Thursday, November 21, 2024
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जानिये अटल बिहारी वाजपेयी जी का आम आदमी से प्रधानमंत्री बनने तक का सफर

SI News Today

Know Atal Bihari Vajpayee’s journey from becoming a common man to Prime Minister.

    

भारतीय राजनीति में पिछले 50 सालों से सक्रिय रहने वाले, एक कुशल राजनीतिज्ञ, प्रशासक, भाषाविद, कवि, पत्रकार व लेखक के रूप में भारत के राजनीतिक इतिहास में अटल बिहारी वाजपेयी जी की पहचान होती है। सबसे आदर्शवादी प्रशंसनीय राजनेता अटल बिहारी वाजपेयी जी ने अपने राजीतिक जीवन को सबसे अलग तरह से जिया है। क्योंकि इन्होंने राजनीति को दलगत और स्वार्थ की वैचारिकता से अलग हट कर अपनाया है। इन्होंने हर चुनौतियों का डटके सामना किया है। और कभी भी अपने सिद्धांतो या विचारों का कत्ल नही होने दिया है। इन्होंने अपने राजनीतिक जीवन में बहुत सारे उतार-चढ़ाव को देखा और हर परिस्थिति में अपने संयम को बनाए रखा। विपक्षी दल भी उनकी विचारधारा व कार्यकरने के तरीके से उनकी इज्जत करते थे। इन्होंने दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका के साथ दूसरे मुल्कों को पोखरों जैसा परमाणु परीक्षण करके भारत की शक्ति से रबरू कराया। 1996 में राजनीति में संख्या बल का आंकड़ा सबसे ऊपर होने की वजह से उनकी सरकार सिर्फ एक मत से गिर गई। जिसके पश्चात उन्हें प्रधानमंत्री का पद छोड़ना पड़ा। वहीं यह सरकार सिर्फ तेरह दिन तक रह पाई थी। हालांकि उन्होंने विपक्ष में किरदार निभाया और इसके बाद एक बार से वो चुनाव में आए और दोबारा प्रधानमंत्री बने। तीन बार देश के प्रधानमंत्री रहे वाजपेयी लोकप्रिय राजनेता के साथ कुशल प्रशासक भी रहे। आर्थिक मोर्चे पर उन्होंने कई ऐसे कदम उठाए, जिनसे देश की दशा और दिशा बदल गई।

वाजपेयी जी ने 1991 में नरसिम्हाराव सरकार के दौरान शुरू किए गए आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाया। 2004 में जब वाजपेयी ने मनमोहन सिंह को सत्ता सौंपी तब अर्थव्यवस्था की तस्वीर बेहद खूबसूरत थी। जीडीपी ग्रोथ रेट 8 फीसदी से अधिक था, महंगाई दर 4 फीसदी से कम थी और विदेशी मुद्रा भंडार लबालब था। वाजपेयी की सबसे बड़ी उपलब्धियों में उनकी महत्वाकांक्षी सड़क परियोजनाओं स्वर्णिम चतुर्भुज और प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना को सबसे ऊपर रखा जाता है। स्वर्णिम चतुर्भुज योजना ने चेन्नै, कोलकाता, दिल्ली और मुंबई को हाईवे नेटवर्क से कनेक्ट किया, जबकि प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के जरिए गांवों को पक्की सड़कों के जरिए शहरों से जोड़ा गया। ये योजनाएं सफल रहीं और देश के आर्थिक विकास में मदद मिली।

