Thursday, November 21, 2024
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इस सदी के महात्मा बुद्ध IITian आलोक सागर जिन्होंने आदिवासियों की सेवा के लिए सब कुछ छोड़ दिया

SI News Today

Mahatma Buddha of this century, IITian Alok Sagar, who left everything to serve tribals.

           

बैतूल। आजकल कोई एक छोटी सी सरकारी नौकरी मिल जाय तो आय के अन्य साधन निकल कर ऐशो-आराम की जिंदगी जीने के लिए सारे साधन जूता लिए जाते हैं। मगर बैतूल जिले के कोचमहू गांव में एक ऐसा व्यक्तित्व है जिसकी तुलना यदि भगवान बुद्ध से की जाय तो शायद गलत नहीं होगा। इस महान व्यक्ति ने अपने सम्पूर्ण जीवनकाल में प्रोफेसर नौकरी करने के बाद (और जिनके शिष्य भारत सरकार में पूर्व RBI गवर्नर रघुराम राजन रह चुके हों) जीवन में संपत्ति के नाम पर 3 जोड़ी कुरता और एक साइकिल कमाई। अपना सम्पूर्ण जीवन उन आदिवासियों के लिए न्योछावर कर दिया जिनको जीवन की 3 मूलभूत आवश्यकताओं के लिए संघर्ष करना पड़ता है।

20 जनवरी, 1950 को दिल्ली में आलोक सागर का जन्म एक संभ्रांत परिवार में हुआ था। आलोक सागर के पिता सीमा व उत्पाद शुल्क विभाग में कार्यरत थे। एक छोटा भाई अंबुज सागर IIT दिल्ली में प्रोफेसर है। एक बहन अमेरिका कनाडा में तो एक बहन JNU में कार्यरत थी। उन्होंने IIT दिल्ली से इलेक्ट्रॉनिक में इंजीनियरिंग की है। शोध के लिए अमेरिका बुलाया गया। अमेरिका के ही विख्यात ह्यूस्टन यूनिवर्सिटी से PHD की पढ़ाई की। इस दौरान उन्होंने डेंटल ब्रांच में पोस्ट डॉक्टरेट और समाजशास्त्र विभाग, डलहौजी यूनिवर्सिटी (कनाडा) से फेलोशिप भी की। IIT दिल्ली ने बतौर प्राफेसर नियुक्त किया, कई विदेशी भाषाओं के साथ ही वे आदिवासियों की भाषा की भी अच्छी समझ है। मगर अपने देश और समाज की भलाई के लिए जिंदगी के सारे ऐशो आराम छोड़कर आदिवासी बन गए।

दुनिया में 180 करोड़ लोग इनके अनुयायी हैं। पैरों में रबड़ की चप्पलें, हाथ में झोला, उलझे हुए बाल, आदिवासियों सा रहन सहन अब यही इनकी पहचान बन गयी है। वे लाखों आदिवासियों का जीवन संवार चुके हैं। आलोक सागर लगभग 3 दशकों से आदिवासियों के बीच रह रहे हैं। वे भारत सरकार से खफा भी हैं क्यूंकि जो योजनाए वे चलते है उसका इन आदिवासियों को समुचित लाभ नहीं पहुंचाती। नौकरी छोड़ने के बाद से आलोक 33 सालों से मध्य प्रदेश के आदिवासी गावों में 50 हजार से ज्यादा पेड़ लगा चुके हैं। वे हमेशा बीज इकट्ठा करते रहते हैं और लोगों तक पहुंचाते हैं। इसके अलावा गांव में फलदार पौधे लगाते हैं। अब हजारों फलदार पौधे लगाकर आदिवासियों में गरीबी से लड़ने की उम्मीद जगा रहे हैं। उन्होंने ग्रामीणों के साथ मिलकर चीकू, लीची, अंजीर, नीबू, चकोतरा, मौसंबी, किन्नू, संतरा, रीठा, मुनगा, आम, महुआ, आचार, जामुन, काजू, कटहल, सीताफल के सैकड़ों पेड़ लगाए हैं। वे आदिवासियों के सामाजिक, आर्थिक और अधिकारों की लड़ाई लड़ते हैं। आलोक आज भी साइकिल से पूरे गांव में घूमते हैं। आदिवासी बच्चों को पढ़ाना और पौधों की देखरेख करना उनकी दिनचर्या में शामिल है। बैतूल जिले केकोचमहू आने के पहले वे उत्तरप्रदेश के बांदा, जमशेदपुर, सिंह भूमि, होशंगाबाद के रसूलिया, केसला में भी रहे हैं। इसके बाद 1990 से वे कोचमहू गांव में आकर बस गए।

उनके बारे में और लोगों को एक घटना के बाद जानकारी हुयी, जब बीते दिनों मध्य प्रदेश के बैतूल जिला घोड़ाडोंगरी उपचुनाव के दौरान स्थानीय अफसरों को आलोक सागर पर संदेह हुआ। उनके खिलाफ कुछ लोगों ने शिकायत की कि वे बाहरी व्यक्ति हैं। पुलिस से शिकायत के बाद जांच पड़ताल के लिए उन्हें थाने बुलाया गया था। लेकिन जब उन्होंने प्रशासन को अपनी डिग्रियां दिखाईं, तो एक पल के लिए सभी अफसर हैरान रह गए। तब पता चला कि यह व्यक्ति कोई सामान्य आदिवासी या ग्रामीण नहीं बल्कि IIT के पूर्व प्रोफेसर हैं।

@TheSuneelMaurya

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