डीजीसीए की रिपोर्टों में ज्यादातर हेलिकॉप्टर दुर्घटनाओं के लिए पवन हंस को दोषी ठहराया गया है. अनुचित रखरखाव, प्रक्रियाओं का पालन न करना, ऑपरेटर द्वारा सुरक्षा नियमों का अनुपालन नहीं करना आदि हेलीकॉप्टर दुर्घटनाओं की बड़ी वजह बनकर सामने आई है. इन दुर्घटनाओं में 13 जनवरी 2018 को मुंबई में हुई पवन हंस हेलीकॉप्टर दुर्घटना भी शामिल है. पिछले 30 सालों में नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (डीजीसीए) द्वारा पवन हंस हेलीकॉप्टर लिमिटेड (पीएचएचएल) से जुड़े 20 से 25 दुर्घटनाओं पर तैयार की गई जांच रिपोर्टों में इसका खुलासा हुआ है. साल 1988 से, इन दुर्घटनाओं में 91 लोग मारे गए, जिसमें 60 यात्री, 27 पायलट और चार दल शामिल थे.
खबर के मुताबिक, रिपोर्ट इस ओर इशारा करती है पवन हंस हेलीकॉप्टर लिमिटिड ने सुरक्षा मानकों के उल्लंघन किया. रिपोर्ट में इस ओर भी ध्यान दिलाया गया है कि पवन हंस हेलीकॉप्टर से जुड़ी ज्यादातर दुर्घटनाएं संगठनात्मक खामियों के कारण नहीं बल्कि तकनीकी कारणों की वजह से हुई हैं.
हेलीकॉप्टर क्रैश में गई थी अरुणाचल प्रदेश के सीएम की जान
अरुणाचल प्रदेश में साल 2010 में हुई हेलीकॉप्टर हादसे में एक व्यक्ति की मौत हो गई थी. हादसे की जांच रिपोर्ट में सामने आया कि आगे बैठे यात्री का गेट खुल जाने पर उसे बंद करने की कोशिश के दौरान क्रू मैंबर हेलीकॉप्टर से गिर गया था. वहीं साल 2011 में हेलीकॉप्टर हादसों में 31 लोगों की जान गई. मृतकों में अरुणाचल प्रदेश के तत्कालीन सीएम दोरजी खांडू भी शामिल थे.
2010 से लेकर 2012 के बीच 12 हेलीकॉप्टर हादसे हुए जिसमें से 10 पवन हंस के हेलीकॉप्टर थे. इन हादसों में 55 लोगों की जान गई थी. साल 1988 से लेकर अब तक पवन हंस इस तरह के हादसों में 21 हेलीकॉप्टर खो चुका है.
पवन हंस में आए दो स्वतंत्र निदेशक
दुर्घटनाओं मामलों पर सवाल पूछे जाने पर पवन हंस के ऑपरेश्नल और टेक्निकल कार्यकारी निदेशक और एयर कमोडोर के प्रवक्ता ने टी ए विद्यासागर ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि पवन हंस एक सरकारी संस्थान है जिस पर मुश्किल भरे स्थानों पर उड़ाने भरने का भी सामाजिक उत्तरदायित्व है. उन्होंने कहा कि, कंपनी ने कई सुरक्षा मानकों को अपनाया है और जवाबदेही को सुनिश्चित करने के लिए दो स्वतंत्र निदेशकों को अपने बोर्ड में लिया है.
मुश्किल इलाकों में उड़ान भरते हैं पवन हंस के हेलीकॉप्टर
पवन हंस हेलीकॉप्टर के ज्यादा दुर्घटनाग्रस्त होने पर विद्यासागर ने कहा कि, हमें हमारी उड़ानों की संख्या और मुश्किल इलाकों में उड़ान को भी ध्यान में लेना चाहिए. अकेले अरुणाचल प्रदेश में ही सात से आठ दुर्घटनाएं हुईं हैं. हम एक सरकारी कंपनी हैं और हमारा सामाजिक जिम्मेदारी का दायित्व है. हालांकि, कोई भी दुर्घटना अवांछनीय है, लेकिन हर घंटे होने वाली हेलीकॉप्टर दुर्घटनाओं के ग्लोबल एवरेज के मुकाबले हमारी दुर्घटना दर काफी कम है. कुछ समय पहले हमने जम्मू-कश्मीर में भी उड़ान सुविधा उपलब्ध करवाना शुरू की है, जहां निजी कंपनियों ने जाने का नहीं सोचा.
इन दुर्घटनाओं पर जवाबदेही तय किए जाने की बात पर विद्यासागर ने कहा, हमने अपने बोर्ड पर दो स्वतंत्र निदेशकों को लिया है ताकि वे एक स्वतंत्र निर्णय ले सकें. हमारे पास फ्लाइट ऑपरेशन क्वालिटी एश्योरेंस असेसमेंट है. पिछले साल से हमारे पास ऑटोमेशन ऑफ एनालिसिस है जिसमें हमने 48 पैरामीटर्स सैट किए हैं. यह प्रणाली पायलट द्वारा की गई किसी भी गलती को बताती है. साल 2011 में तवांग में हुए क्रैश की एक रिपोर्ट में पवन हंस और नागरिक उड्डयन मंत्रालय को दी गई विस्तृत सिफारिशें भी शामिल हैं.
रिपोर्ट में की गईं ये सिफारिशें
इसमें कहा गया है कि पीएचएचएल को पायलटों के लिए पीरियोडिकल सिम्युलेटर ट्रेनिंग कोर्स आयोजित करना चाहिए और क्रू को “इमरजेंसी में हेलीकॉप्टर से आपातकालीन निकास” की ट्रेनिंग दी जानी चाहिए. “ईडी और जीएम के स्तर पर उड़ान के पर्यवेक्षकों को जल्द से जल्द उड़ान संचालन की निगरानी के लिए नियुक्त किया जा सकता है.”
मंत्रालय के संदर्भ में, रिपोर्ट में कहा गया: “देश में करीब 500 से अधिक हेलीपैड हैं. डीजीसीए के लिए कुछ समय के भीतर सभी हेलीपैडों की निरीक्षण और लाइसेंसिंग करना संभव नहीं है. हेलीपैड का निरीक्षण करने के लिए, रक्षा मंत्रालय के साथ समन्वय कर विभिन्न क्षेत्रों में, दो-तीन महीने के लिए कुछ विशेषज्ञ नियुक्त किए जा सकते हैं. देश में अधिकांश हेलिपैडों के लाइसेंस के लिए एक समयबद्ध कार्यक्रम बनाया जाना चाहिए. लाइसेंस प्राप्त हेलीपैड डीजीसीए वेबसाइट पर उपलब्ध कराया जाना चाहिए.”