Know about the queen who had mixed Aurangzeb’s dream in the soil
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रानी ताराबाई छत्रपति शिवाजी महाराज की बहु व छत्रपति राजाराम महाराज की विधवा रानी थी। मराठा सेना के सर सेनापति हम्बीरराव मोहिते की बेटी थी रानी ताराबाई। आइये हम आज आपको बताते हैं रानी तारा के बारे में। आपकी जानकारी के लिए बता दे कि रानी ताराबाई बेहद उत्साहित, पराक्रमी व एक शक्तिशाली महिला थी। छत्रपति राजाराम महाराज की मृत्यु के बाद रानी ताराबाई ने मराठा राज्य की बागडोर संभाल रखी थी। मराठा साम्राज्य का अच्छे से नेतृत्व करते हुए ताराबाई ने उस मुग़ल सम्राट औरंगजेब का डटकर सामना भी किया था।
1680 में जब छत्रपति शिवाजी महाराज की मृत्यु हुई तो मुग़ल साम्राज्य का सम्राट औरंगज़ेब बहुत खुश हो गया। और वह दक्षिण को अपना आधार बनाकर पश्चिम भारत पर साम्राज्य स्थापित करने का सोचने लगा। वहीं शिवाजी महाराज की मृत्यु के बाद उनके पुत्र संभाजी राजा बने और उन्होंने बीजापुर सहित मुगलों के अन्य ठिकानों पर हमले किये। फौज पर नियंत्रण रखने के लिए 1682 में औरंगजेब ने दक्षिण में अपना ठिकाना बनाया और पूरे भारत पर साम्राज्य का अपना सपना साकार किया।
1686 व 1687 में उसने बीजापुर तथा गोलकुण्डा पर अपना कब्ज़ा कर लिया और अपने सैनिको की गद्दारी से 1689 में संभाजी महाराज को औरंगजेब ने पकड़ लिया। जिसके बाद औरंगजेब ने संभाजी की हत्या कर दी। संभाजी महाराज का छोटा बेटा शिवाजी द्वितीय था, जो कि बहुत छोटा था। पर आधिकारिक रूप से मराठा साम्राज्य का वह उत्तराधिकारी था। लेकिन औरंगजेब ने इस बच्चे का अपहरण कर लिया और उसका नाम बदलकर शाहू रख दिया।
वहीं जब औरंगजेब यह सोचकर बहुत खुश था कि अब उसकी विजय निश्चित है क्योकि उसने लगभग मराठा साम्राज्य और उसके उत्तराधिकारियों को खत्म कर दिया है। पर संभाजी महाराज की मृत्यु व उनके पुत्र के अपहरण के बाद संभाजी का छोटा भाई राजाराम यानी कि रानी ताराबाई के पति मराठा साम्राज्य के उत्तराधिकारी बने। उन्होनें मुगलों से कई सारे युद्ध तो किये लेकिन 1700 में किसी बीमारी के चलते उनकी मृत्यु हो गई।
गौरतलब है कि जहां मराठाओं के पास राज्याभिषेक के नाम पर सिर्फ विधवाएँ और दो छोटे-छोटे बच्चे ही थे। वहीं औरंगजेब फिर से खुश हो रहा था कि अब मराठा साम्राज्य समाप्त होने को है। पर शायद वह ये नही जानता था कि इस बार वो गलत साबित होगा। दरअसल 25 वर्षीय रानी ताराबाई ने सत्ता की पूरी बागडोर अपने हांथ में ले ली और अपने 4 वर्ष के पुत्र शिवाजी द्वितीय को राजा बना दिया। ताराबाई ने मराठा सरदारों को साम-दाम-दण्ड-भेद के सारे तरीके को अपनाते हुए अपनी तरफ मिलाके एक मजबूत पकड़ बनाने के साथ ही राजाराम की दूसरी रानी राजसबाई को जेल में डाल दिया।
आपको बता दे कि अगले कुछ वर्षों तक ताराबाई ने शक्तिशाली बादशाह औरंगजेब के खिलाफ अपना युद्ध जारी रखकर औरंगजेब की रिश्वत तकनीक अपना कर विरोधी सेनाओं के कई राज़ हासिल कर लिए। जिसके पश्चात ताराबाई ने धीरे-धीरे अपनी सेना और जनता का विश्वास अर्जित कर लिया। और उसी समय सन 1707 में 89 वर्ष की आयु में औरंगजेब की मृत्यु हो गई।
वहीं 1761 तक जीवित रहने वाली ताराबाई ने जब अब्दाली के हाथों पानीपत के युद्ध में लगभग दो लाख मराठों को मरते देखा तो वह उसको बर्दाश्त नहीं कर पाई जिस कारण 86 वर्ष की आयु में ताराबाई का निधन हो गया।
अकेले ही लड़ाई लड़ने वाली और मुगलों को हराकर उनसे पूरे 6 प्रांतों पर जीत हासिल करने वाली बहादुर महिला रानी ताराबाई बहुत निडर व साहसी थी। जिस काम को कोई राजा नहीं कर पाए उस काम को अकेले रानी ताराबाई ने कर दिखाया था।