क्या आप जानते हैं कि चार अलग-अलग प्रदेशों के संसद चुने जाने वाले अटल बिहारी वाजपेयी जी कुआंरे क्यों थे? और क्यों नही किया इन्होंने शादी? दरअसल इसका सबसे बड़ा कारण है कि राजनीतिक सेवा का संकल्प लेना। इन्होंने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के लिए आजीवन अविवाहित रहने का फैसला कर लिया था। अटल बिहारी वाजपेयी ने अपनी राजनीतिक कुशलता से बीजेपी को देश में सबसे ज्यादा सम्मान दिलाया है। दो दर्जन से भी ज्यादा राजनीतिक दलों को मिलाकर उन्होंने एनडीए बनाया। जिसकी सरकार में 80 से ज्यादा मंत्री थे, जिसे बाद में जम्बो मंत्रिमंडल भी कहा गया। वो अपनी पहचान एक कवि के रूप में बनाना चाहते थे, लेकिन उनकी शुरुआत पत्रकारिता से हुई। पत्रकारिता ही उनके राजनैतिक जीवन की आधारशिला बनी। उन्होंने संघ के मुखपत्र ‘पांचजन्य’, ‘राष्ट्रधर्म’ और ‘वीर अर्जुन’ जैसे अखबारों का संपादन किया था। उन्होंने चुनाव में कदम सर्वप्रथम 1955 में रखा। तब उन्होंने लोकसभा का चुनाव लड़ा लेकिन उस चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। जिसके बाद 1957 में वो गोंडा के बलरामपुर सीट से जनसंघ उम्मीदवार के रूप में जीत हासिल की और फिर वो लोकसभा पहुंचे। बाद में उन्हें मथुरा और लखनऊ से भी चुनाव में उतारा गया लेकिन वो वहां पर अपनी जीत दर्ज नही करा सके।  बीस वर्षों तक जनसंघ के संसदीय दल के नेता के रूप में वाजपेयी जी कार्यरत रहे। आपको बता दे कि देश की संसद में 1957 में  जनसंघ के मात्र चार सदस्य थे, जिनमें एक अटल बिहारी वाजपेयी जी भी थे।

वाजपेयी जी भारत के प्रथम राजनीतिज्ञ थे जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए हिंदी में भाषण दिया था। इतना ही नही उन्होंने विदेशों में भी हिन्दी को सम्मानित करने का काम किया।  वहीं जब इंदिरा गांधी के खिलाफ विपक्ष एक हो गया था तो देश में मोरारजी देसाई की सरकार बनी। तब अटल बिहारी वाजपेयी जी को विदेशमंत्री बनाया गया। जिसके बाद उन्होंने अपनी राजनीतिक कुशलता को दिखाया और विदेश नीति को बुलंदियों तक पहुंचाया। 1980 में वो जनता पार्टी से नाराज हो गए जिस कारण उन्होंने पार्टी का साथ छोड़ दिया। वाजपेयी जी भारतीय जनता पार्टी के संस्थापकों में से एक थे। और उसी साल उन्हें भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष की कमान भी सौंपी गयी। इसके बाद 1986 तक उन्होंने बीजेपी अध्यक्ष के पद को संभाला। जब संघ उनकी विचारधारा का विरोध कर रहा था तब उन्होंने इंदिरा गांधी के कुछ कार्यों की तब सराहना की थी। कहा जाता है कि संसद में इंदिरा गांधी को दुर्गा की उपाधि अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा दी गई है। उन्होंने इंदिरा सरकार की तरफ से 1975 में लाए गए आपातकाल का तो विरोध किया था लेकिन, बंग्लादेश के निर्माण में इंदिरा गांधी की भूमिका को उन्होंने सराहना भी की थी।

अटल जी ने लालबहादुर शास्त्री जी की तरफ से दिए गए नारे ‘जय जवान जय किसान’ में अलग से जय विज्ञान भी जोड़ा था। इतना ही नही 1998 में वैश्विक चुनौतियों के बाद भी राजस्थान के पोखरण में परमाणु परीक्षण किया। इस परीक्षण के पश्चात अमेरिका सहित कई अन्य देशों ने भारत पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिया। लेकिन उनकी दृढ़ राजनीतिक इच्छा शक्ति ने इन परिस्थितियों में भी उन्हें अटल रखा और वह अडिग रहे। उन्होंने कारगिल युद्ध की भयावहता का भी डट कर मुकाबला कर पाकिस्तान को धूल चयाया। उन्होंने दक्षिण भारत के सालों पुराने कावेरी जल विवाद का हल निकालने का प्रयास किया। स्वर्णिम चतुर्भुज योजना से देश को राजमार्ग से जोड़ने के लिए कॉरिडोर बनाया। मुख्य मार्ग से गांवों को जोड़ने के लिए प्रधानमंत्री सड़क योजना बेहतर विकास का विकल्प लेकर सामने आई। कोंकण रेल सेवा की आधारशिला उन्हीं के काल में रखी गई थी।

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