रोक दिया गया था. पाकिस्तान ने हेग स्थित स्थायी मध्यस्थता न्यायालय में शिकायत दर्ज की थी कि किशनगंगा प्रोजेक्ट सिंधु नदी संधि का उल्लंघन करता है. पाकिस्तान का आरोप था कि ऐसा करके भारत झेलम नदी के अपने जलग्रहण को बढ़ा रहा है और पाकिस्तान को अपने पानी के अधिकार से वंचित कर रहा है. पाकिस्तान भी उसी नदी के उसी तरफ नीलम झेलम प्रोजेक्ट बना रहा था. हालांकि यह प्रोजेक्ट भी 2008 में शुरू हुआ था लेकिन कई सालों की देरी के बाद इसके भी जुलाई 2018 में पूरे हो जाने की संभावना है.
यह है किशनगंगा प्रोजेक्ट की खासियत
तीन युनिट, 330 मेगावॉट पावर प्रोजेक्ट
सालान 1713 लाख यूनिट बिजली पैदा करेगा
सितंबर 2007 में प्रस्तावित लागत 3642 करोड़ रुपये, कुल लागत 5750 करोड़ रुपए
दो घाटियों के बीच 379 हेक्टर में फैला
23.24 किलोमीटर सुरंग खोदी गई
बताया जाता है कि जून 2011 में कोर्ट ने भारत में किशनगंगा और पाकिस्तान में नीलम झेलम प्रोजेक्ट का दौरान किया. फिर फरवरी 2013 में भारत के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा कि उसे पश्चिमी नदियों के पानी को गैर उपभोग इस्तेमाल के लिए अपनी और मोड़ने का अधिकार है ताकि अधिकतम पावर पैदा किया जा सके. हालांकि भारत को बांध बनाने की अनुमति देने के साथ ही हेग कोर्ट ने यह भी कहा कि जरूरी है कि किशनगंगा नदी में 9 क्यूबिक मीटर प्रति सेकंड की दर पर पानी का बहाव बना रहे ताकि जब नदी पाकिस्तान में प्रवेश करती है तब नीचे जाते हुए उसका बहाव बना रहे.
प्रोजेक्ट की साइट गुरेज़ घाटी पर स्थित है जो कि सीमा रेखा से काफी करीब है. पहले इसकी लंबाई 98 मीटर रखी गयी थी लेकिन पाक की आपत्ति के बाद इसे 37 मीटर कर दिया गया. यह बांध बनाना खराब मौसम की वजह से भी चुनौतीपूर्ण रहा. यहां नवबंर से लेकर अप्रैल तक जहां भारी बर्फबारी होती है, वहीं तापमान भी -23 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है. एक रिपोर्ट के मुताबिक यहां काम करने वाले टीम खुद को किसी सिपाही से कम नहीं समझती थी.
काम के लिए हालात को सामान्य रखने के लिए कपंनी ने काम करने के रूसी तरीके को अपनाया. इसके तहत हर दो घंटे में आधे घंटे का ब्रेक दिया जाता था और सभी मजदूरों को सुरंग के गरम हिस्से में ले जाया जाता था जहां वह कुछ गरमागरम खाते और पीते थे. सुरंग में प्रवेश को भी स्टील की प्लेट और विशेष किस्म के पर्दों से बंद करके रखा गया था ताकि बर्फीली हवाएं अंदर न आ पाएं.
मामला तब गंभीर हो गया जब 22 नवंबर 2016 को पाकिस्तान की एक टुकड़ी ने साइट के पास ही गोलाबारी की थी. कुछ गोले पत्थर तोड़ने वाली मशीन के पास आकर गिरे, वहीं गोले के 18 राउंड बांध के पास आकर गिरे. यही वजह है कि भारत के लिए यह बांध, सिर्फ बांध नहीं, उससे कहीं बढ़कर है. दस साल पहले शुरू हुआ यह प्रोजेक्ट अभी भी पाकिस्तान के आपत्ति का शिकार है. यह सिर्फ हिमालय की ऊंचाई पर भारत की इंजीनियरिंग कुशलता का प्रतीक नहीं है. बल्कि सफलतापूर्वक गुरेज़ घाटी से कश्मीर घाटी तक भीतर ही भीतर पानी के स्थानांतरण के साथ यह जम्मू कश्मीर और उसके संसाधनों पर भारत की मजबूत पकड़ को भी दिखाता है.
टाइमलाइन –
2005-06 – बांध का काम शुरू
अप्रैल 2006 – पाक ने आपत्ति जताई जिसके बाद भारत ने डिजाइन, और बांध की लंबाई को कम किया.
2010 – पाक ने स्थाई मध्यस्थता कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया
2013 – कोर्ट ने भारत के अधिकार को यह कहते हुए सुरक्षित किया कि पानी का इस्तेमाल बिजली के अधिकतम उत्पादन के अलावा किसी और काम के लिए नहीं किया जाए
2016 – पाक ने डिज़ाइन के संदर्भ में विश्व बैंक से गुहार लगाई
2016 – पाक ने बांध के पास गोलाबारी की
2016 – विश्व बैंक ने भारत-पाक को आपसी बातचीत से मसला हल करने को कहा
मार्च 2018 – प्रोजेक्ट की सभी तीन युनिट को हरी झंडी मिली